रविवार, दिसंबर 25, 2011

अटल जी के जी जन्मदिवस पर..........


हे काल पुरुष है नमन तुम्हें
इस जन्मदिवस के अवसर पर,
अरे आज तो कुछ बोलो मुख से
इस जन्मदिवस के अवसर पर....
राजनीति है दिशाहीन
चहुँ ओर व्याप्त अंधियारा है,
लोकपाल पर सब चकराए
हर दल इस पर हारा है....
नेतृत्व तुम्हारा स्मरण हो रहा
जब पक्ष - विपक्ष था नत - मस्तक,
सारे घटकों में थी एकता
एक तुम सत्ता में थे जब तक....
अमरीका रह गया देखता
भारत परमाणु शक्ति बन बैठा,
समस्त विश्व को बता दिया कि
देश आत्मनिर्भर हो बैठा....
कारगिल के बाद पाक को
सबसे अलग - थलग करवाया,
आतंकवाद का केंद्र यही है 
यह पूरे विश्व से मनवाया....
यदि रह जाते कुछ वर्ष और 
एक महाशक्ति होता ये देश,
कुछ क्षुद्र समस्याओं में ऐसे
कभी नहीं उलझता ये देश....
माना कि आयु हुई बाधक
और स्वास्थ्य भी साथ नहीं देता,
पर आप चुप रहे हर समस्या परसच, मानने का मन नहीं होता......

ईश्वर से आपके सुदीर्घ जीवन की
विशेष कामना के साथ 

शुक्रवार, दिसंबर 09, 2011

ये मेरे कुछ शेर..........

उनके ग़म - उनकी यादों के अलावा भी है बहुत कुछ
क्या भूल गयी इतनी ज़ल्दी माँ की वो लोरियां.... ?
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शोला है तो भड़केगा हवा दें या कि पानी दें
जिन्हें जलना है जलते हैं बिना अंगारों के भी यार 
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तरीके और भी हैं यूं तुम्हारे पास रहने के
मगर डर है नज़र लग जाएगी हमारी इस मुहब्बत को
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तुम्हें मालूम क्या कि क्या बला हो तुम अदाओं में
खुदा भी खुद बनाकर जल गया होगा तुम्हें शायद 
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अजी क्या खूब है दावा मुहब्बत में निभाने का
चलो एक बार फिर से ओखली में सिर देके देखेंगे 
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आप यूं याद करते रहा न करें
हिचकियाँ हैं सताती हमें रात - दिन
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बात खूबसूरती से शुरू होती थी तब भी अब भी
पर सूरत से शुरू किस्सा सीरत पे ख़त्म होता है 
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यूं इस कदर तन्हाई अगर रास आ गयी
तो पहले कदम पर ही इश्क दम तोड़ जाएगा
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उनके लिए जब आँखें गंगोत्री हो चली
उम्मीद है कि एक दिन संगम भी आएगा
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खबर क्या थी यारों कि ये दिन भी होगा
अपने ही घर में बेगानों सी हालत........
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दौलत - ए - ग़म बहुत है सम्हालें कहाँ - कहाँ
अश्कों से भीगी ज़िन्दगी सुखाएं कहाँ - कहाँ 
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चलो कुछ काम तो आया मुहब्बत में फना होना
हमारे नाम का जलवा तुम्हारे शहर तक पहुंचा......
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मुहब्बत में ग़लतफ़हमी तो अक्सर हो ही जाती है
मगर जब दिल जुड़े हों तो बुरा कुछ भी नहीं होता 
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चलो अच्छा हुआ कि बच गए तुम ख़ाक होने से
नहीं तो तुम शहीद - ए - इश्क में भी नाम कर जाते
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ऐसा नहीं कि आपकी ज़रुरत नहीं रही
गैरों में रहके आपका ही नाम लिया है
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जरूरत क्या जुदाई की जब दिल में इतनी चाहत हो
जाओ आजमाओ पहले दिल और अपनी चाहत को
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लोगों को आस सावन की तो सहरा क्या दिखाना
उनकी तमाम उम्मीदों पे अब पानी क्या फिराना
माना तस्वीर पुरानी है पर दिल तो है नया - नया
ख़्वाबों का ये नया घरौंदा अब यूं भी क्या गिराना 

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रविवार, दिसंबर 04, 2011

Its my tribute to DEV SAAHAB..............

