सोमवार, जनवरी 30, 2012

ये मेरे कुछ शेर.....

उन्हें क्या पता उस दिल की मुहब्बत
जिसको कभी आजमाकर न देखा,
कहते हैं यूं तो कि दुनिया है देखी
मगर अपना दिल आजमाकर न देखा
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रोज़ ढूंढते हैं नयी तरकीब उन्हें भुलाने के वास्ते
रोज़ चले आते हैं वो अपनी याद दिलाने के वास्ते
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क्यों बुझा सा फिर रहा यार तू इधर - उधर
देख तो तेरे लिए दिल चिराग हो गया......
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हमको तो जो कहना था कह गए अब तो
उसका ही समझने का इरादा नहीं लगता....
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जब इरादे नेक हों और हौसले भी हों बुलंद
क्या वजह कि आसमां भी हो नहीं क़दमों तले
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सोचा था मिलके दिल की एक किताब लिखेंगे
तुमने तो यार इश्क को अखबार कर दिया.....
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मजे में पड़े हो उफ़ तक नहीं करते
तुम्हें याद मेरी आती नहीं क्या,
न हिचकी, न फ़ोन.और न मेसेज
तुम्हें दूरियां ये सताती नहीं क्या....
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कई शेर कहते हम औरों की खातिर
हर शेर दिल पे लिया मत करो जी,
फ़साना बयाँ होता है आशिकों का
तुम शक हमपे किया मत करो जी...
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बहुत है नाज़ तुझको आसमानी तेवरों पर तो
समझ लेना कि दिल तलवार से जीता नहीं जाता
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जख्म दे तो दिया अब लेकर फिरो
हाथ में तुम भले मरहम-ओ-पट्टियां,
दिल जो टूटे कभी ज़ल्द जुड़ता नहीं
जुडती हैं जिसतरह हड्डियां - वड्डियां....
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क्या वजह कि इश्क दबा हुआ, क्यों उडी हुई हैं हवाइयां
क्यों दूर - दूर ही फिर रहे, क्यों बढ़ा रहे रुस्वाइयां......
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मैं सिहर उठा रग-ओ-जान तक
हर लफ्ज़ दिल में उतर गया,
तू पसंद था यूं तो पहले भी
ये खुमार हद से गुजर गया...
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चलो जिद छोड़ दो चर्चित बदल दो रास्ता अपना
कि जिसपे चल रहे हो तुम ये उस दिल तक नहीं जाता
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जज़्बात बहुत दिख रहे अलफ़ाज़ कहाँ हैं
तुम पर तो फडफडा रहे परवाज़ कहाँ है,
बेचैनी बहुत दिखती पर ऐन मौके पे गायब
गर है जूनून-ए-इश्क तो आगाज़ कहाँ है
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गर खुदा पे है यकीन फिर सवाल क्यों
बंदगी सच्ची तेरी तो फिर मलाल क्यों
चुपचाप किये जा तू इबादत यूं इसतरह
खुद खुदा कहे कोई और फिलहाल क्यों
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यूं शोखी - शरारत - अदा बांकपन
नहीं ठीक लगती है नीयत तुम्हारी
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हमारा फ़र्ज़ था कोशिश वो हमने पहले ही कर ली
अब बारी है खुदा तेरी तू अपना फ़र्ज़ अदा कर दे
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ये आँखें हर घड़ी रहती हैं सिर्फ महबूब तुझ पर ही
तुझे चलता है मगर पता इत्तेफाकन कभी - कभी
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बेरुखी - बेदिली - बेमज़ा दिल्लगी
बेवजह - बेतहाशा सी ये ज़िन्दगी
चोट पे चोट से हाल दिल का बुरा
क्या करें ना करें जो दुआ बंदगी
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जो रूठा है वो मानेगा, तबीयत से तुम आओ तो
ज़रा उसकी सुनो कुछ तुम, ज़रा अपनी सुनाओ तो

