शुक्रवार, अगस्त 17, 2018

एक सूर्य अस्त तो अनंत दीप जल उठे, फिर भी आह अंधकार काश सूर्य फिर उगे...


एक सूर्य अस्त तो 
अनंत दीप जल उठे,
फिर भी आह अंधकार
काश सूर्य फिर उगे...

फिर से वही प्रात हो
फिर से ज्योतिपुंज हो,
फिर से नव उमंगमयी
आपकी वो गूँज हो...

आपका वो नेतृत्व
आपका वो पथ-प्रदर्शन,
देश कैसे भूले वो
आपका प्रत्येक दर्शन...

आपकी वो ओजमयी
काव्यमयी पंक्तियाँ,
आह-आह उनमें थीं
कितनी सारी शक्तियाँ...

आपका हृदय विशाल
ऊर्जा का स्रोत था,
जिससे देश का हृदय
प्रेरित व ओत-प्रोत था...

हाय मृत्यु ले गयी
सारा हमसे छीनकर,
जो प्रकृति ने आपमें,
थीं भरी खोजबीन कर...

अब तो हाथ जोड़ ये
ईश्वर से प्रार्थना,
स्वर्ग को सुशोभित करे
अटल जी की आत्मा...

मिले परम गति व शांति
मोक्ष व परमात्मा, 
आपसे सजीव रहे
भारत की आत्मा...

आश्रुपूरित भावभीनी श्रद्धांजलि सहित

- विशाल चर्चित

4 टिप्‍पणियां:

  1. राजनीति के दलदल में खिले एक निष्कपट कमल का मुरझा जाना, एक युग का अंत जैसा है
    बहुत अच्छी भावपूर्ण श्रद्धांजलि, नमन अटल जी को!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-08-2018) को "उजड़ गया है नीड़" श्रद्धांजलि अटलबिहारी वाजपेई (चर्चा अंक-3067) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेई जी को नमन और श्रद्धांजलि।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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