बनो ऐसे कि
मंजिल को हो इन्तजार
तुम्हारे पहुंचने का,
और अगर ऐसा न हो तो
रह जाए एक मलाल उसे
तुम्हारे न पहुंचने का...
बनो ऐसे कि
हर महफिल में छाए रौनक
एक तुम्हारे आने से,
छा जाये हर तरफ मातम
एक तुम्हारे जाने से...
बनो ऐसे कि
बहुत बड़ी हो जाएं
तुम्हारे आस पास की
छोटी - छोटी खुशियां भी,
सिमट कर न के बराबर
रह जाये अपनी ही नहीं
दूसरों के गमों की दुनिया भी...
बनो ऐसे कि
हर रिश्ता तुमसे
जगमगाता सा नजर आये,
दिलो जान से निभाने पर भी
अगर कोई जाए तो पछताये कि
यार बहुत बड़ी गलती कर आये...
बनो ऐसे कि
हर हुनर - हर फन में
एक मिसाल हो जाओ,
तो देर किस बात की है
जो बीता सो बीता
अब तो होश में 'विशाल' हो जाओ...
- विशाल चर्चित
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-12-2016) को "जीने का नजरिया" (चर्चा अंक-2559) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हृदय से आभार सर
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