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गुरुवार, जनवरी 26, 2012

गणतंत्र दिवस के अवसर पर


गणतंत्र दिवस के अवसर पर
आइये एक दूसरे को शुभकामना देते हुए 
आइये शपथ लें कि -

अपने संविधान - तिरंगे, राष्ट्र गान और 
सभी दिवंगत महापुरुषों का सम्मान करेंगे,
संविधान कि सभी धाराओं एवं नियमों का
ठीक से पालन हो इसका ध्यान रखेंगे,
अंग्रेजी लिखेंगे - पढेंगे - बोलेंगे लेकिन
मातृभाषा हिंदी का ह्रदय में 
सबसे विशेष स्थान रखेंगे.......
विदेश - विदेशी तकनीक तथा
विदेशी संसाधनों का दोहन करेंगे पर
अपने देश - इसकी गरिमा का
सदैव आन - बान - शान रखेंगे.....
किसी बात पर असहमति या विरोध हो
तो धरना - प्रदर्शन - आन्दोलन करेंगे
लेकिन राष्ट्र की कोई अपूरणीय क्षति न हो
इस बात का सदैव ध्यान रखेंगे......
स्वयं की सुख - समृद्धि - उन्नति एवं 
यश - कीर्ति में वृद्धि करते रहेंगे पर
सदा इससे जुड़ा हुआ अपने 
राष्ट्र के विकास का अभियान रखेंगे....
सभी वर्गों, धर्मों और समाजों को
को जोड़ते हुए एकता - अखंडता और 
भाईचारे को बढ़ावा देते हुए सबके चेहरों पर 
अपनेपन की विशेष मुस्कान भरेंगे.......
और अगर अपने मरने से बहुतों का भला होता हो
तो हम सदैव बन्दूक की नोक पर अपनी जान रखेंगे.....

:::::::::: जय हिंद :::::::::::

मंगलवार, जनवरी 24, 2012

' नुमाइशी महिलाएं - यहाँ आ जाएँ '

आजकल सुन्दर नुमाइशी महिलाओं की मांग काफी बढ़ गयी है........पहले तो खाली सौन्दर्य प्रसाधनों और महिलाओं और घर - गृहस्थी से जुडी चीज़ों के विज्ञापन के लिए ही इनकी ज़रुरत होती थी लेकिन आजकल तो हर जगह इनका ही बोलबाला है.........अब भला बताइये कि नयी कार की लॉन्चिंग में भला इनका क्या काम?? लेकिन नहीं आप देखेंगे कि कार के दोनों तरफ दो सुन्दर बालाएं विराजमान ही रहती हैं...........क्रिकेट - फ़ुटबाल के मैच में सोचिये कि सुंदरियों का क्या काम पर वहाँ भी चीयर लीडर बनाकर बुला लिया जाता है...........कुछ डांस - वांस दिखाकर लोगों को बांधकर रखने के लिए.........तमाम सांस्कृतिक कार्यक्रमों - पुरस्कार वितरण समारोहों में भी मंच संचालन में भी इनकी मौजूदगी अनिवार्य हो गयी है..........यहाँ इनका काम सिर्फ कागज़ में से देख - देखकर अंग्रेजी में विजेताओं का नाम पुकारना होता है.........नेता लोग भी चुनाव प्रचार में अपने साथ दो - चार को रखते ही हैं........इनका काम भाषण नहीं बल्कि सिर्फ हाथ हिलाना होता है.......अब जब हर क्षेत्र में इन नुमाइशी महिलाओं की घुसपैठ हो गयी है तो हमारे साहित्यकार भाई लोग कहाँ से पीछे रहते..........उन्होंने भी शुरू कर दिया इनके जादू का सहारा लेना............अब चाहे रचना या ग़ज़ल का सौन्दर्य से लेना - देना हो या न हो एक सुन्दर बाला ला कर कड़ी कर देते हैं...........लिख रहे हैं जीवन दर्शन पर माता जी की फोटो होना जरूरी है.........सुना रहे हैं ग़ज़ल में अपनी ज़िन्दगी का दुखड़ा पर यहाँ भी वो बाई जी मौजूद हैं..........इस बारे में इन महारथियों का मानना है बिना किसी आकर्षण के इनकी रचना पे किसी कि नज़र ही नहीं जाती........मैंने भी सोचा कि यार इनकी बात तो ठीक है.......कोई चुम्बक तो होना ही चाहिए पाठकों को खींचने के लिए...........तो इसतरह अब जाकर मेरी आँख खुली और पता चला कि आखिर लोग कैसे बहुत जल्दी बड़े साहित्यकार बन जाते हैं........उनके पाठकों की संख्या दिन - दूनी रात चौगुनी दर से बढती हैं जबकि हमारी रचनाओं पे हमेशा पतझड़ ही छाया रहता है........इसलिए सोचा है की अब अपन भी सुन्दरता का जादू चलाएंगे..........तो लीजिये पहला नमूना पेश है.............!!!