जिसकी आँखें नहीं थी कोई मामूली आँखें
जिसकी मुस्कराहट नहीं थी कोई मामूली मुस्कराहट
जो करोड़ों दिलों की जैसे रहा हो ज़िन्दगी
वो दिल की वजह से गया ज़िन्दगी से
नहीं मानता दिल - नहीं मानता.....
जिसने ना जाने कितने ही सपने दिए
जिसने न जाने कितनी खुशियाँ बिखेरी
जो जैसे आशिकी की रहा हो एक किताब
वो हुआ बंद पन्नों में यूं इस तरह
नहीं मानता दिल - नहीं मानता.....
जिसने जो भी किया पूरे दिल से किया
जिसने कितनों को सबब जीने का दे दिया
रुपहले परदे की इतने सालों जो पहचान था
वो यूं कभी परदे के पीछे भी जाएगा
नहीं मानता दिल - नहीं मानता.....

शुक्रवार, नवंबर 25, 2011

ये मेरे कुछ शेर..........

न जाने कितने आते हैं - न जाने कितने जाते हैं
मगर कुछ लोग बहुत गहरा निशान छोड़ जाते हैं
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तू आसपास तलाश कर कोई दिल धड़कता है रात दिन,
तेरे नाम पे जिसकी सांस है उसे ढूंढ कर अपने नाम कर....
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खामोशियाँ जब हद से गुज़र जायें
दुनिया को कुछ जलने की बू आये
तब शुरू होता कयासों का एक दौर
फिर तो हर सांस फंसाना बन जाए
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ये दिल से दिल का रिश्ता होता है कुछ इस कदर
कि लगती है चोट इधर तो कराहता है दिल उधर 
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खुदा है कि नहीं ये हमें पता नहीं
हमने तो हमेशा से मुहब्बत को खुदा माना है....
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ऐ खुदा तू आ बता कि है मेरी क्या ये खता ?
दिल से उनकी की इबादत तो भला तू क्यों जला ?
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देख ले तेरी खुदाई पे भरोसा उठ रहा
इश्क में जो हार है समझो कि सब बेकार है 
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सुना है मुहब्बत में खुदा साथ देता है
दो दिलों के दरम्यां फासले कम कर देता है ??
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काश कभी खुदा से मुलाकात होती
बाकी चीज़ें बाद में पहले तुमपे बात होती 
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क्या खुदा है वो कि जो चुपचाप बैठा देखता
मौत का मेरी तमाशा वो सितमगर कर गया......
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इश्क में कोई खुदा होता नहीं है आजकल
हाँ मगर हर जुल्म होता है उसी के नाम पर 
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कौन कहता है खुदा रहता है केवल मस्जिदों में
झाँक कर देखो तो दिल काबा नजर तुम्हें आएगा 
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मैं रोज़ दुआ करता हूँ तेरी सलामती के लिए
खुद मेरे नाम मौत का पैग़ाम आ गया है..... 
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तुम सलामत रहो बस यही है दुआ
हमारा है क्या हम रहे न रहे............
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खुदा से हमारी है इतनी सी चाहत
तुम्हें खुश रखे वो कोताही न बरते 

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मंगलवार, नवंबर 08, 2011

नशा....

नशा....
किसी भी तरह का
नहीं होता है अच्छा,
किसी का - कभी भी
नहीं करता है ये अच्छा....
आता है हमेशा 
एक बहुत ही ख़ास 
चमकदार रौशनी की तरह,
एक बहुत ही ख़ास 
खुशबू की तरह.....और 
आहिस्ता - आहिस्ता
जकड़ता चला जाता है 
अपने आगोश में....
फिर कोई लाख मना करे
समझाए - झगडा करे,
दिमाग समझता है
पर नहीं समझता है दिल...
और हमेशा बार - बार 
खींच ले जाता है हमें 
उसकी ओर - उस नशे की ओर......
पर नहीं....कुछ नहीं बिगड़ा
अब भी है बहुत कुछ बचा,
उठो......कोशिश करो
सोचो कि निकलना है
मुझे इस दलदल से,
इस मकडजाल से....
और अपना लो एक सीधा सा 
बिलकुल आसान सा रास्ता,
पहले वाले नशे से निकलने के लिए
शुरू कर दो एक दूसरा नशा...
ये नशा हो कामयाबी का, तरक्की का, 
इज्ज़त और शोहरत का...
कल्पना करो - ख्वाब देखो 
करो दोनों में फर्क, कि -
कहाँ ले जाता तुम्हें पहले वाला नशा
और कहाँ ले जा सकता है 
ये तुम्हारा अब वाला नशा......
बस यही ख्वाब - यही कल्पना
देगी तुम्हें ताक़त और हिम्मत
जो छुडा देगी तुम्हारा
बड़े से बड़ा बेकार का नशा......
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शनिवार, नवंबर 05, 2011

शुक्रवार, नवंबर 04, 2011

मुहब्बत जिंदाबाद...

