इम्तहान खत्म पर
टेंशनें बनी हुई,
कुछ भी सूझता नहीं
कि क्या करूं
क्या ना करूं,
पापा मम्मी चाहते
रात-ओ-दिन पढ़ूं-पढ़ूं
लेकिन मेरा मन करे
पेड़ों पर चढ़ूं-चढ़ूं,
दादा-दादी सबसे अच्छे
जो कि हरदम चाहते
मैं ये करूं या वो करूं
पर हमेशा उनको मैं
खुश ही खुश दिखूं-दिखूं !!!
- विशाल चर्चित
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (29-02-2016) को "हम देख-देख ललचाते हैं" (चर्चा अंक-2267) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हृदय से आभार सर !!!
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