चहुँ ओर दिखे अंधियारा जब
सूझे न कहीं गलियारा जब,
जब दुखों से घिर जाओ तुम
जब चैन कहीं ना पाओ तुम...
मन व्याकुल सा - तन व्याकुल सा
जीवन ही लगे शोकाकुल सा,
कोई मीत न हो - कोई प्रीत न हो
लगता जैसे कोई ईश न हो....
तब ध्यान करो प्रकृति की तरफ
ईश्वर की परम सुकृति की तरफ,
देखो तो भला सागर की लहर
उठती - गिरती जाती है ठहर...
अनुभव तो करो शीतलता का
पुरवाई की कोमलता का,
तुम नयन रंगो हरियाली से
पुष्पों की सुगन्धित लाली से....
तुम गान सुनो तो कोयल का
बहती सरिता की कलकल का,
पंछी करते क्या बात सुनो
कहता है क्या आकाश सुनो....
निकालोगे निराशा के तम से
निकलो तो भला अपने तन से,
है आस प्रकाश भरा जग में
रंग लो हर क्षण इसके रंग में....
जो बीत गया सो बीत गया
तम से निकला वो जीत गया,
उस जीत का तुम अनुभव तो करो
अनुभव तो करो - अनुभव तो करो...
- VISHAAL CHARCHCHIT
बहुत दुःख होता है जब सुनने को मिलता है आज के विद्यार्थियों - लाडलों के मुख से टकला - गंजा - मोटा - पेटू कानिया - बटला - टिंगू अपने शिक्षक के लिए अपने गुरु के लिए.... और लगा दिया जाता है बाद में एक पुछल्ला सा "सर" का, ताकि पता चले कि हाँ बात हो रही है उन्हीं की कि जिन्हें कभी पूजा जाता था यह मानकर कि वो हैं बड़े और महान ईश्वर से भी क्योंकि वो दिखाते हैं मार्ग हमें ईश्वर तक पहुँचने का, जीवन से जुड़े अनेकों गूढ़ तथ्यों को समझने का.... शायद बदल गया है अब लोगों के जीवन का उद्देश्य लोगों की प्राथमिकता, अब नहीं चाहता है कोई ईश्वर को पाना या उस तक पहुंचना नहीं चाहता है कोई जीवन या उससे जुड़े सत्य को समझना... अब पद - प्रतिष्ठा एवं धन - ऐश्वर्य येन - केन - प्रकारेण अर्जित सफलता एवं सफल व्यक्तित्व करते हैं मार्गदर्शन उन्हीं को मान लिया जाता है गुरु उन्हीं को आदर्श - उन्हीं को शिक्षक..... और प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस पर बड़ी शान से कह दिया जाता है अपने उसी शिक्षक से ही कि "हैपी टीचर्स डे सर"...... - VISHAAL CHARCHCHIT
आ प्रिये कि हो नयी कुछ कल्पना - कुछ सर्जना, आ प्रिये कि प्रेम का हो एक नया श्रृंगार अब..... तू रहे ना तू कि मैं ना मैं रहूँ अब यूं अलग हो विलय अब तन से तन का मन से मन का - प्राणों का, आ कि एक - एक स्वप्न मन का हो सभी साकार अब.... अधर से अधरों का मिलना साँसों से हो सांस का, हो सभी दुखों का मिटना और सभी अवसाद का, आ करें हम ऊर्जा का एक नया संचार अब..... चल मिलें मिलकर छुएं हम प्रेम का चरमोत्कर्ष, चल करें अनुभव सभी आनंद एवं सारे हर्ष, आ चलें हम साथ मिलकर प्रेम के उस पार अब.... ध्यान की ऐसी समाधि आ लगायें साथ मिल, प्रेम की इस साधना से ईश्वर भी जाए हिल, आ करें ऐसा अलौकिक प्रेम का विस्तार अब.... - VISHAAL CHARCHCHIT