साजिशें होती रहेंगी साजिशों का क्या
मुहब्बत थी मुहब्बत है रहेगी यूं ही जिंदाबाद...

गुरुवार, नवंबर 03, 2011

ये बेसबब सी दूरियां....

दमियान-ए-इश्क और ये बेसबब सी दूरियां
खुदाया तू बता क्या हैं तेरी मजबूरियां ??
वजह क्या है कि तू इतना सताता आशिकों को
चलाता है भला क्यों इन दिलों पे छूरियाँ ??  

अक्सर आम हो जाता है दिल का रास्ता अपना...

बहुत अच्छा लगा एक ख़ास से है वास्ता अपना
चुना तो हमने भी है ख़ास दिल का रास्ता अपना
अब करें क्या हैं बड़े मजबूर हम इस यारबाजी से
कि अक्सर आम हो जाता है दिल का रास्ता अपना...

इधर आंसू हमारे हैं, उधर जलवे तुम्हारे हैं...

इधर आंसू हमारे हैं
उधर जलवे तुम्हारे हैं
कहीं बरसात का मौसम
कहीं झिलमिल सितारे हैं...
मयस्सर ही नहीं मिलना
कि दूरी कम नहीं होती,
कभी लगता है एक दरिया
और हम - तुम दो किनारे हैं...
फ़क़त अब एक सहारा है
तुम्हारी मुस्कराहट का,
नहीं तो ज़िन्दगी में अब
कहाँ मुमकिन बहारें हैं...
तुम्हें देखें कहीं जब खुश
तो हम भी मुस्कुरा लेते,
यही जीने का एक जरिया
समझ लो पास हमारे है....
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बुधवार, अक्टूबर 26, 2011

दीपावली मनाइए, पर............

दीपावली मनाइए
पर अक्ल भी लगाइए,
पटाखों के बहाने जेब को
माचिस मत लगाइए....
जेब और आप सलामत
तो सारा जहां सलामत,
वर्ना तो ये दिवाली क्या
पूरी ज़िन्दगी क़यामत........
" शुभ दीपावली "

मंगलवार, अक्टूबर 25, 2011

मुहब्बत का नशा

मुहब्बत का नशा हो तो कहाँ कुछ सूझता है
फिर आबादी या बरबादी ये मर्जी खुदा की है

सोमवार, अक्टूबर 24, 2011

दिल मिला दिया है....

क्या ज़रूरत है मुहब्बत में दिखावे की
हाथ मिलें न मिलें दिल मिला दिया है....

समझिये कि ग़ज़ल हो गयी.....

हम दिल के मामले में अलफ़ाज़ नहीं देखते
आप उफ़ भी करें तो समझिये कि ग़ज़ल हो गयी....

कह डालो हाल - ए - दिल

कह डालो हाल - ए - दिल अगर सुकून मिले
रोना आया तो चुप कराने के तरीके ईजाद होंगे.........

शुक्रवार, अक्टूबर 21, 2011

शुभ दीपावली - मंगल दीपावली

शुभ दीपावली - मंगल दीपावली
विशेष शांतिमय हो ये दीपावली
हर्षमय दीपावली -आनंदमय दीपावली
विशेष उत्साहमय हो ये दीपावली
सुखमय दीपावली - समृद्धिमय दीपावली
विशेष मुस्कानमय हो ये दीपावली
स्नेहमय दीपावली - प्रेममय दीपावली
विशेष अपनेपन से भरी हो दीपावली

गुरुवार, अक्टूबर 20, 2011

दुश्मनों को एहसास-ए-मुहब्बत न बख्शो

दुश्मनों को एहसास-ए-मुहब्बत न बख्शो
इतनी दरियादिली अच्छी नहीं होती
सिर्फ अपने ही काम आते हैं मुसीबत में
उनकी नफरत मुहब्बत से कम नहीं होती.....

बुधवार, अक्टूबर 19, 2011

तारीफ मारे डालती....

दिल ने कहा कर गया, अफ़सोस हो रहा है अब
क्या पता था उनको तारीफ मारे डालती....

सोमवार, अक्टूबर 17, 2011

ये इश्की नायाब नुस्खा......

झगड़ने से हुआ करता है अक्सर प्यार दोगुना
ये इश्की नायाब नुस्खा जब चाहो आजमा लो.........

रविवार, अक्टूबर 16, 2011

दिल

बहुत कम लोग दुनिया में - हैं जो दिल को समझ पाए
मर्ज़ कुछ और होता है - इलाज कुछ और करते हैं.......

