बुधवार, अगस्त 24, 2011

पढने की फुर्सत नहीं क्या करें भाई लोग....

पढने की फुर्सत नहीं क्या करें भाई लोग
और कुछ कवियों को लगा छापा-छापी रोग....
छापा छापी रोग लगा जिसको भाई
नहीं पचेगा भोजन जो ना करें छपाई.....
इसीलिये कुछ होशियार लोगों ने रस्ता ढूंढा
'Like' बटन दबाकर करते पढ़ने का नाटक झूठा....
यही नहीं पॉकेट में रखते कुछ शब्द हैं रेडीमेड
जैसे Nice - Wow -Lovely -और Very Good - Great .....
ऐसी तारीफें सुन कवि महोदय
सातवें आसमान पर चढ़ जाते हैं
थोड़ी देर के लिए स्वयं को 'टैगोर' से ऊपर पाते हैं....

रविवार, अगस्त 14, 2011

15 अगस्त.... इसी दिन हुए थे हम आजाद.....

15 अगस्त....
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
अपनी अक्ल लगाने के लिए
कुछ कर दिखाने के लिए....
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
अपनी जुगाड़ तकनीक का हुनर से
लाकर दूसरे का प्रोडक्ट उसपर
‘मेड इन इन्डिया’ लगाने के लिए...
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
20 किलो के बच्चे पर
20 किलो किताबें लादकर
‘ऑल इन वन’ बनाने के लिए,
स्कूल में खाली चैप्टर के नाम
बाकी ट्युशन - कोचिंग में पढ़ाने के लिए,
और ‘एक्जाम फिक्सिंग’ का फॉर्मूला निकाल
100 नंबर में 100 नंबर लाने के लिए.....
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
जोड़-तोड़, कुछ दे-ले कर
बाबू बन जाने के लिए,
और जनता को चक्कर लगवाकर
लाखों - करोड़ों बनाने के लिए...
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
अपनी मैनेजमेंट और
कम्युनिकेशन स्किल दिखाने के लिए,
मोबाइल - इंटरनेट के जरिए
एक नहीं 4 - 4 पटाने के लिए,
सबको शादी का देकर मां बनाने के लिए
बाद में मामला बिगड़ता देख
रफूचक्कर हो जाने के लिए....
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
चुनाव के समय अपने धर्म और
अपनी जाति का झंडा फहराने के लिए,
विद्वत्ता नहीं बल्कि धन - बल के हिसाब से
अपना नेता जितवाने के लिए,
और बाद में रिश्वत देकर
अपना काम कराने के लिए....
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
ईश्वर के सामने रटे - रटाये शलोक
और मंत्र हिनहिनाने के लिए,
भारी प्रसाद चढ़ाने का वादा कर
अपना काम बनाने के लिए...
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
सभी नियम और कानूनों को
धता बताने के लिए,
भ्रष्टाचार को उन्नति का मार्ग समझ
इसे जीवन में अपनाने के लिए,
और सिर से पैर तक तिरंगा लगाकर
अपने को देश भक्त बताने के लिए,
15 अगस्त और 26 जनवरी को
छुट्टी का दिन समझ कर
पिकनिक मनाने के लिए....

शनिवार, अगस्त 13, 2011

ये राखी के धागे........

क्या अजीब खेल हैं ज़िंदगी के
कि एक ही कोख से जन्म लेते हैं
वर्षों एक छत के नीचे साथ रहते हैं
लड़ते हैं - झगड़ते हैं - रूठते हैं - मनाते हैं
समझते हैं - समझाते हैं...
ढेर सारी चीजों पर -
ढेर सारी बातें करते हैं
हर सुख में - हर दुःख में
एक दूसरे का सहारा बनते हैं,
देखते ही देखते पता ही नहीं चलता
और आता है एक दिन ऐसा भी कि
न चाहते हुए भी बिछड़ जाते हैं हम...
बस रोते - बिलखते लाचार से
हाथ हिलाते रह जाते हैं हम...
अब तो सिर्फ आवाज सुनाई देती है
या वर्षों बाद मिलना हो पाता है...
इस बीच अकेले में हमें जोड़े रखता है
हमारा प्यार - हमारे बचपन की यादें
कुछ परम्पराएं - कुछ संस्कार
और इनकी खुशबू से भीगे धागे,
ये राखी के धागे........

सोमवार, अगस्त 08, 2011

महंगाई पर...

महंगाई से क्या फर्क है दसवां वेतन आयोग आएगा
तब हर बाबू हजारों में नहीं लाखों में वेतन पायेगा,
और दो लोगों के लिए रोज़ 5 - 5 किलो सेब ले जायेगा
कुछ खायेगा - कुछ लगाएगा और बाकी नाले में बहायेगा
वही बहाया हुआ सेब नाले से छानकर गरीब अपने घर ले जाएगा
और धो - धाकर सब्जी बनाकर खुद और बच्चों को खिलायेगा
इसतरह अमीर - गरीब दोनों का स्वार्थ सिद्ध हो जाएगा
और धीरे धीरे इस देश में स्वर्गलोकतंत्र तब आएगा....

रविवार, अगस्त 07, 2011

फ्रेंड दिवस तक आ पहुंची है अपनी रेलगाड़ी...

फ्रेंड दिवस तक आ पहुंची है अपनी रेलगाड़ी
चलो दोस्तों तैयार हो जाओ बना-वना कर दाढी
बना-वना कर दाढी कुल्ला - उल्ला कर लो
खखार - वखार कर गला - वला अच्छी तरह साफ़ कर लो
क्योंकि अब तो सारा दिन दोनों गाल बजाना है
और दोस्ती से जुड़े अच्छे - अच्छे शब्द
dictionary से ढूंढ - ढ़ाढ कर लाना है...
चलो जल्दी - जल्दी wish करो नहीं तो
ये गाडी छूट जायेगी,
और फिर दोस्ती का जश्न मनाने की
लास्ट डेट निकल जाएगी....
रिश्तों में भी लास्ट डेट घुस गया बड़ा अच्छा है
अब तो Manufacturing और expiry date लिए
पैदा होता बच्छा है......