रविवार, मई 17, 2020

गलतियाँ तो हुई हैं, सुधार लें तो बेहतर...

'CORONAINDIAFAILURE'

 गलतियाँ तो हुई हैं, सुधार लें तो बेहतर... वरना इतिहास कभी माफ नहीं करेगा....
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इतनी बड़ी प्राकृतिक आपदा... सबके लिये एक बुरा और कभी न भूलने वाला अनुभव लेकर आयी है... इतना बड़ा देश - इतनी बड़ी आबादी... सबकुछ सही - सटीक हो... बिना किसी गलती - बिना किसी चूक के ये तो संभव ही नहीं है... पर नीयत सही हो तो सब ठीक हो जाता है गलतियाँ भी सुधारी जा सकती हैं, सबकुछ पटरी पर लाया जा सकता है... वर्ना समय - इतिहास कभी माफ नहीं करता किसी को भी...

प्रधानमंत्री -
जिनके नेतृत्व की सराहना देश - विदेश में हुई है... पर नेतृत्व यानी क्या... और किसका? नेतृत्व यानी घंटी बजवाना - दीया जलवाना - घर में रहने का आह्वान? पर ये सब किसके लिये? वो जिनके पास घर ही नहीं है उनका क्या? २० लाख करोड़ का पैकेज बहुत अच्छा है पर भविष्य के लिये... जो बेघर हैं... लगातार पैदल चल रहे... भूखे मर रहे... उनका क्या? अच्छा होता कि सबसे पहले उनके बारे में एक स्पष्ट नीति घोषित करते... देश की करोड़ों गरीब जनता मौत के कगार पर है... उसको तुरंत राहत चाहिये, भविष्य के सुनहरे सपने नहीं... देश महाशक्ति जब बनेगा तब बनेगा... विदेशों में हो रही प्रशंसा उसके किस काम की...

राज्य सरकारें -
किसी भी पार्टी की सरकार हो... राज्य में कोई भी गरीब मजदूर अगर बेघर है - भूखा है, अपने घर वापसी को मजबूर हुआ है, तो इसपर पहली जवाबदेही आपकी है... ऐसी स्थिति क्यों आयी कि उसे घर वापसी के लिये पैदल ही निकलना पड़ा... और आपने उसे जाने दिया? ये तो पल्ला झाड़ने वाली बात हुई? याद रखिये ये वही गरीब मजदूर हैं जिनका खून - पसीना लगा है राज्य की अर्थव्यवस्था में... आपका एक ही लक्ष्य होना चाहिये था कि वे गरीब मजदूर जहाँ हैं वहीं रहें... उनको वहीं जरूरी सुविधायें मिलें... बाकी आपका उपलब्धियाँ गिनाना - ये बताना कि हमने ये किया - वो किया सब बेकार है...

मीडिया -
वैसे तो मीडिया की भूमिका बहुत ही सराहनीय रही है... ये मीडिया ही है जो पल - पल की जानकारी उपल्ब्ध कराता रहा है... सभी घटनायें जनता तक पहुँचती रही हैं चाहे वो अच्छी रही हों या बुरी। लेकिन कुछ गलतियाँ मीडिया से भी हुई हैं, जैसे कि राजनीतिज्ञों को बुलाकर अर्थहीन बहस, धर्म-जमात पर बेवजह की बहस, गरीब जनता की बदहाली और बेबसी का कुछ टीवी एंकर्स द्वारा मुक्तछंद कविता जैसा भावुक पाठ, क्या हासिल होता है इससे? बेहतर हो कि किसी भी मुद्दे पर किसी भी एक मंत्री - एक नेता - एक धर्मगुरू को घेरा जाये... उससे चुन-चुन कर सवाल पूछे जायें, उसे बताया जाये कि क्या होना चाहिये था और क्या आपने किया, क्या नहीं किया... वर्ना ये टीवी की ये अर्थहीन बहस - और डिबेट्स... मछली बाजार से ज्यादा कुछ नहीं...

विभिन्न विपक्षी राजनैतिक दल -
इस वैश्विक महामारी में अगर सवसे निकृष्ट भूमिका कीसी की रही है तो वे हैं तमाम राजनितिक दल। ऐसा लगता है कि जैसे उनका सिर्फ यही लक्ष्य है कि कुछ भी हो जाये, मोदी सफल नहीं होना चाहिये, केन्द्र की कोई भी योजना सफल न होने पाये... हम तो विपक्ष में हैं हमारा काम सिर्फ कमियाँ निकालना है, आरोप-प्रत्यारोप करना मात्र है... बाकी देश चलाना केंद्र सरकार का काम है... गरीब जनता मरती है तो मरे, हम क्या करें... हम सत्ता में होते तो ये तीर मारते - वो तीर मारते... जिस राज्य में हमारी सरकार है वहाँ हमने ये कर दिया है - वो कर दिया है... बाकी काम केंद्र सरकार का है... तो इतना जान लें कि जनता बेवकूफ नहीं है... सब जान लेती है... भले ही कहे कुछ भी ना...

जनता -
बहुत कम लोग हैं जिन्हें दूसरों का दुख-दर्द महसूस होता है... ज्यादातर लोग तो लॉकडाउन की छुट्टी मनाने में मस्त है... ईश्वर का दिया सबकुछ है उनके पास... और शायद सदैव रहेगा भी... शायद इसीलिये क्योंकि सोशल मीडिया पर तरह - तरह के पकवान पेश करते रहते हैं... कि देखो आज हमने ये पकाया - ये खाया... ये लोग भूल जाते हैं या इनको समझ नहीं आता कि इस वक्त तमाम लोग ऐसे भी हैं जो मुसीबत में हैं और भूखे हैं कई दिनों से... कोई कविता कर रहा है लगातार - तो कोई गाना गा रहा है... तो कोई प्रेम कविता - शेरो-शायरी में मशगूल है... तो कोई हंसने-हंसाने की चुटकुलेबाजी में व्यस्त है... इन्हें देखकर लगता ही नहीं कि मानवजाति पर कोई संकट भी है इस समय... इन्हीं में से कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका एक ही उद्देश्य है कि सुबह आँख खुलने से लेकर रात को आँख बंद होने तक टीवी पर खबरें देख-देख कर सत्ता पक्ष या किसी खास विपक्षी दल या किसी खास धर्म के खिलाफ जहर उगलना... ऐसा लगता है कि जैसे इनको इसी काम के लिये नौकरी पर रखा गया है... इन सब लोगों को देख कर लगता है कि स्वार्थांधता - भ्रष्टाचार - व्याभिचार - अनैतिकता के लिये राजनीतिज्ञों को ही हम अकेले कैसे दे सकते हैं... क्योंकि नेतागण आखिर इन्हीं उपरोक्त सद्गुणों का ही तो व्यापक और विस्तृत रूप होते हैं...

खैर, जो कुछ महसूस हुआ लिखा है, इस आशा के साथ कि इससे कुछ लोग सीख लेंगे... हालांकि बहुत से लोग इसमें से भी 'किंतु-परन्तु' या 'इसमें भी खामियां' ढूंढ ही लेंगे... जो भी हो, इस पोस्ट का उद्देश्य न प्रशंसा है - न आलोचना... लोग लाइक - कमेंट नहीं भी करेंगे तो चलेगा...

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