रविवार, मई 10, 2015

माँ........... नहीं समझ आई ये दुनिया मुझे...


माँ...........
नहीं समझ आई ये दुनिया मुझे
नहीं समझ आये ये रिश्ते मुझे
नहीं समझ आई ये ज़िन्दगी की
कभी धूप और कभी छाँव,
समझ आई तो सिर्फ एक तू
तेरा प्यार - तेरी ममता और
तेरे आँचल की सुहानी छाँव......
समझ आया तो तेरे हाथों का
वो प्यारा स्पर्श - वो सहलाना,
मुझे हर अच्छा - बुरा समझाना
गुस्से में बस यूँ ही मुझे
न जाने किन किन नामों से बुलाना.....
आज हूँ बहुत दूर तुझसे फिर भी
फोन पर तेरी एक आवाज़ ही
बढ़ा देती मेरा उत्साह - मेरी ताकत,
इतनी मुश्किलों भरी है ज़िन्दगी
फिर भी जीने की एक चाहत......
सच कहूं, बहुत डर जाता हूँ मैं
अगर देख लूं कोई ऐसा सपना कि
तू नहीं है अब यहाँ मेरे साथ,
चली गयी है दूर - बहुत दूर मुझसे
शायद कहीं किसी दूसरी दुनिया में,
कांप जाता हूँ मैं सिर से पैर तक
कांप जाता हूँ सिर्फ इस एक ख़याल भर से ही
और नहीं हो पाता सामान्य तब तक
तब तक जब तक कि नहीं हो जाए तुमसे बात
नहीं हो जाए पक्का यकीन - पक्की तसल्ली कि
तुम हो एकदम ठीक - स्वस्थ और खुश......
तो बस यूँ ही हमेशा खुश दिखना
हमेशा खूब चुस्त - दुरुस्त तंदरुस्त दिखना,
वर्ना मेरी ठन जायेगी ईश्वर से -उसकी सत्ता से
क्योंकि मुझे नहीं मालूम कि
ईश्वर क्या है - कौन है - कैसा है
जब से आँख खुली है तुझे ही देखा है
तुझे ही जाना है - तुझे समझा है बस
तू ही है मेरे लिए ईश्वर - उसका हर रूप
मतलब तू नहीं तो ईश्वर भी नहीं.........

- VISHAAL CHARCHCHIT

माँ, जहां ख़त्म हो जाता है अल्फाजों का हर दायरा...

माँ,
जहां ख़त्म हो जाता है
अल्फाजों का हर दायरा,
नहीं हो पाते बयाँ
वो सारे जज़्बात जो
महसूस करता है हमारा दिल,
और आती हैं जेहन में
एक साथ वो तमाम बातें....
छाँव कितनी भी घनी हो
नहीं हो सकती सुहानी
माँ के आँचल से ज्यादा....
रिश्ता कितना भी गहरा हो
नहीं हो सकता है कभी
एक माँ के रिश्ते से गहरा...
क्योंकि रिश्ते तो क्या
इस जहां से ही हमारा
परिचय कराती है एक माँ ही,
हर एहसास - हर अलफ़ाज़ का
मतलब भी बताती है एक माँ ही...
इसलिए माँ तुम्हारे बारे में
क्या कह सकते हैं हम
कुछ नहीं - कुछ नहीं - कुछ नहीं !!!
- VISHAAL CHARCHCHIT

शुक्रवार, मई 08, 2015

तब मौन हो जाता है अत्यंत आवश्यक...

मौन हो जाता है
अत्यंत आवश्यक,
तब -
जब हो गया हो
बहुत अधिक
कहना या सुनना,
जब लगने लगे कि 
अब नहीं चाहते लोग
आपकी सुनना...
जब नहीं चल रहा हो
किसी पर अपना बस,
प्रतिकूल परिस्थितियों
के कारण जब
नहीं रह जाये
जीवन में कोई रस...
जब व्यथित हो चला 
हो आपका मन,
जब नीरसता से भरा 
हो वातावरण...
तब हो जायें शांत
तब हो जायें स्थिर
तब हो जायें उदासीन
तब हो जाये मौन...
क्योंकि -
मौन आत्मचिन्तन है
मौन आत्ममंथन है
मौन है परिमार्जन ह्रुदय का
मौन आत्मा का स्पंदन है...

- विशाल चर्चित