शुक्रवार, जुलाई 29, 2011

तब मुशर्रफ अब रब्बानी...

तब मुशर्रफ अब रब्बानी
वो जनाना - ये ज़नानी,
देखो यारों सम्हल के रहना
कहीं निकल न जाए नानी...
कई लोग टपकाते दिखते
अपने - अपने मुंह से पानी,
पर हो सकती मीठी छूरी
मत भूलो है पाकिस्तानी,
प्यार-प्यार से काट जाएगी
जीभ और गर्दन दोनों जानी...

बुधवार, जुलाई 20, 2011

पिछड़ते जा रहे भैया जी लोग...

अभी-अभी खबर मिली कि सीए के घोषित परिणामों में ऊपर के तीन स्थानों पर लडकियां बाज़ी मार ले गयी हैं. इससे पहले गर्मियों में दसवीं - बारहवीं के रिजल्ट्स में भी कुछ ऐसा ही हाल था. ये हमारे शूरमाओं को क्या होता जा रहा है. सोचा इस पर कुछ लिखूं क्या पता मेरे लिखने से इनकी खोयी हुई मर्दाना ताकत वापस आ जाये...

इनका ध्यान लड़कियों पर
लड़कियों का ध्यान किताबों में,
ये रहते चौबीसों घंटे
खोये हसीन ख़्वाबों में...
माँ-बाप को उल्लू बनाएं
टीचर को लगायें मस्का,
जब आता है रिजल्ट हाथों में
हालत होती खस्ता....
घरवाले कम दोषी नहीं
इन्हें बिठाएं सिर पर,
लड़की कितनी भी हो सयानी
उसे कहें 'तू चुप कर.'
अगर इसीतरह भैया जी लोग
होते रहे नाकारा,
तो भूल जाइये कि बुढापे में
ये देंगे सहारा...
ये तो खुद रोटी की तलाश में
जा बसेंगे ससुराल,
लड़की ससुराल से आएगी तब
रखने आपका ख्याल...
चर्चित ये नहीं कह रहे कि
सारे के सारे हैं ऐसे,
बीमारी बढ़ती जाती है
समय बढ़ता है जैसे....

इसी तरह राजनीति में भी महिलाओं के बढ़ते दबदबे पर अब ज़रा आते हैं, क्योंकि इनपर बात किये बगैर मामला अधूरा रह जायेगा -

सोनिया गांधी - ये रहती खामोश मगर हर काँग्रेसी थर्राता है
                         बड़े से बड़ा मंत्री भी इनके आगे दुम हिलाता है....
मायावती - पूरा इण्डिया हिलता है जब हथिनी सी ये चिग्घाड़ती हैं
                  दुश्मन कोई राह में आये सीधा कुचल डालती हैं,
                  विपक्षी पार्टियां मंदिर - मस्जिद का मुद्दा जब भी उछालती हैं
                  ये पहुँच वहाँ अपनी ही मूर्ति बेख़ौफ़ लगा डालती हैं...
ममता बनर्जी - सीधी -सादी दिखती हैं पर हैं बड़ी विकराल
                        धोती और चप्पल के बल पर जीत लिया बंगाल,
                        छेड़ो अगर तो शेरनी सी नोच - खसोट डालेंगी
                        कुछ न मिला तो चप्पल से ही धुनाई कर डालेंगी...
जयललिता - तमिलनाडु की मुख्यमंत्री हैं पर
                     केन्द्रीय मंत्री भी इनके यहाँ चक्कर लगाते हैं,
                     अम्मा - अम्मा कहते हुए इनके पैरों में लोट जाते हैं....
सुषमा स्वराज - बोलना भी जानती हैं, दहाड़ना भी जानती हैं
                         नाचना भी जानती हैं, नचाना भी जानती हैं,
                         तेजतर्रार हैं मगर, सीधी - सादी बन जाना भी जानती हैं...
                         अगले इलेक्शन में बीजेपी यदि सत्ता में आये
                         हो सकता है ये प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नज़र आयें....

