शनिवार, नवंबर 23, 2013





रविवार, नवंबर 17, 2013

बहुत सुकून मिला है तेरे फिर आने से.....



//// एक तरही गजल ////

बुझे चराग जले हैं जो इस बहाने से
बहुत सुकून मिला है तेरे फिर आने से

बहुत दिनों से अंधेरों में था सफर दिल का
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से

नया सा इश्क नयी सी है यूं तेरी रौनक
लगे कि जैसे हुआ दिल जरा ठिकाने से

चलो कि पा लें नई मंजिलें मुहब्बत की
बढ़ा हुआ है बहुत जोश चोट खाने से

कसम खुदा की तेरे साथ हम हुए चर्चित
जरा सा खुल के मुहब्बत में मुस्कुराने से


- विशाल चर्चित

गुरुवार, नवंबर 07, 2013

दीवाली पर एक नवगीत



क्यों रे दीपक
क्यों जलता है,
क्या तुझमें
सपना पलता है...?!

हम भी तो
जलते हैं नित-नित
हम भी तो
गलते हैं नित-नित,
पर तू क्यों रोशन रहता है...?!

हममें भी
श्वासों की बाती
प्राणों को
पीती है जाती,
क्या तुझमें जीवन रहता है...?!

तू जलता
तो उत्सव होता
हम जलते
तो मातम होता,
इतना अंतर क्यों रहता है...?!

तेरे दम
से दीवाली हो
तेरे दम
से खुशहाली हो,
फिर भी तू चुप - चुप रहता है...?!

चल हम भी
तुझसे हो जायें
हम भी जग
रोशन कर जायें,
मन कुछ ऐसा ही करता है...!!

- विशाल चर्चित

दीयों, कितने अच्छे लगते हो......



दीयों !!!
कितने अच्छे लगते हो
तुम जलते हुए
इस तरह से
जगमग - जगमग करते हुए...!

अच्छा बताओ तो
कहां से लाते हो भला
इतने सुन्दर सी रोशनी?!
कहां से लाते हो
इतनी प्यारी सी मुस्कुराहट....!

मेरे लिये वहीं से
एक प्यारी सी
गुड़िया ला दो न
कुछ प्यारे से खिलौनों से
मेरा दिल बहला दो न....!

पढ़ना - लिखना तो
चलता रहता है पूरे साल,
घर का माहौल भी
एक सा रहता है पूरे साल,
तुम नई - नई सौगातों के जरिये
इस उत्सब को खास बना दो न....!

पापा - मम्मी के कई सपने
सब के सब हैं पूरे करने
तुम मेरी खातिर उनकी पसंद की
ढेर सारी खुशियां ला दो न.. !

- विशाल चर्चित

शुक्रवार, अक्टूबर 25, 2013

रह गया मैं एक निरा भावुक इंसान...



होता अगर मैं
एक धुरंधर नेता
तो सोचता कि
वाह क्या दृश्य है
गरीबी यहां भुखमरी यहां
इसलिये अपनी
सियासत यहां...

होता अगर मैं
मीडिया का खिलाड़ी
सनसनीखेज खबर बनाता
दिनरात दिखाता
विज्ञापनों की बरसात करवाता....

होता अगर मैं
एक गिद्धदृष्टि फोटोग्राफर
अलग-अलग कोणों से
ऐसी तस्वीरें लेता
कि दुनिया के तमाम पुरस्कार
अपनी झोली में बटोर लेता....

होता अगर मैं
एक निर्माता निर्देशक
इस विषय पर एक
अच्छी सी फिल्म बनाता
ऑस्कर अपने घर ले आता...

होता अगर मैं
एक होशियार समाज सेवक
इन गरीबों के नाम पर
करोड़ों का अनुदान लाता
थोड़ा बहुत इनको खिलाता
बाकी सब माल अंदर हो जाता...

होता अगर मैं
एक परम बुद्धिजीवी
इस विषय पर खूब
गहन अध्ययन करता
विवादास्पद आंकड़े जड़ता
एक दमदार किताब लिखता
फिर तो नोबल पुरस्कार से
आखिर कम क्या मिलता...

होता अगर मैं
एक पाखंडी पंडित - मुल्ला
ये दृश्य देख कर सोचता
'छि - छि -छि -छि
जाने कहां से इतनी
गंदगी फैला रखी है,
इन जाहिल गँवारों ने ही
ये दुनिया नर्क बना रखी है....

लेकिन रह गया मैं एक
निरा भावुक इंसान
कुछ भी नहीं कर पाया
ये दृश्य देखकर ह्रुदय भर आया
और एक सवाल ये आया कि
'हाय रे ईश्वर तूने ये जहां
इतना विचित्र क्यों बनाया....?!'

- विशाल चर्चित

रविवार, अक्टूबर 20, 2013

उड़ते हुए पल - छिन





















किताब के पन्नों
के मानिंद उड़ते हुए
जिन्दगी के पल छिन
दे जाते हैं हमारे लिये
कुछ यादो की खुशबुएं
कुछ खुशियों की रोशनी
और कुछ खास
सपनों की झिलमिलाहट
जिन्हें महसूस करके
तमाम मुश्किलों भरे
अंधेरों में भी अक्सर
दिल मुस्कुराता है
इठलाता है
झूम जाता है
कुछ कदम और
आगे बढ़ जाता है....
है न ?!!
- विशाल चर्चित

रविवार, अक्टूबर 06, 2013

बचपना वचपना मस्तियां वस्तियां

















/////// एक गजल ///////

बचपना वचपना मस्तियां वस्तियां
भूल बैठे हैं हम तख्तियां वख्तियां

अब वो गेंदों से बचपन का रिश्ता नहीं
घूमते थे कभी बस्तियां बस्तियां

टीवी नेट की लतें लग गयीं इस कदर
अब लुभाती नहीं कश्तियां वश्तियां

खुदकुशी तक की नौबत पढ़ाई में है
क्या करेंगे मटरगश्तियां वश्तियां

ऐब बच्चों में तो चाहिये ही नहीं
बस बड़े ही करें गल्तियां वल्तियां

- विशाल चर्चित