रविवार, मार्च 19, 2017

दोनों की तूफानी शैली बड़ा बवंडर लायेगी...


सभी विरोधी परेशान थे
एक अकेले मोदी से,
अब बेचारों का क्या होगा
कैसे निपटेंगे योगी से...
दोनों की तूफानी शैली
बड़ा बवंडर लायेगी,
चोर-उचक्कों-गुंडों को
अब नानी याद दिलायेगी...
यूपी में सुख-शांति-तरक्की
का परचम लहरायेगा,
वहां की जनता के चेहरों पर
नई मुस्कुराहटें लायेगा...
जाति-धर्म से ऊपर उठकर
न्याय करेंगे योगी जी,
देश-राज्य के विधि-विधान का
मान रखेंगे योगी जी....

इसी आशा और विश्वास के साथ
बीजेपी - मोदीजी - योगी जी
एवं यूपी की समस्त जनता जनार्दन
को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें

सोमवार, मार्च 13, 2017

चिमटा चला के मारा, बेलन घुमा के मारा...



चिमटा चला के मारा, बेलन घुमा के मारा
फिर भी बचे रहे तो, भूखा सुला के मारा

बरसों से चल रहा है, दहशत का सिलसिला ये
बीवी ने जिंदगी को, दोजख बना के मारा

कैसे बतायें कितनी मनहूस वो घडी थी
इक शेर को है जिसने शौहर बना के मारा

वैसे तो कम नहीं हैं हम भी यूं दिल्लगी में
उसपे निगाह अक्सर उससे बचा के मारा

चर्चित को यूं तो दिक्कत, चर्चा से थी नहीं पर
बीवी ने आशिकी को मुद्दा बना के मारा

- विशाल चर्चित

दुष्ट ने है छोड़ दिया बीपी बढ़ाय के...


जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा...

हमने फेंका गुब्बारा है भरके कई रंग
आओ होली खेलें दोस्तों शुभकामना के संग
जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा......

खुशियों की अबीर बरसे और बरसे ढेरों प्यार
जीवन में सबके हो हमेशा हँसती हुई बहार
जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा......

जो, जो चाहे - वो, वो पाये, कोई चाहत ना बच पाये
जब देखें-जिसको देखें हम - हँसता हुआ नजर आये
जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा......

धन-दौलत-इज्जत-शोहरत, कहीं कमी कोई ना हो
हे ईश्वर, कुछ ऐसा कर कि दीन दुखी कोई ना हो
जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा......

सभी जगह हो अमन - चैन, एकता औ भाईचारा हो
सभी दिलों में मानवता - नैतिकता का बोलबाला हो
जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा......

'चर्चित' की है चाह यही, हरा - भरा सुखमय संसार
यही कुदरती रंग है सच्चा, होली का असली शृंगार
जोगीरा सारारारारा - जोगीरा सारारारारा......

एक बार फिर से -

/////// होली बहुत - बहुत मुबारक ///////

बुधवार, मार्च 08, 2017

महिला दिवस पर एक मुक्तक...


महिला दिवस पर एक खास रचना...

हे नारी तू सागर है...

हे नारी तू सागर है
जहां नदियाँ मिलतीं आकर हैं
पुरुष समझता आधा - पौना
कहे घरेलू गागर है...

जिसने भाँप लिया रत्नों को
तेरे आँचल के साए में,
सही अर्थ में समझो उसका
देवी - देवताओं का घर है...

फ़र्ज़ - धर्म और संस्कार
बचपन से साथ लिए चलती,
इन सीमाओं के बावजूद
उन्नति करती तू अक्सर है...

पुरुष उलझ जाता अक्सर
दुनियादारी के पचड़ों में,
पर तेरे लिए तो घर - परिवार
सारी दुनिया से बढ़कर है...

नौ माह तक अपने खून से
सींच-सींच देती आकार,
फिर सहती पीड़ा अथाह
तब आता बच्चा धरती पर है...

धन्य तेरी ये सहनशीलता
ऋणी तेरा संसार सकल,
हे नारी, तुझको "चर्चित" का
श्रद्धा से भरपूर नमन है...

- विशाल चर्चित