सोमवार, जुलाई 18, 2011

चर्चितदास रचित सरकारचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास जी के रामचरितमानस की चौपाइयों से प्रेरणा लेते हुए प्रस्तुत है आज की सरकार पर आधारित सरकारचरितमानस। आशा है आप सबको पसंद आएगी -
महँगाई काण्ड :
महंगाई चली जाय अकाशा, मनमोहन बस देहिं दिलासा
मानुष देखहिं रोके सांसा, घर-गृहस्थी सत्यानासा

२ जी काण्ड :
लक्ष कोटि एक काण्ड निराला, धूल धूसरित देश दिवाला

राजा नाम मंत्री काला, नीरा सह मिलि किहेस घोटाला

रामदेव काण्ड :
देखि देश मा भ्रष्टाचारा, चढ़ा योग गुरु कै पारा

पहुंचे दिल्ली झंडा गाड़ा, पढ़य लाग सरकार पहाड़ा
पठयेस कपिल-प्रणव एक साथा, दुइनव प्रबल वकीली माथा

प्रथम विनय फिरि शक्ती झाडेन, पुलिस लाय सब काम बिगाड़ेन


लोकपाल काण्ड :
देखि भ्रष्ट मंत्री अरु तंत्रा, अन्ना लेहेन विकट एक मंत्रा
लोकपाल बिल नाम अपारा, एहिमा लावो सब सरकारा
लगी घुमावय जंतर-मंतर,
अन्ना पर कौनव नहिं अंतर

मुंबई बम काण्ड :
फूटे बम मुम्बई त्रस्त, नेतागण बयान महं मस्त
मनमोहन कहैं मृत्यु अटल,
राहुल कहैं नहीं कोई हल

शुक्रवार, जुलाई 15, 2011

बच्चों को मस्का लगाते रहें वर्ना...

बच्चों को मस्का लगाते रहें वर्ना
उनका वोट उधर चला जाएगा,
आप आ जायेंगे अल्पमत में
उनकी मम्मी का पलड़ा भारी हो जायेगा....
हँस - हँसके किससे बात करते हैं
सब पोल खोल देंगे,
स्कूलवाली टीचर का नंबर माँगा था
सीधा मम्मी को बोल देंगे...
आपकी पॉकेट का पैसा
श्रीमती जी की पर्स में पहुँच जायेगा,
पूछने पर सब जानते हुए भी
टिंकू साफ़ मुकर जाएगा.....
अपने ही घर में इज्ज़त
नीलाम न हो जाए,
और आप पक्ष से सीधे
विपक्ष में न आ जाएँ...
इसलिए भाईसाहब
भलाई इसी में है कि
टिंकूजी का ख़ास
ध्यान रखा जाए...

आजकल के बच्चे...

बच्चे नहीं ये बाप हैं
हमारे गले की नाप हैं,
क्या हुआ जो बस्ता है भारी
दुनिया उठाने की है तैयारी
टीवी-इन्टरनेट छानते हैं
अंदर की बात भी सब जानते हैं...

सरकार की आपबीती...

धमाका हुआ मुंबई मैं
दिल्ली में हिली सरकार,
बाबा - अन्ना शांत हो गए
अब इसका क्या उपचार...
अब इसका क्या उपचार...
मीडिया फिर से जागा
सरकार निकम्मी है का
फिर से राग अलापा,
एक मुसीबत टली नहीं
कि दूसरी आ जाती है,
जैसे - तैसे सम्हले पर
कुर्सी हिल जाती है...
क्या करें कैसे खाएं
लोग खाने नहीं देते हैं
बड़ी मुश्किल से मिली है सत्ता
मज़ा उठाने नहीं देते हैं...
कान पकड़ते हैं कि अब
सत्ता में नहीं रहेंगे,
बैठ विपक्षी दल में
मलाई काटा करेंगे...

