उन्हें क्या पता उस दिल की मुहब्बत
जिसको कभी आजमाकर न देखा,
कहते हैं यूं तो कि दुनिया है देखी
मगर अपना दिल आजमाकर न देखा
जिसको कभी आजमाकर न देखा,
कहते हैं यूं तो कि दुनिया है देखी
मगर अपना दिल आजमाकर न देखा
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रोज़ ढूंढते हैं नयी तरकीब उन्हें भुलाने के वास्ते
रोज़ चले आते हैं वो अपनी याद दिलाने के वास्ते
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क्यों बुझा सा फिर रहा यार तू इधर - उधर
देख तो तेरे लिए दिल चिराग हो गया......
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हमको तो जो कहना था कह गए अब तो
उसका ही समझने का इरादा नहीं लगता....
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रोज़ ढूंढते हैं नयी तरकीब उन्हें भुलाने के वास्ते
रोज़ चले आते हैं वो अपनी याद दिलाने के वास्ते
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क्यों बुझा सा फिर रहा यार तू इधर - उधर
देख तो तेरे लिए दिल चिराग हो गया......
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हमको तो जो कहना था कह गए अब तो
उसका ही समझने का इरादा नहीं लगता....
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जब इरादे नेक हों और हौसले भी हों बुलंद
क्या वजह कि आसमां भी हो नहीं क़दमों तले
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सोचा था मिलके दिल की एक किताब लिखेंगे
तुमने तो यार इश्क को अखबार कर दिया.....
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मजे में पड़े हो उफ़ तक नहीं करते
तुम्हें याद मेरी आती नहीं क्या,
न हिचकी, न फ़ोन.और न मेसेज
तुम्हें दूरियां ये सताती नहीं क्या....
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कई शेर कहते हम औरों की खातिर
हर शेर दिल पे लिया मत करो जी,
फ़साना बयाँ होता है आशिकों का
तुम शक हमपे किया मत करो जी...
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बहुत है नाज़ तुझको आसमानी तेवरों पर तो
समझ लेना कि दिल तलवार से जीता नहीं जाता
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जख्म दे तो दिया अब लेकर फिरो
हाथ में तुम भले मरहम-ओ-पट्टियां,
दिल जो टूटे कभी ज़ल्द जुड़ता नहीं
जुडती हैं जिसतरह हड्डियां - वड्डियां....
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क्या वजह कि इश्क दबा हुआ, क्यों उडी हुई हैं हवाइयां
क्यों दूर - दूर ही फिर रहे, क्यों बढ़ा रहे रुस्वाइयां......
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मैं सिहर उठा रग-ओ-जान तक
हर लफ्ज़ दिल में उतर गया,
तू पसंद था यूं तो पहले भी
ये खुमार हद से गुजर गया...
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चलो जिद छोड़ दो चर्चित बदल दो रास्ता अपना
कि जिसपे चल रहे हो तुम ये उस दिल तक नहीं जाता
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जज़्बात बहुत दिख रहे अलफ़ाज़ कहाँ हैं
तुम पर तो फडफडा रहे परवाज़ कहाँ है,
बेचैनी बहुत दिखती पर ऐन मौके पे गायब
गर है जूनून-ए-इश्क तो आगाज़ कहाँ है
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गर खुदा पे है यकीन फिर सवाल क्यों
बंदगी सच्ची तेरी तो फिर मलाल क्यों
चुपचाप किये जा तू इबादत यूं इसतरह
खुद खुदा कहे कोई और फिलहाल क्यों
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यूं शोखी - शरारत - अदा बांकपन
नहीं ठीक लगती है नीयत तुम्हारी
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हमारा फ़र्ज़ था कोशिश वो हमने पहले ही कर ली
अब बारी है खुदा तेरी तू अपना फ़र्ज़ अदा कर दे
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ये आँखें हर घड़ी रहती हैं सिर्फ महबूब तुझ पर ही
तुझे चलता है मगर पता इत्तेफाकन कभी - कभी
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बेरुखी - बेदिली - बेमज़ा दिल्लगी
बेवजह - बेतहाशा सी ये ज़िन्दगी
चोट पे चोट से हाल दिल का बुरा
क्या करें ना करें जो दुआ बंदगी
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जो रूठा है वो मानेगा, तबीयत से तुम आओ तो
ज़रा उसकी सुनो कुछ तुम, ज़रा अपनी सुनाओ तो
क्या वजह कि आसमां भी हो नहीं क़दमों तले
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सोचा था मिलके दिल की एक किताब लिखेंगे
तुमने तो यार इश्क को अखबार कर दिया.....
