शुक्रवार, सितंबर 30, 2011

जीवनसंगिनी..........

जीवनसंगिनी..........
ये एक शब्द मात्र नहीं
बल्कि एक पूरा संसार है
खुशियों का - खुशबुओं का
एहसासों का - मिठासों का
रिश्तों का - नातों का....
जीवनसंगिनी..........
एक संगी - एक साथी ही नहीं
बल्कि एक हिस्सा है
हर सुख - दुःख, हर धर्म - कर्म का
हर बात का - हर विचार का,
हर स्वभाव - हर व्यवहार का....
लेकिन ये सब तब है जबकि
हम इन सब चीज़ों को
मानें - महसूस करें,
ठीक उस तरह जैसे कि
हम एक मूर्ति को
मानें तो ईश्वर नहीं तो पत्थर......

बुधवार, सितंबर 28, 2011

हे नारी तू सागर है....

हे नारी तू सागर है
जहां नदियाँ मिलतीं आकर हैं
पुरुष समझता आधा - पौना
कहता घरेलू गागर है.....
जिसने भाँप लिया रत्नों को
तेरे आँचल के साए में,
समझो सही अर्थ में उसका
देवी - देवताओं का घर है.....

बुधवार, सितंबर 21, 2011

चर्चित बाबा के चक्कर में....

चर्चित बाबा के चक्कर में
नटखट बाला हुई बीमार,
बाबा हैं साधू - सन्यासी
वो पूरी कलयुगी नार.....
बाबा जब भी धुनी रमाते
वो हो जाती है हाज़िर,
इधर - उधर से ढांप - ढूंप के
करने लगती कविता वार,
फिर भी बाबा ना बोलें जब
ध्यान तोड़ती सीटी मार.....
आप लोग ज्ञानी - ध्यानी सब
जल्दी कोई उपाय बताएं,
नहीं तो बाबा चले हिमालय
छोड़ - छाड़कर ये संसार.......

शनिवार, सितंबर 10, 2011

ये आशिकी का भूत साला....

ये आशिकी का भूत साला सिर पे चढ़के बोलता
और माशूक है कि दिल का दरवाज़ा ही नहीं खोलता....
रोज़ लगते चक्कर उसकी गली के यारों
फिर भी एक कुत्ता देखते ही हमको भौंकता......
सपने में भी आती है तो बाप और भाई के साथ
हम नींद में चौंक जाते हैं जैसे बच्चा चौंकता....
भूल से एक दोस्त से कर बैठे हैं ज़िक्र हम
वो भी साला घाव पे हमेशा नीबू ही है निचोड़ता....

गुरुवार, सितंबर 08, 2011

अमर सिंह जी अमर रहे....

अमर सिंह जी अमर रहे
नोटों से तर -  बतर रहे,
आप उधर तिहाड़ में
बण्डल सारे इधर रहे,
देश पर एहसान है कि
आप बहुतों के काम आये,
बहुतों को इधर - उधर
ले - दे के सेट कराये,
जिनका काम बनाया
उन्होंने ही रंग दिखाया,
खुद हैं काबिज सत्ता पे
आपको तिहाड़ दिखाया,
इसीलिए कहावत है कि
घुन हो तो घुन की तरह रहो,
वर्ना गेहूं का साथ किया
तो बेटा अब साथ पिसो....

वो आये किये धमाका....

वो आये किये धमाका
और मुस्कुराते निकल गए,
सोचा भी नहीं इंसानियत के
जनाजे निकल गए,
आओ - मिलें - बैठें
बातों से जी बहलायें,
उजाड़ना था जिन्हें वो तो
कब के उजाड़ गए......

सोमवार, सितंबर 05, 2011

इस दिल को पहली बार....

इस दिल को पहली बार कोई दुखाता चला गया
वाकई वो हुनरमंद था दुआ पाता चला गया,
लफ्ज़ नहीं थे इसलिए मुस्कुरा के रह गए
वो आराम से अपना नश्तर चलाता चला गया....


शनिवार, सितंबर 03, 2011

क्यों निराश इतना क्या सूर्य बुझ गया....

क्यों निराश इतना क्या सूर्य बुझ गया
सूख गए सागर, या हिमालय झुक गया
आ बता कहाँ तुझे चोट है लगी
धरती मां है देख लिए औषधि खड़ी
इस उमर में थक गया संसार देख कर
या डर गया सच्चाई का अंगार देखकर
चल खड़ा हो, हार अभी मानना नहीं
वो साथ तेरे हर समय, पुकारना नहीं
देख ज़रा इस तरफ 'चर्चिती निगाह' में
तू अकेला है नहीं, इस ज़िन्दगी की राह में.....


गुरुवार, सितंबर 01, 2011

हे विघ्नेश्वर - हे गणराया....

हे विघ्नेश्वर - हे गणराया
ज़रा दिखाओ अपनी माया,
महंगाई और घोटालों से
जन - जन का अब दिल बौराया...
किसी को रोटी नहीं नसीब
किसी ने आधा देश पचाया,
हे विघ्नेश्वर - हे गणराया
ज़रा दिखाओ अपनी माया...
सिर पर चढ़कर स्वार्थ बोलता
रिश्ते रह गए केवल छाया,
आपको भी तो स्वार्थ के कारण
लोगों ने भारी माल चढ़ाया,
हे विघ्नेश्वर - हे गणराया
ज़रा दिखाओ अपनी माया...
अपने पास नहीं धन - दौलत
बस दया - धर्म लेकर आया,
यही प्रसाद चढ़ाता तुमको
बाकी तुम समझो गणराया,
हे विघ्नेश्वर - हे गणराया
ज़रा दिखाओ अपनी माया...