बीत गयी लॉकडाउन की
महाकाली वर्षगाँठ,
इससे जुड़ी हरेक याद
बन गयी है हृदय पर
जैसे मजबूत गाँठ...
इसमें ही बहुत सारा
कामकाज गया,
अर्थव्यवस्था का
एक बड़ा हिस्सा गया,
तमाम लोग जान
से भी गये,
लॉकडाउन भी गया
पर कोरोना नहीं गया,
और लगता है ऐसा
कि दो-चार साल अभी
जायेगा भी नहीं...
इसका कारण है -
केन्द्र व्यस्त है
पांच राज्यों के चुनाव में,
विपक्ष व्यस्त है मोदी पर
सिर खुजाव में,
अफसर व्यस्त हैं इधर - उधर
खिचड़ी पकाव में...
अमीर जनता मस्त है
छुट्टी मनाई में,
मनोरंजन कराई में,
मध्यम वर्ग व्यस्त है
माहौल पर चर्चा कराई में,
और गरीब मजदूर व्यस्त हैं
सिर पिटाई में,
हाय - हाय कराई में...
व्यापारी कंपनियाँ व्यस्त हैं
लूट और महँगाई में,
अस्पताल और फार्मावाले
व्यस्त हैं मौका भुनाई में...
जाँच की किट ऐसी कि
जो भी आये
कोरोना पॉजिटिव हो जाये,
देखने में भले ही
हो तगड़ा-हट्टा-कट्टा,
पर डर का कीड़ा उसमें भी
ऐक्टिव हो जाये...
अच्छा होगा अब से भी जो
सारे होश में आ जायें,
कामकाज - अर्थव्यवस्था
यानी देश पटरी पर आ जाये,
वर्ना कहीं ऐसा ना हो कि
जनता सड़कों पर आ जाये,
लोकतंत्र की हत्या करके
साम्यवाद वो ले आये...
- विशाल चर्चित
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सार्थक सृजन।
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