सोमवार, नवंबर 07, 2016

झूठ - फरेब - अदाकारी...


सवालों से वही घबराते हैं
जिनके दिल में होता है
एक डर - एक चोर
होता है एक फरेब,
बोले होते हैं तमाम झूठ
छिपाये होते हैं तमाम राज
की होती हैं अदाकारियां
लगाये होते है कई मुखौटे...
तभी हर सवाल पर
हो जाता है दिल धक से
आ जाता है कलेजा मुंह को
कि अब क्या जवाब दें
कैसे टालें इस बला को,
इसीलिये तन जाती हैं भौहें
आ जाता है गुस्सा...
लेकिन याद रहे -

झूठ - फरेब - अदाकारी
नहीं छिपती - नहीं टिकती,
महल कैसा भी हो इनपर
ढहता है जरूर इक दिन...

- विशाल चर्चित

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