सोमवार, अप्रैल 04, 2022
न राह है - न चाह है - ना कहीं निगाह है...
न राह है - न चाह है
ना कहीं निगाह है,
ना कहीं पर महफ़िलें
ना ही वाह-वाह है...
ना ही अब ख़ुशी बहुत
ना ही अट्टहास है,
ना तो कोई अजनबी
ना ही कोई ख़ास है...
निरपेक्ष भी - तटस्थ भी
एकाकी भी - गृहस्थ भी,
भाग्य के क्षितिज पर अब
उदित भी हूँ और अस्त भी...
क्या ग़ज़ब पड़ाव है
ठहराव है - बहाव है,
एक सागरीय द्वीप
के समीप नाव है...
ये समय का एक रंग
श्वेत-श्याम एक संग,
इसलिये मैं लीन हूँ
सीखने में इसके ढंग...
- विशाल चर्चित
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