अपने स्वाद के लिये
कुछ भी खा लिया,
निरीह पशु-पक्षियों को
चबा लिया-पचा लिया,
वो मासूम-हम चालाक
पकड़ लिया-मार दिया
रोम-रोम उनका
बाजार में उतार दिया...
जाना ही नहीं कि
उनमें भी जान होती है,
देखा तक नहीं कि
उनको भी दर्द होता है,
सोचा भी नहीं कि
उनकी भी 'हाय' होती है...
ये है इतिहास की
सबसे सभ्य दुनिया,
ये है इतिहास की
सबसे विकसित दुनिया...
हरे-भरे जंगल थे
शहर निगल गये,
हवा-पानी-पेड़-पौधे
कीट और पशु-पक्षी
सबकुछ हमारी
सुख-सुविधा की भेंट चढ़ गये...
हम भूल गये कि हमारे
ऊपर भी कोई रहता है,
हम भूल गये कि कोई है
जो हमारी हर हरकत पर
नजर रखता है,
वो कुदरत - वो ईश्वर
हमेशा - हर जगह है
ये रह-रहकर बताता रहता है...
कभी भूकंप तो कभी तूफान
कभी बाढ़ - सूखा
तो कभी महामारियाँ
इन सबके जरिये
हम इंसानों को
औकात में लाता रहता है...
स्वाइन फ्लू-बर्ड फ्लू हो
या कि हो कॉरोना,
ये सब ईश्वर के
संकेत हैं समझो,
'अति करोगे तो भरोगे'
'हमें भूलोगे तो भुक्तोगे',
उसकी इस अनकही बात में
छिपे भेद को समझो...
खैर, औरों की और जानें
हम अपनी बात कहते हैं,
चर्चित के पैर बाबा
सदा जमीन पर ही रह्ते हैं,
यहाँ ना तो अति है
यहाँ न बहुत गति है
'जियो और जीने दो'
हम ये मंत्र जपते रहते हैं...
- विशाल चर्चित
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-03-2020) को "ऐ कोरोना वाले वायरस" (चर्चा अंक 3644) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सौ फीसदी सच !
जवाब देंहटाएंश्राप लग गया उन बेजुबान का, उनकी वेदना के स्वर ऊपर वाली की अदालत में पहुँच गया और फिर देखो गेहूं के साथ घुन भी पिस्से जा रहे हैं
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