शुक्रवार, दिसंबर 09, 2011

ये मेरे कुछ शेर..........

उनके ग़म - उनकी यादों के अलावा भी है बहुत कुछ
क्या भूल गयी इतनी ज़ल्दी माँ की वो लोरियां.... ?
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शोला है तो भड़केगा हवा दें या कि पानी दें
जिन्हें जलना है जलते हैं बिना अंगारों के भी यार 
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तरीके और भी हैं यूं तुम्हारे पास रहने के
मगर डर है नज़र लग जाएगी हमारी इस मुहब्बत को
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तुम्हें मालूम क्या कि क्या बला हो तुम अदाओं में
खुदा भी खुद बनाकर जल गया होगा तुम्हें शायद 
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अजी क्या खूब है दावा मुहब्बत में निभाने का
चलो एक बार फिर से ओखली में सिर देके देखेंगे 
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आप यूं याद करते रहा न करें
हिचकियाँ हैं सताती हमें रात - दिन
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बात खूबसूरती से शुरू होती थी तब भी अब भी
पर सूरत से शुरू किस्सा सीरत पे ख़त्म होता है 
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यूं इस कदर तन्हाई अगर रास आ गयी
तो पहले कदम पर ही इश्क दम तोड़ जाएगा
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उनके लिए जब आँखें गंगोत्री हो चली
उम्मीद है कि एक दिन संगम भी आएगा
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खबर क्या थी यारों कि ये दिन भी होगा
अपने ही घर में बेगानों सी हालत........
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दौलत - ए - ग़म बहुत है सम्हालें कहाँ - कहाँ
अश्कों से भीगी ज़िन्दगी सुखाएं कहाँ - कहाँ 
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चलो कुछ काम तो आया मुहब्बत में फना होना
हमारे नाम का जलवा तुम्हारे शहर तक पहुंचा......
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मुहब्बत में ग़लतफ़हमी तो अक्सर हो ही जाती है
मगर जब दिल जुड़े हों तो बुरा कुछ भी नहीं होता 
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चलो अच्छा हुआ कि बच गए तुम ख़ाक होने से
नहीं तो तुम शहीद - ए - इश्क में भी नाम कर जाते
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ऐसा नहीं कि आपकी ज़रुरत नहीं रही
गैरों में रहके आपका ही नाम लिया है
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जरूरत क्या जुदाई की जब दिल में इतनी चाहत हो
जाओ आजमाओ पहले दिल और अपनी चाहत को
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लोगों को आस सावन की तो सहरा क्या दिखाना
उनकी तमाम उम्मीदों पे अब पानी क्या फिराना
माना तस्वीर पुरानी है पर दिल तो है नया - नया
ख़्वाबों का ये नया घरौंदा अब यूं भी क्या गिराना 

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