करवाचौथ

साल में एक बार प्यार - साल में एक बार व्रत
पर मज़ा तो तब है कि हर रोज़ करवाचौथ हो......

गुरुवार, अक्टूबर 06, 2011

भई रावण दहन की बधाई क्यों??


आज सुबह से भाई लोगों ने दशहरे की बधाई - शुभकामना दे - दे कर दिमाग खराब कर दिया......मैं ये सोच रहा हूँ कि ये लोग मुझे क्यों बधाई - शुभकामना दे रहे हैं.........क्या मैं रावण को मार कर आ रहा हूँ जो बधाई पे बधाई दिए जा रहे हैं भाई लोग ???............या मारने जा रहा हूँ जो शुभकामनायें दिए जा रहे हैं कि "जाओ बेटा तुमसे इस देश - इस समाज को बड़ी उम्मीदें हैं.....सम्हल कर वाण चलाना.....भगवान् तुम्हारी रक्षा करें......तुम्हें अथाह शक्ति प्रदान करें" वगैरह - वगैरह........या मुझसे किसी कलियुगी सूर्पनखा की नाक कटवाने के चक्कर में हैं भाई लोग.........सोच रहे होंगे ये देखने में सीधा - साधा लगता है...........सूर्पनखा इसके चक्कर में आ कर खुद ही अपनी नाक इसके हवाले कर देगी.......तो भाई आज की सूर्पनखाएं ?........हरे - हरे.....मत पूछिए, तलवार सहित मुझे भी गायब कर देंगी प्यार - प्यार से......अगले दिन टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ आएगी कि "एक प्रेमी गवां बैठा अपनी नाक बेवफाई के बदले".......फिर यही भाई लोग कहेंगे....."च्च - च्च कैसा घोर कलियुग आ गया है किसी का भरोसा नहीं किया जा सकता.........देखो तो कैसा भोला - भाला दिखता था".........कोई कहेगा...." अरे इसे तो हमने देखा था बहुत कविता - वबिता लिखता था.......भई ये कवि लोगों से तो सावधान ही रहना चाहिए, बड़े सनकी होते हैं"...........खैर, सारा दिन इसी उधेड़ - बुन में निकल गया, अब सोचा कि चलो आप लोगों से पूछता हूँ.........यहाँ एक से एक जानकार बाबू जी लोग बैठे हैं......क्या पता महात्मा बुद्ध कि तरह मुझे भी ज्ञान प्राप्त हो जाये............

सोमवार, अक्टूबर 03, 2011

ये मेरे कुछ शेर..........

मिला आसानी से जब दिल बहुत सस्ता समझ बैठे
बहुत पछतायेंगे वो कल जब इसको खो चुके होंगे.......

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खुमारी ही उतर जाये तो इश्क बेमतलब हुआ जानो
मिले मंजिल सुकून ए दिल नयी मंजिल तलाशो फिर
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रूठ कर जायेंगे भी तो जाइए खूब शौक से
इस जहां के उस तरफ भी हम मनाने आयेंगे...
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बैठकर कुछ पल को जब दरिया को देखा गौर से
ज़िंदगी मुझको अचानक एकदम ठहरी लगी....
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फासला जिस्मानी है जो दरमियाँ तो क्या हुआ
बस दिलों के बीच नजदीकी रहे काफी विशाल....

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रविवार, अक्टूबर 02, 2011

बापू तुम्हें नमन करने में.........


दो कपड़े और सांचा हड्डियों का
क्या कमाल दिखला गया,
नहीं ज़रूरत बंदूकों की
करके वो दिखला गया....
बातों में हो दम दुनिया झुकती
करो वही जो कहते हो,
सत्य - अहिंसा की अजेय
एक राह हमें दिखला गया....
दिल बड़ा हो दुनिया अपनी
दो लोगों का कुनबा क्यों,
लोग परेशां कुछ रिश्तों से
वो करोड़ों रिश्ते निभा गया.....
एक छोटी सी उथल - पुथल से
लोग सत्ता सुख पा जाते हैं,
वो जीवन भर संघर्ष के बदले
गोली भी हंसकर खा गया.....
कहाँ मिलेगा ऐसा फ़रिश्ता
अब इस कलियुग में 'चर्चित'
बापू तुम्हें नमन करने में
आँख से आंसू आ गया....

शुक्रवार, सितंबर 30, 2011

जीवनसंगिनी..........

