गुरुवार, मार्च 08, 2018

"हे नारी तू सागर है..."

महिला दिवस पर एक खास रचना...
"हे नारी तू सागर है..."

हे नारी तू सागर है
जहां नदियाँ मिलतीं आकर हैं
पुरुष समझता आधा - पौना
कहे घरेलू गागर है...

जिसने भाँप लिया रत्नों को
तेरे आँचल के साए में,
सही अर्थ में समझो उसका
देवी - देवताओं का घर है...

फ़र्ज़ - धर्म और संस्कार
बचपन से साथ लिए चलती,
इन सीमाओं के बावजूद
उन्नति करती तू अक्सर है...
पुरुष उलझ जाता अक्सर
दुनियादारी के पचड़ों में,
पर तेरे लिए तो घर - परिवार
सारी दुनिया से बढ़कर है...

नौ माह तक अपने खून से
सींच-सींच देती आकार,
फिर सहती पीड़ा अथाह
तब आता बच्चा धरती पर है...

धन्य तेरी ये सहनशीलता
ऋणी तेरा संसार सकल,
हे नारी, तुझको "चर्चित" का
श्रद्धा से भरपूर नमन है...

- विशाल चर्चित

शुक्रवार, मार्च 02, 2018

होली का रंग है मिली इसमे भंग है...


होली का रंग है
मिली इसमे भंग है
बुरा मानना मत
निश्छल उमंग है...

पीकर के पौवा
बना शेर कौवा
नशे मे खड़ा कर
दिया एक हौवा...

किसी का दुपट्टा
जो लै भागा पट्ठा
दिया खींच करके
है गोरी ने चट्ठा...

फिर भी न हारा
कीचड़ दे मारा
कहा प्राणप्यारी
मैं प्रियतम तुम्हारा...

वो बोली जाओ
हमें ना फंसाओ
उल्लू हो उल्लू
मुंह धो के आओ...

बड़ा ढीठ बंदा
पकड़ करके कंधा
पहलवान माइन्ड
दिया एक रंदा...

गर्दन अकड़ गई
चंडी सी चढ़ गई
बाला तो हाय कर
वहीं सीधी पड़ गई...

जनता इकट्ठी
लिये हाथ लट्ठी
मजनूं की गीली
हुई अब तो चड्ढी...

बड़ी मार खाई
पड़ा चारपाई
मुहब्बत ने हड्डी
की भूसी बनाई...

सबक ये मिला है
कि जो मनचला है
उसी का मुसीबत
में हरदम गला है...

चर्चित की मानो
नशा मत ही छानो
नहीं तो फंसोगे
बुरे खूब जानो...

/// होली मुबारक ///

- विशाल चर्चित