शनिवार, अगस्त 18, 2018

केरल का जल प्रलय



क्या प्रभु - रुष्ट क्यों?
वो भी अपने देश से?
हो गयी भूल क्या
इस धरा विशेष पे??

ये कहर - ये प्रलय
इस प्राकृतिक उपहार पर?
क्या मिलेगा यहाँ पर
जीवों के संहार से??

ना यहाँ कोई घोर पाप
ना तो कोई उग्रवाद,
ना तो आपके नियम से
कोई भी है यहाँ विवाद...

भोली-भाली प्रकृति यहाँ
भोले-भाले लोग हैं,
हर तरफ हरियाली जैसे
यही स्वर्गलोक है...

फिर भला ये कोप क्यों
किसलिये जलवृष्टि ये?
हे महादेव यहाँ क्यों
खोली तीसरी दृष्टि ये??

हैं बहुत से और देश
करते रहते केवल क्लेश,
फिर भी उनके पास क्यों
सुख - संपदा अति विशेष??

क्या यही कलिकाल है?
क्या ये न्याय हो रहा?
देखिये जरा देखिये
क्या ये 'हाय' हो रहा...

यदि ये रीति कलियुगी
आप यही चाहते,
क्षमा करें शंभु ये
हम देह नहीं चाहते...

पाप का विनाश हो
पुण्य प्रफुल्लित रहे,
चाहते हैं आप यदि
कि ये 'चर्चित' रहे...

- विशाल चर्चित

1 टिप्पणी:

  1. आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (20-08-2018) को "आपस में मतभेद" (चर्चा अंक-3069) पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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