रविवार, जनवरी 15, 2012

ये मेरे कुछ शेर.....

चलो तुम मिल गए मुझको खुदा का शुक्र है यारा 
नहीं तो दिल-मुहब्बत-आशिकी ये कौन समझाता 
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ठहाके गूंजने दो मत दखल दो आ के तुम 'चर्चित'
तुम्हारी मौत पर मायूश थे कल ये सभी अपने 
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आज की रात है मातम, ज़रा इसका मज़ा ले लो 
सुबह कल किस ख़ुशी में क्या पता हँसना पड़े तुमको
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आज की रात है मातम, ज़रा इसका मज़ा ले लो 
सुबह कल किस ख़ुशी में क्या पता हँसना पड़े तुमको 
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दिल फकीरी की तरफ अब कुछ कदम और बढ़ चला है
कहते थे अपना जिसे हम, गैरों सा कुनबा हो चला है.... 
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कोई जब दिल को छू दे तो कलम चल पड़ती है यूं ही
शुरू हो जाता है फिर दौर कई ताज़ा फसानों का...... 
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यहाँ पे ग़म बहुत अक्सर रुलाने को जमाने में
कहाँ बहलायें दिल जाकर जहां देखो वहीँ मातम.... 
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कभी किसी का बहुत ख़ास-ओ-अज़ीज़ न बन 
कि बहुत मिठास कई बीमारियाँ ले आती है... 
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ये चांदमारी तुम्हारी, आफत में जां हमारी
निशाना लगे कि चूके, मौत पक्की हमारी 
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अब इसको कहें मुहब्बत या एक महज़ फितूर
उसने वो पढ़ लिया मैंने लिखा नहीं........ 
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ख़्वाबों में भी कभी हम बेवफा न थे
फिर भी न जाने क्यों वो हैं खफा - खफा..... 
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सुना कर दास्तान - ए - ग़म अगर राहत मिले तुमको
सुनाते जाओ यूं ही तुम कि जब तक सांसें हैं मेरी..... 
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इस दिल में आते - जाते हैं अक्सर तमाम लोग
पर जिस तरह से तुम गए हो जाया नहीं जाता 
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करते हैं कई लोग किताबी बातें तो बहुत अच्छी 
पर मैदान छोड़ देते हैं जब हकीकत से पड़े पाला 
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रिश्तों को समझने में कई खा जातें हैं चक्कर
कि जिनको शूरमा कहते कई मोर्चों पे लोग अक्सर 
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शर्म आती नहीं तुमको यूं मुझको बेवफा कहते
खड़े हैं मोड़ पर अब भी जहां पे तुमने छोड़ा था 
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बहुत ज्यादा तकल्लुफ क्यों अगर अपना कहा तुमने
पकड़ लो रास्ता सीधा जो दिल के इस तरफ आता.... 
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आशिकी में होशियारी आम होती जा रही
यार की आँखों अब चश्में से देखा जा रहा 
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आपको देखे से बढती आँखों में कुछ रौशनी
बेवजह देखा करें अब इतने हम पागल नहीं 
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दिखती कहाँ हैं आज कल इतनी दरियादिली
अब तो एहसान बाद में पहले जताया जाता है 
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उन्हें गुमान है अपने हुस्न पर हमें प्यारी है खुद्दारी
उन्हें महफ़िल का चस्का है हमें यारी-ओ-दिलदारी 
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कोई इंसां हो तो बात करें एक पत्थर से उम्मीद नहीं
जो शोर बहुत करता है पर दिल जैसी कोई चीज़ नहीं 
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जब ग़मों का दौर हो तो हौसला ज़रूरी है
जिस तरह से तैरना होता है दरिया के खिलाफ
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अच्छा है सताती हैं मेरी यादें तुम्हें अक्सर
चलो इसी बहाने दिल से आवाज़ तो आती है 
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वो आदतन चलाता है अपनी मर्ज़ी हम आदतन रूठ जाते हैं
यूं इस तरह उससे दिल के तार अक्सर जुड़ते हैं छूट जाते हैं 
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ये कोई मामूली नहीं दर्द - ए - इश्क है
आते - आते आया है, जाते - जाते जाएगा....
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तुम घबराया न करो यूं उसके जाने से ' चर्चित '
वो बार - बार जाता है बार - बार आने के लिए 
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नहीं कोई घाव है ऐसा कि जिसको भर न पाए वक़्त
सही मरहम मिले तो ज़िन्दगी फिर से चहकती है.... 
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लगता है तुम्हें शौक है पहेलियाँ बुझाने का
वर्ना इस तरह से दर्द बयाँ कौन करता है 
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जुड़े हों दिल इरादे हों तो मुश्किल कुछ नहीं चर्चित
जो रूठा है वो मानेगा अगर तबियत से कोशिश हो 
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क्या मज़ा है इश्क में जो अगर रूठें न वो
उनके तीखे तेवरों का लुत्फ़ ही कुछ और है 
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बहुत गहरी उदासी है किसी सदमे में हो शायद
नहीं तो इस कदर तकदीर को कोसा नहीं जाता 
                   