शिक्षा का क्रमिक कुविकास

गुरुपूर्णिमा के अवसर पर बहुत से लोगों को श्लोक एवं कविता पाठ करते देख कर मेरा मन भी कुलबुलाया कि भला मैं पीछे कैसे. मैंने भी कंप्यूटर खटखटाना शुरू किया तो निकल कर आई भारतवर्ष में शिक्षा तथा इससे जुड़े पहलुओं के क्रमिक कुविकास की श्रृंखला, जो कि मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ -
गुरु : ब्रह्मा-विष्णु-महेश > गुरुदेव > आचार्य > अध्यापक > सर > टकला सर - गैंडा सर -
        कानिया.........
शिष्य : वत्स > शिष्य > छात्र > स्टुडेंट > फलाने जी.....
विद्यालय : आश्रम > गुरुकुल > पाठशाला > विद्यालय > स्कूल > कोंलेज > यूनिवर्सिटी >
                 याहू चैट > ब्लॉग > ऑरकुट > फेसबुक > ट्विटर....
शिक्षा : ध्यान - चिंतन - मनन - साधना > पठन-पाठन > शिक्षा > अध्यापन > ट्यूशन >
            कोचिंग > एजुकेशन इंडस्ट्री.....
पुस्तक : गुरुवाणी > पाण्डुलिपि > ग्रन्थ > पुस्तक > किताब > कैसेट > सीडी > इन्टरनेट....
पुस्तकालय : गुरु > पाण्डुलिपि संग्रह > ग्रंथालय > पुस्तकालय > लाइब्रेरी > गूगल ..............

गुरुवार, जुलाई 14, 2011

आतंकवादी बम धमाकों पर...

न जाने कौन से वो दिल हैं जो
दिलों के चीथड़े उड़ाया करते हैं,
इधर उज़ड़ती हैं जिंदगियां
उधर ठहाके लगाया करते हैं....

वो आंखें हैं कि शीशा हैं
कि उनमें मर चुका पानी,
इधर होता है अँधेरा
उधर वो जश्न मनाया करते हैं...

न जाने क्या वो खाते हैं
न जाने क्या वो पाते हैं
न जाने कौन सी दुनिया से
वो आया - जाया करते हैं...

मिले जो ईश्वर तो उससे
होगा ये सवाल अपना
कि पैदा होते ही ये दरिन्दे
क्यों नहीं मर जाया करते हैं...

बुधवार, जुलाई 13, 2011

आज का युवा बहुत व्यस्त...

आज का युवा बहुत व्यस्त, अपने में मस्त
जब देखो एक साथ दो-चार काम निपटा रहा होता है,
सुबह-सुबह टॉयलेट में, मुंह में टूथ ब्रश
हाथों में लैपटॉप, कान में मोबाइल फोन
मतलब यहाँ भी ऑफिस जैसा माहौल
नज़र आ रहा होता है....
हर समय दो - दो सिम कार्ड वाले
दो मोबाइल रखता है अपने साथ,
मतलब एक ही समय में मॉम - डैड
बॉस-फ्रेंड-गर्ल फ्रेंड सबसे बतिया रहा होता है....
ऑफिस में कंप्यूटर पर काम, इन्टरनेट पर
फेसबूक-ट्विट्टर-याहू-जीमेल सब ऑन,
ऊपर से घनघनाता फ़ोन, चिल्लाता बॉस
फिर भी बेचारा मुस्कुरा रहा होता है...
शाम को घर में खाने के समय भी
एक हाथ में चम्मच, एक में टीवी का रिमोट
सामने टीवी पर एक न्यूज़ - एक फिल्म
एक कॉमेडी - एक म्यूजिक शो, एक साथ
इन सबका लुत्फ़ उठा रहा होता है...
रात को सपने में भी कुछ घंटे गर्ल फ्रेंड
कुछ फ्रेंड, थोड़ी देर देश में - थोड़ी देर विदेश में
और कभी कभार दूसरी दुनिया के लोगों से भी
अपनी जान - पहचान बढ़ा रहा होता है...
और 'चर्चित' एक तुम हो कि
रह गए वहीँ के वहीँ, ढीले-ढाले
एक समय में एक काम करने वाले,
अरे उठो - जागो, कुछ सोचो कि
जब तुम कविताबाजी कर रहे होते हो
कल का लड़का करोड़ों कमा रहा होता है...

