शनिवार, सितंबर 03, 2011

क्यों निराश इतना क्या सूर्य बुझ गया....

क्यों निराश इतना क्या सूर्य बुझ गया
सूख गए सागर, या हिमालय झुक गया
आ बता कहाँ तुझे चोट है लगी
धरती मां है देख लिए औषधि खड़ी
इस उमर में थक गया संसार देख कर
या डर गया सच्चाई का अंगार देखकर
चल खड़ा हो, हार अभी मानना नहीं
वो साथ तेरे हर समय, पुकारना नहीं
देख ज़रा इस तरफ 'चर्चिती निगाह' में
तू अकेला है नहीं, इस ज़िन्दगी की राह में.....


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||


    चल खड़ा हो, हार अभी मानना नहीं

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  2. प्यारे भाई, 'चर्चित जी' अपने इस खूबसूरत से ब्लॉग से परिचित करवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद| अब तक तो आप के पेड़ के कुछ ही मीठे फल चखने को मिले थे, इस बार तो पूरा का पूरा बगीचा ही मिल गया! अब एक-एक कर आप की रचनाओं का आनंद लूँगा|
    अपनी इस रचना में आपने, बहुत ही बढियाँ भाव प्रस्तुत किये हैं, "धरती मां है देख लिए औषधि खड़ी
    इस उमर में थक गया संसार देख कर..." बहुत बहुत शुभकामनाएं|

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