बढ़ते विकल्प
सबकुछ की लालसा
और भ्रमित जीवन...
विषयों की भीड़
प्रसाद सी शिक्षा
ढेर सारा अपूर्ण ज्ञान...
उत्सवों की भरमार
बढती चमक दमक
घटता आनंद...
व्यंजनों की कतारें
खाया बहुत कुछ
फिर भी असंतुष्टि...
सैकड़ों चैनल
दिन-रात कार्यक्रम
पर मनोरंजन शून्य...
रिश्ते ही रिश्ते
बढ़ती औपचारिकता
और घटता अपनापन...
अनगिनत नियम कानून
बढ़ते दाँव - पेच
और बढ़ता भ्रष्टाचार...
फलती-फूलती बौद्धिकता
सूखते-सिकुड़ते हृदय
और दूभर होती श्वास...
अनेकों सूचना माध्यम
सुगम होती पहुँच
फिर भी घटता संपर्क...
फैलती तकनीक
बढ़्ती सुविधायें
घटती सुख-शान्ति...
हजारों से जुड़ाव
सैकड़ों से बातचीत
फिर भी अकेले हम...
- विशाल चर्चित
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सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई जी
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