सोचें तो वो
कि जिन्हें है चाहत
छूने की आसमान,
कि जो पा लेना
चाहते हैं जिन्दगी में
कामयाबियों का जहान...
हमारा क्या है
आदमी हैं
फकीर मिजाज के,
अपना काम करेंगे
और दुनिया से
चुपचाप चलते बनेंगे...
वक्त की मिट्टी तले
अगर दफन भी हुए तो
वक्त को ही चिढ़ायेंगे
इस जहां पर मुस्कुरायेंगे,
कि अब तू सोच और
लगा हिसाब कि
खो दिया क्या और किसे...
हमें क्या गम?
हम क्यों हो दुखी?
हमारा माल हमारे पास
नहीं बिका तो नहीं बिका,
तमाम कोयलों में एक हीरा
किसी को पूरी दुनिया में
नहीं दिखा तो नहीं दिखा,
सिर्फ कामयाबी या
फायदे के लिये हमारा सिर
किसी के सामने
नहीं झुका तो नहीं झुका,
हम तो हैं बहुत खुश
इसी में ही कि
किसी को मस्का
लगाये बगैर भी
हमारा कोई काम
नहीं रुका तो नहीं रुका...
- विशाल चर्चित
कि जिन्हें है चाहत
छूने की आसमान,
कि जो पा लेना
चाहते हैं जिन्दगी में
कामयाबियों का जहान...
हमारा क्या है
आदमी हैं
फकीर मिजाज के,
अपना काम करेंगे
और दुनिया से
चुपचाप चलते बनेंगे...
वक्त की मिट्टी तले
अगर दफन भी हुए तो
वक्त को ही चिढ़ायेंगे
इस जहां पर मुस्कुरायेंगे,
कि अब तू सोच और
लगा हिसाब कि
खो दिया क्या और किसे...
हमें क्या गम?
हम क्यों हो दुखी?
हमारा माल हमारे पास
नहीं बिका तो नहीं बिका,
तमाम कोयलों में एक हीरा
किसी को पूरी दुनिया में
नहीं दिखा तो नहीं दिखा,
सिर्फ कामयाबी या
फायदे के लिये हमारा सिर
किसी के सामने
नहीं झुका तो नहीं झुका,
हम तो हैं बहुत खुश
इसी में ही कि
किसी को मस्का
लगाये बगैर भी
हमारा कोई काम
नहीं रुका तो नहीं रुका...
- विशाल चर्चित
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-12-2014) को "ना रही बुलबुल, ना उसका तराना" (चर्चा-1814) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'