शुक्रवार, जुलाई 29, 2011

तब मुशर्रफ अब रब्बानी...

तब मुशर्रफ अब रब्बानी
वो जनाना - ये ज़नानी,
देखो यारों सम्हल के रहना
कहीं निकल न जाए नानी...
कई लोग टपकाते दिखते
अपने - अपने मुंह से पानी,
पर हो सकती मीठी छूरी
मत भूलो है पाकिस्तानी,
प्यार-प्यार से काट जाएगी
जीभ और गर्दन दोनों जानी...

3 टिप्‍पणियां:

  1. लोगों को सावधान करने के लिए शुक्रिया......
    चर्चित जी,ऐसे ही जागरूकता फैलाते रहिएगा...

    अच्छी रचना.......
    मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है....

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  2. bilkul sahi hidaayat...
    Zakhm dene ka andaaz kuchh aisa hai,
    Zakhm de kar poochhte hai_n ab haal kaisa hai...

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