कविता जी, मोहब्बत नामक किरदार की एंट्री कभी भी और कहीं भी हो... जिन्दगी के रंगमंच की कहानी को मरना ही पड़ता है अर्थात्... जिन्दगी का मकसद ही बदल जाता है... और ये कहावत चरितार्थ हो जाती है कि 'आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास'... बहरहाल, आपका आभार कि आपने मेरी रचना को ध्यान से पढ़कर उसपर एक राय व्यक्त की...।
वाह,बहुत सही कहा आपने।
जवाब देंहटाएंभाई थैन्क्स।
हटाएंमोहब्बत अगर घर से है तो ठीक वर्ना कहानी तो मरेगी ही
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
कविता जी, मोहब्बत नामक किरदार की एंट्री कभी भी और कहीं भी हो... जिन्दगी के रंगमंच की कहानी को मरना ही पड़ता है अर्थात्... जिन्दगी का मकसद ही बदल जाता है... और ये कहावत चरितार्थ हो जाती है कि 'आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास'... बहरहाल, आपका आभार कि आपने मेरी रचना को ध्यान से पढ़कर उसपर एक राय व्यक्त की...।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई जी।
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंज्योति जी आभार।
हटाएंक्या बात है ।
जवाब देंहटाएंअमृता जी थैंक्स।
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आभार भाई... मैं अवश्य उपस्थित होऊँगा... ।
हटाएंअसल कहानी को मर जाना पड़ता है...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!!!
उम्दा शायरी ...
बहुत - बहुत शुक्रिया जी।
हटाएंबहुत सुंदर। सादर बधाई और शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत अभिव्यक्ति।
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