नशा....
किसी भी तरह का
नहीं होता है अच्छा,
किसी का - कभी भी
नहीं करता है ये अच्छा....
आता है हमेशा
एक बहुत ही ख़ास
चमकदार रौशनी की तरह,
एक बहुत ही ख़ास
खुशबू की तरह.....और
आहिस्ता - आहिस्ता
जकड़ता चला जाता है
अपने आगोश में....
फिर कोई लाख मना करे
समझाए - झगडा करे,
दिमाग समझता है
पर नहीं समझता है दिल...
और हमेशा बार - बार
खींच ले जाता है हमें
उसकी ओर - उस नशे की ओर......
पर नहीं....कुछ नहीं बिगड़ा
अब भी है बहुत कुछ बचा,
उठो......कोशिश करो
सोचो कि निकलना है
मुझे इस दलदल से,
इस मकडजाल से....
और अपना लो एक सीधा सा
बिलकुल आसान सा रास्ता,
पहले वाले नशे से निकलने के लिए
शुरू कर दो एक दूसरा नशा...
ये नशा हो कामयाबी का, तरक्की का,
इज्ज़त और शोहरत का...
कल्पना करो - ख्वाब देखो
करो दोनों में फर्क, कि -
कहाँ ले जाता तुम्हें पहले वाला नशा
और कहाँ ले जा सकता है
ये तुम्हारा अब वाला नशा......
बस यही ख्वाब - यही कल्पना
देगी तुम्हें ताक़त और हिम्मत
जो छुडा देगी तुम्हारा
बड़े से बड़ा बेकार का नशा......
-Copyright © All Rights Reserved
किसी भी तरह का
नहीं होता है अच्छा,
किसी का - कभी भी
नहीं करता है ये अच्छा....
आता है हमेशा
एक बहुत ही ख़ास
चमकदार रौशनी की तरह,
एक बहुत ही ख़ास
खुशबू की तरह.....और
आहिस्ता - आहिस्ता
जकड़ता चला जाता है
अपने आगोश में....
फिर कोई लाख मना करे
समझाए - झगडा करे,
दिमाग समझता है
पर नहीं समझता है दिल...
और हमेशा बार - बार
खींच ले जाता है हमें
उसकी ओर - उस नशे की ओर......
पर नहीं....कुछ नहीं बिगड़ा
अब भी है बहुत कुछ बचा,
उठो......कोशिश करो
सोचो कि निकलना है
मुझे इस दलदल से,
इस मकडजाल से....
और अपना लो एक सीधा सा
बिलकुल आसान सा रास्ता,
पहले वाले नशे से निकलने के लिए
शुरू कर दो एक दूसरा नशा...
ये नशा हो कामयाबी का, तरक्की का,
इज्ज़त और शोहरत का...
कल्पना करो - ख्वाब देखो
करो दोनों में फर्क, कि -
कहाँ ले जाता तुम्हें पहले वाला नशा
और कहाँ ले जा सकता है
ये तुम्हारा अब वाला नशा......
बस यही ख्वाब - यही कल्पना
देगी तुम्हें ताक़त और हिम्मत
जो छुडा देगी तुम्हारा
बड़े से बड़ा बेकार का नशा......
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बहुत खूब लिखा है आपने विशाल जी
जवाब देंहटाएंआपका दिल से शुक्रिया !!!
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