होता है कई बार ऐसा
जब हम कहते कुछ हैं
लोग समझते कुछ हैं,
होता है कई बार ऐसा
जब हम लिखते कुछ हैं
लोग पढ़ते कुछ हैं,
होता है कई बार ऐसा
जब हम दिखाते कुछ हैं
और लोगों को दिखता कुछ है...
होता है इसका परिणाम ये कि-
नहीं मिलता अपेक्षित प्रतिसाद
नहीं मिलता अपेक्षित उत्तर
नहीं मिलती अपेक्षित प्रशंसा...
और हम संतुष्ट हो जाते हैं
ये सोचकर कि -
लोगों में समझ ही नहीं है
लोगों के खराब हो गये हैं कान
लोगों की खराब हो गयी हैं आँखें...
कभी ये नहीं सोचते कि -
हमारे कहने में ही रह गयी थी
हमसे ही हो गयी थी चूक
हमारा लिखा हुआ ही नहीं था सटीक
हमने दिखाया ही था गलत...
इसीतरह से विश्वास और भरोसा है
जब हम लगा बैठते हैं
आसानी से अपनों पर आरोप कि -
आपको मुझपर विश्वास नहीं है?
आप मुझपर शक कर रहे?
आपको मुझपर संदेह है?
कभी कोशिश भी नहीं करते
ये सोचने की कि -
क्यों टूटा उनका विश्वास
क्यों हुआ उनको हम पर शक
क्यों लगता है उन्हें
हमारा हर व्यवहार ही संदिग्ध...
क्या किया जाये
ईश्वर देता ही नहीं है
सबको इतना आत्मज्ञान
सबको इतना विवेक
कि कर सकें अपनी हर बात
हर व्यवहार की विवेचना
कर सकें अपना आत्ममंथन...
और यही है
अधिकांश दुखों का सार,
अधिकांश कलह-क्लेश का कारण
अधिकांश रिश्तों में विघटन की वजह...
क्योंकि -
सही हो सही भी दिखो तो सही
सच्चे हो सच्चे हरदम रहो तो सही
सच है तो सच को दिखाया करो
गलतफहमियाँ रिश्तों में मत बढ़ाया करो
अपनी गलती पे भी ध्यान देते रहो
दूसरों की सदा मत दिखाया करो...
-विशाल चर्चित