तय करनी पड़ती हैं
प्राथमिकतायें,
जब व्यस्त हों आप
एक साथ कई चीजों में...
बेहतर तो यही हो कि
हम करें एक समय में
एक कार्य को ही,
ताकि दे सकें पूरा ध्यान
बनी रहे पूरी तन्मयता...
लेकिन -
कहां हो पाता है ऐसा
आज के प्रतिद्वंद्वी वातावरण में,
जबकि व्यापक एवं विस्तृत हो चला है
हर कर्मठ एवं महात्वाकांक्षी
व्यक्ति का कार्यक्षेत्र,
इतना कि कम पड़ रहे हैं अब
दिन - रात के चौबीस घंटे भी...
एक - एक चीज के लिये
करना पड़ रहा है
पहले से अधिक मेहनत अब,
करनी पड़ रही है
पहले से अधिक प्रतियोगिता अब,
हर कार्य हो सुनियोजित
हर प्रयास हो योजनाबद्ध
सदा हो बस लक्ष्य पर निगाह
सदा रहना पड़ता है चौकन्ना...
क्योंकि -
बढ़ गये हैं लोग
बढ़ गई है आवश्यकतायें
बड़े हो गये हैं सपने
बड़ा हो गया है दिमाग...
और -
घट गई है भावुकता
घट गया है ईमान
घट गई है मानवता
घट गई है नैतिकता...
इसलिये -
रह गया है सिर्फ दिखावा
रह गई है सिर्फ औपचारिकतायें
रह गया है सिर्फ जोड़ - तोड़
रह गया है सिर्फ स्वार्थ,
कुछ अपवादों को छोड़कर...
- विशाल चर्चित
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-02-2015) को "डोरबैल पर अपनी अँगुली" (चर्चा मंच अंक-1877) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
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