क्यों निराश इतना क्या सूर्य बुझ गया
सूख गए सागर, या हिमालय झुक गया
आ बता कहाँ तुझे चोट है लगी
धरती मां है देख लिए औषधि खड़ी
इस उमर में थक गया संसार देख कर
या डर गया सच्चाई का अंगार देखकर
चल खड़ा हो, हार अभी मानना नहीं
वो साथ तेरे हर समय, पुकारना नहीं
देख ज़रा इस तरफ 'चर्चिती निगाह' में
तू अकेला है नहीं, इस ज़िन्दगी की राह में.....
सूख गए सागर, या हिमालय झुक गया
आ बता कहाँ तुझे चोट है लगी
धरती मां है देख लिए औषधि खड़ी
इस उमर में थक गया संसार देख कर
या डर गया सच्चाई का अंगार देखकर
चल खड़ा हो, हार अभी मानना नहीं
वो साथ तेरे हर समय, पुकारना नहीं
देख ज़रा इस तरफ 'चर्चिती निगाह' में
तू अकेला है नहीं, इस ज़िन्दगी की राह में.....
very nice inspiring lines,
जवाब देंहटाएंBAHUT KHOOB BHAI VISHAL. KAMAL KAR DIYA,, VERY GOOD LGE RAHO
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंचल खड़ा हो, हार अभी मानना नहीं
प्यारे भाई, 'चर्चित जी' अपने इस खूबसूरत से ब्लॉग से परिचित करवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद| अब तक तो आप के पेड़ के कुछ ही मीठे फल चखने को मिले थे, इस बार तो पूरा का पूरा बगीचा ही मिल गया! अब एक-एक कर आप की रचनाओं का आनंद लूँगा|
जवाब देंहटाएंअपनी इस रचना में आपने, बहुत ही बढियाँ भाव प्रस्तुत किये हैं, "धरती मां है देख लिए औषधि खड़ी
इस उमर में थक गया संसार देख कर..." बहुत बहुत शुभकामनाएं|
बहुत खूब....
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