वैसे तो अपन राजनीति पर बहुत कम बोलते हैं... पर जब बोलते हैं तो हमेशा अलग सुर में ही बोलते हैं... काहे से कि न तो हम कमल वाले हैं, न पंजा वाले, न झाड़ू वाले, न घड़ी वाले, न साइकिल वाले, न हाथी वाले, न रेल इंजन वाले, न हंसिया वाले और न लालटेन वाले... इसीलिये राजनीति से नहाये धोये लोगों को लगता है कि 'क्या बोल रहा है बे, पढ़ाई- लिखाई नहीं किया का'... इसीलिये कुछ बोलने में थोड़ा घबराहट फील होता है... लेकिन पिछले काफी दिनों से महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार की वजह से कानों में कुलबुलाहट और आज लोगों में चुनावी जोश देखकर बोलने से अपने आप को रोक नहीं पाया...
हमारे हिसाब से कुल 4 तरह के लोग हैं हमारे देश में...
1) एक वो जो पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हैं... जिनके लिये मोदी जी विष्णु के ग्यारहवें अवतार के रूप में धरती पर आये है...सोनिया जी - राहुल जी - प्रियंका जी ही देश के असली तारनहार... केजरीवाल जी संसार के समस्त देवी देवताओं के मिक्स अवतार लगते है... कहने का मतलब ये है कि इनको अपना नेता साक्षात भगवान का अवतार लगता है तो दूसरी पार्टी वाला 'कुत्ता या कुतिया' (ये बात तमाम नेताओं के मुंह से सुनने के बाद कह रहा)....
2) अब दूसरे प्रकार के लोगों की बात... ये वो लोग हैं जो किसी पार्टी या नेता के परम भक्त होते हैं... ये अपना सब काम छोड़ के दिन-रात अपने नेता के भजन में व्यस्त रहते हैं... अगर इनके नेता को छींक भी आये तो तुरंत कीर्तन शुरू 'वाह - वाह क्या छींके हैं भइया, आप से पहले न तो किसी ने ऐसा छींका होगा और न आपके बाद कोई ऐसा छींक पायेगा'... ये लोग अपने इस कार्य को देश की सेवा बताते हैं... भले ही अपने माता - पिता - भाई - बहनों - रिश्तेदारों - मित्रों - कर्मचारियों और पड़ोसियों की सेवा में कमी रह जाये पर देश की सेवा में कमी नहीं होनी चाहिये... सच कहें तो ऐसे लोगों के बल पर ही सभी पार्टियों की पूरी खिचड़ी पकती है और सत्ता में आने के बाद इन्हीं लोगों में मलाई भी बंटती है... मलाई यानी कि पद, प्रमोशन, ठेका, कौड़ियों के भाव में सरकारी जमीन, कमीशनखोरी, डरा - धमका के हफ्तावसूली आदि - आदि...
3) अब बारी है तीसरे प्रकार के हम जैसे राजनीतिक अछूत लोगों कि... जो पहले दो महा - प्रकारों की नस - नस से वाकिफ होते हैं इसलिये इनकी न तो बातों में आते हैं और न ही इनके सुर में सुर मिलाते हैं... ये वहीं बोलते हैं जो निस्पक्ष और निःस्वार्थ होता है.... इन्हे न तो किसी मलाई की चाह होती है और न ही किसी हराम के पद की... अपनी मेहनत से जो - जितना मिल जाये उसमें संतुष्ट.... अपनी क्षमता अनुसार बिना देश प्रेम का शोर मचाये लोगों की सेवा में मस्त रहने वाले...
4) और अब बात करते हैं चौथे प्रकार के लोगों की... तो ये वो लोग हैं जिन्हें वास्तव में जनता जनार्दन और आम आदमी कहा जाता है... जिन्हें कुछ पता नहीं होता है... इन्हें वही सही लगता है जो बार - बार और ऊंची आवाज में सुनाई पड़े... जो टीवी और अखबार पार बार - बार दिखाई पड़े... जो बहुत जल्दी भूल जाते हैं पुरानी बातें - पुराने घाव - पुराने धोखे - पुराने घोटाले... इनके भोलेपन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 'घर भरता है नेता का, खुश होते हैं ये'... 'बीमार पड़ता है नेता, तो दुखी होते हैं ये'... 'शादी पड़ती है नेता के यहां, तो नाचने लगते हैं ये'... नेता का फरमान आता है कि 'चलो दिल्ली' तो चल दिये...'जाति - धर्म के लिये लड़ना है' तो लड़ पड़े... कहने का मतलब है कि इन्हें बड़ी आसानी से बहला - फुसला कर के अपना उल्लू सीधा किया जाता है... हम ये नहीं कहते कि सब ऐसे ही हैं पर ज्यादातर तो हमने ऐसा ही पाया है....खैर, इस तरह खत्म हुई 'राजनीतिक कथा'... अब बारी है आप सबकी टिप्पणियों की... और पहले दो प्रकार के लोगों की 'मन ही मन गालियों की'.... :D
बेहतरीन लेखन , विशाल सर धन्यवाद !
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