क्यों करें हम पूजा
क्यों करें हम आराधना
क्यों करें हम इबादत,
हो जाती है
स्वतः ही ये तो
जब हम करते हैं
कोई अच्छा कार्य,
निभाते हैं जब
अपनों के प्रति
मानवता के प्रति
नैतिकता के प्रति
अधिकांश कर्तव्य...
ईश्वर होता है
प्रसन्न स्वतः ही
जब हम होते हैं प्रसन्न
किसी की सहायता करके,
किसी के चेहरे पर
मधुर मुस्कान भरके...
ऊपर बैठा वो
हो जाता है निश्चिंत
जब हम नहीं होने देते
किसी स्वार्थी - अन्यायी
और मक्कार के
मनसूबों को सफल,
बचा लेते हैं कमजोरों
और असहायों को
किसी षडयंत्र से...
वर्ना सुनता और
मुस्कुराता रहता है वो
'तुम ज्ञानी - हम अज्ञानी
तुमको नमामि हे अंतर्यामी
मेरे मालिक - मेरे आका
मेरे परवर दिगार....'
जिससे उपजे उसे सिखाते
सूरज को दीया दिखलाते
मन मे कुछ होठों पे कुछ ले
अच्छा उसका मन बहलाते...
- विशाल चर्चित
सही कहा
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी
हटाएं