मंगलवार, नवंबर 11, 2014

सारे ही ऐंठे हुए हैं....

सारे ही ऐंठे हुए हैं
सारे ही सबक सिखाने को
तैयार बैठे हुए हैं,
पता नहीं क्या हो गया है
पहले तो कुछ नहीं कहते थे
हर गलती को बच्चा समझकर
माफ करते थे,
लेकिन अब...

बाल कहते हैं कि-
तुम खुद तो खाते - पीते हो
अपनी पसंद का
पर हमें हमारा 
खाना तक नहीं देते,
जरा सा तेल तक 
तुमसे नहीं दिया जाता,
रोओगे जब हम 
छोड़ जायेंगे साथ
पूरी तरह से...

दिमाग को शिकायत है कि-
सुबह से लेकर रात तक
बस 'ये याद कर - वो याद कर'
नींद में भी सुकून नहीं है तुम्हें
जैसे कि हम कोई मशीन हों
एक दिन तब पता चलेगा बेटा
जब हम नहीं याद रखेंगे
तुम्हारा अपना नाम - पता भी...

आंखों को तकलीफ है कि-
हमेशा कंप्यूटर - मोबाइल पर
लगातार देखते रहते हो
कभी भी हमारे बारे में नहीं सोचते
हमें दर्द भी हो तो भी परवाह नहीं करते
ठीक है लगे रहो पर सोच लो
एक दिन चश्मा भी काम नहीं आयेगा...

कान कहते हैं कि -
दिन - रात मोबाइल पर
बतियाते रहते हो
न जाने किस - किससे,

कभी दायें तो कभी बायें
जैसे सबकी और सबकुछ ही 
बहुत जरूरी हो सुनना,
बस एक हमारी ही 
सुनना जरूरी नहीं है,
लेकिन तुम्हें पता तब चलेगा
जब हम बंद कर देंगे सुनना
तब अपना सिर धुनना...

दांतों का कहना है कि-
एक तो हमारी पसंद का खाना नहीं
और जो कुछ खाते भी हो
तो वो एकदम मरियल सा
वो भी निगल जाते हो सीधा
जैसे कि हमारी जरूरत ही नहीं

अच्छी बात है हम भी करते हैं
यहां से कूच करने की तैयारी...

दिल का रोना है कि -
जब देखो तब टेंशन ही देते हो
खुशी तो कभी देते नहीं
फिर भी उम्मीद करते हो कि
हम ऐसे ही हमेशा साथ देते रहें,
क्यों भाई, ठेका लिया है क्या?
एकाध झटका लगेगा तो
आ जायेगी अक्ल ठिकाने पर...

पेट महाशय बोलते हैं कि -
जो भी दिल में आता है
उल्टा - सीधा ठूंसते जाते हो
कभी सोचा है कि तुम हमसे
कितनी मेहनत कराते हो ?!
करा लो - करा लो, पर याद रखो
बहुत जल्दी ही हम तुमसे मेहनत करायेंगे
घंटों टॉयलेट में बिठायेंगे
दिन में तारे दिखलायेंगे
तुमको नानी याद दिलायेंगे...

पैरों को दुख है कि -
कदम - कदम पर चाहिये तुम्हें
मोटरसाइकिल, रिक्शा या कार,
घर और ऑफिस में भी 
हमेशा पसरे ही रहते हो,
न ज्यादा खड़े होते हो
न ज्यादा पैदल ही चलते हो,
इसतरह तुम हमें आलसी बना रहे
अच्छा, तो ऐसा है कि अब हम
पूरी तरह से सो जा रहे...

- विशाल चर्चित

1 टिप्पणी: