रविवार, अक्तूबर 19, 2014

रमोना, तुम ठीक तो हो ना.... ?!



रमोना, 
तुम ठीक तो हो ना
नहीं, 
बता रहे हैं तुम्हारे शुष्क होंठ
कि
नहीं हो तुम ठीक,
बता रही हैं तुम्हारी
बुझी - बुझी सी आंखें
कि कत्तई ठीक
नहीं हो तुम...
पता है कुछ तुम्हें?
न तुम ठीक हो और
न वो जल प्रपात नियाग्रा का
मिलते थे हम जिसके किनारे,
न ही ठीक है 'सूमी'
तुम्हारी प्यारी डॉलफिन
जिसे खिलाती थी तुम
चने - मूंगफलियां
और न जाने क्या - क्या...
अब वैसी नहीं लहलहाती
आल्पस की पहाड़ी वादियां भी
जैसे कि तुम्हारे स्वागत में
पहले लहलहाती थी...
भीलों का बच्चा 'कारू'
अब नहीं लाता किसी के लिये
जंगल से मीठी - मीठी बेर
मेरे लिये भी नहीं...
अब वैसे
नहीं मुस्कुराते
सिकोया के वृक्ष
जैसे कि पहले मुस्कुराते थे
तुम्हें देखकर हमेशा,
उनमें अब मधुमक्खियां भी
नहीं लगाती शहद के छत्ते...
सच में, एक तुम्हारे रूठ जाने से
पूरी कायनात लगती है जैसे
सहारा रेगिस्तान,
यहां तक कि खुद तुम भी...
गुस्सा छोड़ो और मेरे साथ चलो
हम फिर से मुस्कुरायेंगे
उन सबको जगायेंगे
उन सबके साथ झूमेंगे गुनगुनायेंगे
सुबह सूरज को चिढ़ायेंगे
रात में चांद को जलायेंगे
चलो, उठो... मान भी जाओ अब...
- विशाल चर्चित

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर,जब अपना कोई रू्ठ जाता है कायनात बिखर जाती है.
    सच.

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  2. इस स्नेह के लिये आपका हृदय से आभारी हूं सर जी !!!

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  3. बहुत हि सुंदर सर , धन्यवाद !

    आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 23 . 10 . 2014 दिन गुरुवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
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    1. आपका हृदय से आभार एवं आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें आशीष भाई !!!

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  4. सार्थक प्रस्तुति
    ज्योतिपर्व की हार्दिक मंगलकामनायें!

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    उत्तर
    1. शुक्रिया कविता जी..... आपको भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !!!

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  5. रात में चांद को जलायेंगे
    चलो, उठो... मान भी जाओ अब...सुन्दर पंक्तियाँ

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