मंगलवार, जुलाई 12, 2011

इन शहरी बिल्डरों से तो अच्छा था वीरप्पन...

इन शहरी बिल्डरों से तो अच्छा था वीरप्पन
चन्दन की तस्करी करता था, पर हरा भरा था जंगल,
हरा भरा था जंगल, जंगल में था मंगल
यहाँ शहर में मची हुई है देखो बुल्डोज़री दंगल...
रोज़ कट रहे पेड़, लद रही बिल्डिंगों पे बिल्डिंगें
बढ़ रही गर्मी और आग, जहाँ देखो वहां दमकल...
सिकुड़ती सर्दियाँ, फैलते गर्मी के मौसम
ज़रूरी हो गए अब पाखानों में भी एसी या कूलर..
एसी या कूलर, इनसे गड़बड़ाता वातावरण
पिघलती बर्फ पहाड़ों पर, बढ़ता सागरी जलस्तर...
बढ़ता सागरी जलस्तर, सपनों में भी आता सुनामी
चलों 'चर्चित' बेटा बना लें अभी से एवरेस्ट पर घर....

सोमवार, जुलाई 11, 2011

हर किसी का अपना तरीका है ज़िन्दगी का ...

हर किसी का अपना
    तरीका है ज़िन्दगी का
        हर किसी का अपना
             अंदाज़ अलग है...
फिर क्या गलत
      और क्या सही
            ये बात अलग है...
लोग अक्सर समझते हैं कि 
     मदहोश करती है शराब,
          फिर कोई पी के होश में आये
                        ये बात अलग है...
नालियों को अक्सर
     जोड़ा जाता है गन्दगी से,
          कोई समझे उसी को बिस्तर
                    ये बात अलग है...
कहते हैं धुम्रपान से
    ख़राब होते हैं फेफड़े,
         किसी का खुलता है दिमाग इसी से
                        ये बात अलग है...
कोई उल्टी-सीधी हरकतें करे
   तो कहती है दुनिया पागल,
         अब वो दुनिया को पागल समझे
                        ये बात अलग है...
लोग सुनते तो हैं सबकी
     पर करते हैं अपने मन की
             हम फिर भी समझाए जाते हैं
                        ये बात अलग है....

रविवार, जुलाई 10, 2011

रोओ खूब रोओ...

वक़्त वो मरहम है
जो हर घाव भर देता है,
बुझे से बुझे चेहरों में भी
मुस्कान भर देता है...
बस थोडा सा सब्र
थोड़ी उम्मीद होनी चाहिए
आंसुओं की जगह आँखों में
एक हसीं ख्वाब जगह ले लेता है...
ये दुनिया अजीब है
यहाँ किसी के आने - जाने से
फर्क नहीं पड़ता है,
कोई एक ग़म देता है तो
कोई हज़ार ख़ुशी दे देता है...
रोना दवा या मकसद नहीं
गुबार होना चाहिए,
जो जितनी ज़ल्दी निकल जाये
इंसान उतनी ज़ल्दी हल्का हो लेता है...
तो रोओ खूब रोओ
क्योंकि बहुत ज्यादा रोना
बाद में बहुत ज्यादा मज़ा देता है..

माँ की ममता...

कितने आये - कितने गए
कितनों ने क्या-क्या लिख डाला,
पर माँ की ममता को शब्दों से
कोई भी बाँध नहीं पाया...
जिस तरह ईश्वर के बारे में
लोग क्या - क्या उपमाएं देते हैं,
पर कहाँ आज तक कोई भी
उसकी नाप है ले पाया...

कोई साथ हो तो रास्ता हसीन हो जाता है...

कोई साथ हो तो रास्ता  
हसीन हो जाता है
मोड़ खुद-ब-खुद
हमारे साथ मुड जाता है,
बातों में पता नहीं चलता
कब आ गयी मंजिल
ज़िन्दगी का एक लम्बा सफ़र
यूँ आसान हो जाता है....