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गुरुवार, जनवरी 12, 2012

भ्रष्टाचार की जय !!!!

पिछले कुछ समय से काफी जोर - शोर हो - हल्ला मचाया जा रहा है कि "लोकपाल विधेयक लाओ - भ्रष्टाचार मिटाओ"............"नहीं रहेगा नामोनिशान भ्रष्टाचार का".......तो भाई अब मैं पूछता हूँ कि खाने का काम है क्या??? लाख़ों सालों से चली आ रही.........हमारे देश के कण - कण में व्याप्त भ्रष्टाचार कि परम्परा को कुछ महीनों या सालों में हटा दोगे क्या........??? अरे हजारों साल पहले चार्वाक ऋषि ने जीने के लिए एक मन्त्र बतलाया था कि "यावत जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत".........अर्थात जब तक जियो सुख से जियो, कर्ज लेना पड़े तो लो पर घी पियो.........और हममे से तमाम लोग आज तक इसी मन्त्र पर अमल कर रहे हैं......जैसे कि कोशिश रहती है कि बस - ट्रेन में टिकट न लेना पड़े.........लाइन में न लगना पड़े.......स्कूल में अध्यापक को कैसे भी खुश करके परीक्षा में अच्छे अंक लाये जांय......ले - दे के सरकारी नौकरी पा ली जाय......ताकि ऊपरी आमदनी का मजा लिया जा सके.......राशन कार्ड - ड्राइविंग लाइसेंस हर काम ले दे के करवाने का जुगाड़ी आयडिया........सब भ्रष्टाचार के ही अलग -अलग रूप हैं............कहाँ - कहाँ मिटाओगे ??? कहाँ - कहाँ लोकपाल बिठाओगे ??? और लोकपाल क्या आसमान से आयेंगे क्या??? उनके बंगला - गाडी - विदेश यात्रा के सपने नहीं होंगे क्या ??? उन्हें अपने बच्चे को विदेश नहीं पढाना होगा क्या ??? पढ़ाई के बाद उसका कैरियर नहीं बनाना ?? उन्हें अपनी बेटी की शादी किसी अमीर घर में नहीं करना क्या ??? और एक बात , मान लीजिये कि 100 में 10 भ्रष्ट नहीं भी हुए तो क्या बना - बिगाड़ लेंगे......हमारे कलमाड़ी, राजा, सुखराम, कनिमोझी, यदुरप्पा, लालू और नीरा राडिया जैसे महारथी अपने खून - पसीने से लगातार सींच रहे हैं भ्रष्टाचार के वृक्ष को.......ऐसे कैसे सूख जाएगा.......??? अरे लोकपाल विधेयक अगर लागू हो भी गया तो क्या हो जाएगा.........जहां - जहां दिक्कत होगी संशोधन कर लिया जाएगा.......जितने लोकपाल पटते हैं पता लिया जाएगा.........वर्ना रास्ते से हटा दिया जाएगा.........सीबीआई - इनकम टैक्स वालों को पीछे ला दिया जाएगा.......इधर - उधर फंसा दिया जाएगा.......उनको उनकी औकात बता दिया जाएगा........यानी कि भ्रष्टाचार था - है - और रहेगा..........तो इसी बात पर बोलो प्रेम से............भ्रष्टाचार की जय !!!!