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मजे में पड़े हो उफ़ तक नहीं करते
तुम्हें याद मेरी आती नहीं क्या,
न हिचकी, न फ़ोन.और न मेसेज
तुम्हें दूरियां ये सताती नहीं क्या....
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कई शेर कहते हम औरों की खातिर
हर शेर दिल पे लिया मत करो जी,
फ़साना बयाँ होता है आशिकों का
तुम शक हमपे किया मत करो जी...
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बहुत है नाज़ तुझको आसमानी तेवरों पर तो
समझ लेना कि दिल तलवार से जीता नहीं जाता
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जख्म दे तो दिया अब लेकर फिरो
हाथ में तुम भले मरहम-ओ-पट्टियां,
दिल जो टूटे कभी ज़ल्द जुड़ता नहीं
जुडती हैं जिसतरह हड्डियां - वड्डियां....
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क्या वजह कि इश्क दबा हुआ, क्यों उडी हुई हैं हवाइयां
क्यों दूर - दूर ही फिर रहे, क्यों बढ़ा रहे रुस्वाइयां......
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मैं सिहर उठा रग-ओ-जान तक
हर लफ्ज़ दिल में उतर गया,
तू पसंद था यूं तो पहले भी
ये खुमार हद से गुजर गया...
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चलो जिद छोड़ दो चर्चित बदल दो रास्ता अपना
कि जिसपे चल रहे हो तुम ये उस दिल तक नहीं जाता
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जज़्बात बहुत दिख रहे अलफ़ाज़ कहाँ हैं
तुम पर तो फडफडा रहे परवाज़ कहाँ है,
बेचैनी बहुत दिखती पर ऐन मौके पे गायब
गर है जूनून-ए-इश्क तो आगाज़ कहाँ है
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गर खुदा पे है यकीन फिर सवाल क्यों
बंदगी सच्ची तेरी तो फिर मलाल क्यों
चुपचाप किये जा तू इबादत यूं इसतरह
खुद खुदा कहे कोई और फिलहाल क्यों
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यूं शोखी - शरारत - अदा बांकपन
नहीं ठीक लगती है नीयत तुम्हारी
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हमारा फ़र्ज़ था कोशिश वो हमने पहले ही कर ली
अब बारी है खुदा तेरी तू अपना फ़र्ज़ अदा कर दे
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ये आँखें हर घड़ी रहती हैं सिर्फ महबूब तुझ पर ही
तुझे चलता है मगर पता इत्तेफाकन कभी - कभी
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बेरुखी - बेदिली - बेमज़ा दिल्लगी
बेवजह - बेतहाशा सी ये ज़िन्दगी
चोट पे चोट से हाल दिल का बुरा
क्या करें ना करें जो दुआ बंदगी
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जो रूठा है वो मानेगा, तबीयत से तुम आओ तो
ज़रा उसकी सुनो कुछ तुम, ज़रा अपनी सुनाओ तो
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जो रूठा है वो मानेगा, तबीयत से तुम आओ तो
जवाब देंहटाएंज़रा उसकी सुनो कुछ तुम, ज़रा अपनी सुनाओ तो
वाह ..बहुत ही सुन्दर विचार