शुक्रवार, नवंबर 25, 2011

ये मेरे कुछ शेर..........

न जाने कितने आते हैं - न जाने कितने जाते हैं
मगर कुछ लोग बहुत गहरा निशान छोड़ जाते हैं
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तू आसपास तलाश कर कोई दिल धड़कता है रात दिन,
तेरे नाम पे जिसकी सांस है उसे ढूंढ कर अपने नाम कर....
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खामोशियाँ जब हद से गुज़र जायें
दुनिया को कुछ जलने की बू आये
तब शुरू होता कयासों का एक दौर
फिर तो हर सांस फंसाना बन जाए
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ये दिल से दिल का रिश्ता होता है कुछ इस कदर
कि लगती है चोट इधर तो कराहता है दिल उधर 
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खुदा है कि नहीं ये हमें पता नहीं
हमने तो हमेशा से मुहब्बत को खुदा माना है....
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ऐ खुदा तू आ बता कि है मेरी क्या ये खता ?
दिल से उनकी की इबादत तो भला तू क्यों जला ?
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देख ले तेरी खुदाई पे भरोसा उठ रहा
इश्क में जो हार है समझो कि सब बेकार है 
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सुना है मुहब्बत में खुदा साथ देता है
दो दिलों के दरम्यां फासले कम कर देता है ??
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काश कभी खुदा से मुलाकात होती
बाकी चीज़ें बाद में पहले तुमपे बात होती 
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क्या खुदा है वो कि जो चुपचाप बैठा देखता
मौत का मेरी तमाशा वो सितमगर कर गया......
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इश्क में कोई खुदा होता नहीं है आजकल
हाँ मगर हर जुल्म होता है उसी के नाम पर 
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कौन कहता है खुदा रहता है केवल मस्जिदों में
झाँक कर देखो तो दिल काबा नजर तुम्हें आएगा 
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मैं रोज़ दुआ करता हूँ तेरी सलामती के लिए
खुद मेरे नाम मौत का पैग़ाम आ गया है..... 
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तुम सलामत रहो बस यही है दुआ
हमारा है क्या हम रहे न रहे............
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खुदा से हमारी है इतनी सी चाहत
तुम्हें खुश रखे वो कोताही न बरते 

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मंगलवार, नवंबर 08, 2011

नशा....

नशा....
किसी भी तरह का
नहीं होता है अच्छा,
किसी का - कभी भी
नहीं करता है ये अच्छा....
आता है हमेशा 
एक बहुत ही ख़ास 
चमकदार रौशनी की तरह,
एक बहुत ही ख़ास 
खुशबू की तरह.....और 
आहिस्ता - आहिस्ता
जकड़ता चला जाता है 
अपने आगोश में....
फिर कोई लाख मना करे
समझाए - झगडा करे,
दिमाग समझता है
पर नहीं समझता है दिल...
और हमेशा बार - बार 
खींच ले जाता है हमें 
उसकी ओर - उस नशे की ओर......
पर नहीं....कुछ नहीं बिगड़ा
अब भी है बहुत कुछ बचा,
उठो......कोशिश करो
सोचो कि निकलना है
मुझे इस दलदल से,
इस मकडजाल से....
और अपना लो एक सीधा सा 
बिलकुल आसान सा रास्ता,
पहले वाले नशे से निकलने के लिए
शुरू कर दो एक दूसरा नशा...
ये नशा हो कामयाबी का, तरक्की का, 
इज्ज़त और शोहरत का...
कल्पना करो - ख्वाब देखो 
करो दोनों में फर्क, कि -
कहाँ ले जाता तुम्हें पहले वाला नशा
और कहाँ ले जा सकता है 
ये तुम्हारा अब वाला नशा......
बस यही ख्वाब - यही कल्पना
देगी तुम्हें ताक़त और हिम्मत
जो छुडा देगी तुम्हारा
बड़े से बड़ा बेकार का नशा......
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शनिवार, नवंबर 05, 2011

शुक्रवार, नवंबर 04, 2011

मुहब्बत जिंदाबाद...

साजिशें होती रहेंगी साजिशों का क्या
मुहब्बत थी मुहब्बत है रहेगी यूं ही जिंदाबाद...

गुरुवार, नवंबर 03, 2011

ये बेसबब सी दूरियां....

दमियान-ए-इश्क और ये बेसबब सी दूरियां
खुदाया तू बता क्या हैं तेरी मजबूरियां ??
वजह क्या है कि तू इतना सताता आशिकों को
चलाता है भला क्यों इन दिलों पे छूरियाँ ??  

अक्सर आम हो जाता है दिल का रास्ता अपना...

बहुत अच्छा लगा एक ख़ास से है वास्ता अपना
चुना तो हमने भी है ख़ास दिल का रास्ता अपना
अब करें क्या हैं बड़े मजबूर हम इस यारबाजी से
कि अक्सर आम हो जाता है दिल का रास्ता अपना...

इधर आंसू हमारे हैं, उधर जलवे तुम्हारे हैं...

इधर आंसू हमारे हैं
उधर जलवे तुम्हारे हैं
कहीं बरसात का मौसम
कहीं झिलमिल सितारे हैं...
मयस्सर ही नहीं मिलना
कि दूरी कम नहीं होती,
कभी लगता है एक दरिया
और हम - तुम दो किनारे हैं...
फ़क़त अब एक सहारा है
तुम्हारी मुस्कराहट का,
नहीं तो ज़िन्दगी में अब
कहाँ मुमकिन बहारें हैं...
तुम्हें देखें कहीं जब खुश
तो हम भी मुस्कुरा लेते,
यही जीने का एक जरिया
समझ लो पास हमारे है....
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