रविवार, जनवरी 01, 2012

चलिए चला गया 2011....

चलिए चला गया 2011 
ले गया अपने साथ -
देव - शम्मी - नवाब पटौदी 
भीमसेन जोशी, जगजीत सिंह और
मकबूल फ़िदा हुसैन साहब को,
दे गया राहत दुनिया को -
ओसामा और गद्दाफी से.....
साथ में दे गया सिर दर्दियाँ -
तमाम घोटालों और महंगाई की 
लुढ़कते सेंसेक्स और रुपये की,
भ्रष्टाचार और लोकपाल पर
राजनीति और कूटनीति की....
लीजिये आ रहा है 2012
कामना है कि लाये अपने साथ -
कुछ ख़ास उपलब्धियां
कुछ ख़ास खुशहालियां,
दे जाए कुछ राहत -
बढती महंगाई से - भ्रष्टाचार से
बढ़ते अपराधों और घोटालों से,
कर जाए पूरी तरह से सफाया -
आतंकवादियों - नक्सलवादियों का
भुखमरी और बेरोज़गारी का....
और दे जाए कुछ सदबुद्धि - 
हमारे राजनेताओं को कि
अपने बारे में ही नहीं 
कुछ देश के बारे में भी सोचें,
हमारे युवाओं को कि
पति - पत्नी - प्रेमिका के अलावा
माँ - बाप के बारे में भी सोचें....
फेसबुक के साथ - साथ 
लाइफ बुक के बारे में भी कुछ सोचें...
बाहरी तकनीक की नक़ल के साथ-साथ
अपनी अक्ल लगाने पर भी कुछ सोचें...
पिज्जा - बर्गर - कोक निगलते हुए
कम उम्र में ही बढ़ते मोटापे और 
बिगड़ते स्वास्थ्य पर भी कुछ सोचें...
टीवी पर बेमतलब मनोरंजन के साथ - साथ
सार्थक कार्यक्रमों पर भी कुछ सोचें.....
बहुत हो गया..........चलिए अब हम
आप सभी को नए साल के लिए 
हार्दिक शुभकामना भी तो दे दें.........
" नया साल हम सभी के लिए 
विशेष सुख - शांतिमय, हर्ष - आनंदमय, 
सफलता - उन्नति - यश - कीर्तिमय और
विशेष स्नेह - प्रेम एवं सहयोगमय हो !!!!