काश वे पल फिर से आते
वही मेघ घिर के आते
मीठे - मीठे बचपन वाले
नाजुक - नाजुक से मन वाले
वही उछलना - वही फुदकना
वही शरारत - वही चहकना
वही बेफिक्री - वही मस्तियां
वही ख्वाबों वाली बस्तियां
लेकिन कहां ये हो पाता है
समय पुराना कहां आता है
रह जाती हैं केवल यादें
रह जाती हैं केवल बातें
तस्वीरों में रखे हुए पल
हमें निहारें बीत गये कल
कहते चलो सैर पर चलते
जहां सुनहरे दिये हैं जलते
दिल में नया जोश जो भरते
'चर्चित' को फिर 'मुन्ना' करते...
- विशाल चर्चित
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (26-02-2017) को
जवाब देंहटाएं"गधों का गधा संसार" (चर्चा अंक-2598)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आपका हृदय से आभार सर... आज की चर्चा के विषय के अनुरूप न होने के बावजूद मेरी इस रचना को जगह देना... मेरे लिये आपके स्नेह एवं साहित्य के प्रति आपकी निष्ठा का द्योतक है... आपको - आपके साहित्य प्रेम को करबद्ध नमन् है...
हटाएंईश्वर से प्रार्थना है कि आपके हृदय में साहित्य की लौ ऐसे ही जलाये रखे... आपके स्वास्थ्य - जीवन में सुख - शांति एवं समृद्धि को सदैव उत्तम बनाये रखे....
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