मौन हो जाता है
अत्यंत आवश्यक,
तब -
जब हो गया हो
बहुत अधिक
कहना या सुनना,
जब लगने लगे कि
अब नहीं चाहते लोग
आपकी सुनना...
जब नहीं चल रहा हो
किसी पर अपना बस,
प्रतिकूल परिस्थितियों
के कारण जब
नहीं रह जाये
जीवन में कोई रस...
जब व्यथित हो चला
हो आपका मन,
जब नीरसता से भरा
हो वातावरण...
तब हो जायें शांत
तब हो जायें स्थिर
तब हो जायें उदासीन
तब हो जाये मौन...
क्योंकि -
मौन आत्मचिन्तन है
मौन आत्ममंथन है
मौन है परिमार्जन ह्रुदय का
मौन आत्मा का स्पंदन है...
- विशाल चर्चित
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-05-2015) को "चहकी कोयल बाग में" {चर्चा अंक - 1970} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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