रविवार, अगस्त 23, 2015

मैं भटका तो जग था स्थिर, मैं स्थिर जग भटक रहा है...

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-08-2015) को "देखता हूँ ज़िंदगी को" (चर्चा अंक-2078) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सर जी,
      साहित्य के प्रति आपकी निष्ठा - आपके समर्पण - आपकी निस्पक्षता को हृदय से प्रणाम है... मैं साहित्य से जुड़े जितने भी लोगों को जानता हूं, आप जैसी सच्ची लगन किसी में नहीं दिखी.... मेरी हार्दिक इच्छा है कि देश साहित्यिक बागडोर आपके हाथों में हो... आपके सुखी - स्वस्थ एवं सुदीर्घ जीवन की कामना सहित....

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  2. आज कि भाग दौड वाली जिंदगी के लिए विशेष प्रेरणा

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