मंगलवार, मार्च 08, 2016

महिला दिवस पर एक खास रचना...

हे नारी तू सागर है...
हे नारी तू सागर है
जहां नदियाँ मिलतीं आकर हैं
पुरुष समझता आधा - पौना
कहे घरेलू गागर है...

जिसने भाँप लिया रत्नों को
तेरे आँचल के साए में,
सही अर्थ में समझो उसका
देवी - देवताओं का घर है...

फ़र्ज़ - धर्म और संस्कार
बचपन से साथ लिए चलती,
इन सीमाओं के बावजूद
उन्नति करती तू अक्सर है...

पुरुष उलझ जाता अक्सर
दुनियादारी के पचड़ों में,
पर तेरे लिए तो घर - परिवार
सारी दुनिया से बढ़कर है...

नौ माह तक अपने खून से
सींच-सींच देती आकार,
फिर सहती पीड़ा अथाह
तब आता बच्चा धरती पर है...

धन्य तेरी ये सहनशीलता
ऋणी तेरा संसार सकल,
हे नारी, तुझको "चर्चित" का
श्रद्धा से भरपूर नमन है...

- विशाल चर्चित

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