मंगलवार, अप्रैल 13, 2021

कहीं कोरोना - कहीं चुनाव...

कहीं कोरोना - कहीं चुनाव
कहीं पे बंदी - कहीं जमाव,
ग़ज़ब तरक्की पे पहुँचे हम
घर में बैठ कमाव - खाव...

ग़ज़ब बीमारी एक साल से
नाम कोरोना नाइन्टीन,
कोई कहे अमरीका लाया
कोई कहता लाया चीन...

एक थाली के चट्टे-बट्टे
दोनों चाह रहे थे राज,
यही वजह ले आये वायरस
और गिरा दी है ये गाज़...

हमने भी खूब नाम कमाया
थाली पीटी दिया जलाया,
लगा कोरोना चला गया है
लेकिन ये तो फिर लौट आया...

अब सोचा सब भाड़ में जाये
बाल बढ़ायें - दाढ़ी बढ़ायें,
साधु - संत लगें ताकि हम
थोड़े और महान हो जायें...

देश से बाहर बहुत हो चुका
अब राज्यों पर ध्यान लगायें,
जहाँ नहीं है अपनी सत्ता,
वहीं पे जाकर धुनी रमायें...

बढ़े कोरोना बढ़ते - बढ़ते
दिल्ली के बाॅर्डर पर जाय,
जितने भी नेता किसान हैं
सबको हाॅस्पिटल ले जाय...

हाहाकार मचे चहुँ ओर
तब हम फिर टीवी पर आयँ,
कहें भाइयों - बहनों आओ
हम फिर से एकजुट हो जायँ...

आज रात को आठ बजे सब
अपनी - अपनी छत पर आय,
दो गज दूर हो मास्क लगाकर
अबकी माथा पीटा जाय...

नये तरीके की वैक्सीन
जल्दी से बनवायी जाय,
इधर - उधर का बहुत हो चुका
अब इससे क्रांति लायी जाय...

अलग-अलग टाइप की वैक्सीन
लगवाना अनिवार्य हो जाय,
आपात स्थिति है बोल के सबको
एक तरफ से ठोंकी जाय...

वैक्सीन में ऐसा कुछ हो
लगते ही सब मस्त हो जायँ,
जितने भी विरोध करते हों
सारे भजन - कीर्तन गायँ...

पाक - बांग्लादेश - श्रीलंका
इनको तो दें फ्री वैक्सीन,
ताकि ये एक सुर में बोलें
भारत दोस्त है - दुश्मन चीन...

हँसी - हँसी में बात कही ये
लेकिन बात बड़ी ग॔भीर,
काँटे से काँटा निकले है
ज़हर से जाये ज़हर की पीर...

कहते हैं 'चर्चित' कि जागो
ओ माय ह्वाइट दाढ़ी मैन,
छोड़ इलेक्शन हिस्ट्री सोचो
कम आॅन डू इट यू कैन...

- विशाल चर्चित

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