जीवनसंगिनी..........
ये एक शब्द मात्र नहीं
बल्कि एक पूरा संसार है
खुशियों का - खुशबुओं का
एहसासों का - मिठासों का
रिश्तों का - नातों का....
जीवनसंगिनी..........
एक संगी - एक साथी ही नहीं
बल्कि एक हिस्सा है
हर सुख - दुःख, हर धर्म - कर्म का
हर बात का - हर विचार का,
हर स्वभाव - हर व्यवहार का....
लेकिन ये सब तब है जबकि
हम इन सब चीज़ों को
मानें - महसूस करें,
ठीक उस तरह जैसे कि
हम एक मूर्ति को
मानें तो ईश्वर नहीं तो पत्थर......

बुधवार, सितंबर 28, 2011

हे नारी तू सागर है....

हे नारी तू सागर है
जहां नदियाँ मिलतीं आकर हैं
पुरुष समझता आधा - पौना
कहता घरेलू गागर है.....
जिसने भाँप लिया रत्नों को
तेरे आँचल के साए में,
समझो सही अर्थ में उसका
देवी - देवताओं का घर है.....

बुधवार, सितंबर 21, 2011

चर्चित बाबा के चक्कर में....

चर्चित बाबा के चक्कर में
नटखट बाला हुई बीमार,
बाबा हैं साधू - सन्यासी
वो पूरी कलयुगी नार.....
बाबा जब भी धुनी रमाते
वो हो जाती है हाज़िर,
इधर - उधर से ढांप - ढूंप के
करने लगती कविता वार,
फिर भी बाबा ना बोलें जब
ध्यान तोड़ती सीटी मार.....
आप लोग ज्ञानी - ध्यानी सब
जल्दी कोई उपाय बताएं,
नहीं तो बाबा चले हिमालय
छोड़ - छाड़कर ये संसार.......

शनिवार, सितंबर 10, 2011

ये आशिकी का भूत साला....

ये आशिकी का भूत साला सिर पे चढ़के बोलता
और माशूक है कि दिल का दरवाज़ा ही नहीं खोलता....
रोज़ लगते चक्कर उसकी गली के यारों
फिर भी एक कुत्ता देखते ही हमको भौंकता......
सपने में भी आती है तो बाप और भाई के साथ
हम नींद में चौंक जाते हैं जैसे बच्चा चौंकता....
भूल से एक दोस्त से कर बैठे हैं ज़िक्र हम
वो भी साला घाव पे हमेशा नीबू ही है निचोड़ता....

गुरुवार, सितंबर 08, 2011

अमर सिंह जी अमर रहे....

अमर सिंह जी अमर रहे
नोटों से तर -  बतर रहे,
आप उधर तिहाड़ में
बण्डल सारे इधर रहे,
देश पर एहसान है कि
आप बहुतों के काम आये,
बहुतों को इधर - उधर
ले - दे के सेट कराये,
जिनका काम बनाया
उन्होंने ही रंग दिखाया,
खुद हैं काबिज सत्ता पे
आपको तिहाड़ दिखाया,
इसीलिए कहावत है कि
घुन हो तो घुन की तरह रहो,
वर्ना गेहूं का साथ किया
तो बेटा अब साथ पिसो....

वो आये किये धमाका....

वो आये किये धमाका
और मुस्कुराते निकल गए,
सोचा भी नहीं इंसानियत के
जनाजे निकल गए,
आओ - मिलें - बैठें
बातों से जी बहलायें,
उजाड़ना था जिन्हें वो तो
कब के उजाड़ गए......

सोमवार, सितंबर 05, 2011

इस दिल को पहली बार....

इस दिल को पहली बार कोई दुखाता चला गया
वाकई वो हुनरमंद था दुआ पाता चला गया,
लफ्ज़ नहीं थे इसलिए मुस्कुरा के रह गए
वो आराम से अपना नश्तर चलाता चला गया....


शनिवार, सितंबर 03, 2011

क्यों निराश इतना क्या सूर्य बुझ गया....

क्यों निराश इतना क्या सूर्य बुझ गया
सूख गए सागर, या हिमालय झुक गया
आ बता कहाँ तुझे चोट है लगी
धरती मां है देख लिए औषधि खड़ी
इस उमर में थक गया संसार देख कर
या डर गया सच्चाई का अंगार देखकर
चल खड़ा हो, हार अभी मानना नहीं
वो साथ तेरे हर समय, पुकारना नहीं
देख ज़रा इस तरफ 'चर्चिती निगाह' में
तू अकेला है नहीं, इस ज़िन्दगी की राह में.....


गुरुवार, सितंबर 01, 2011

हे विघ्नेश्वर - हे गणराया....

हे विघ्नेश्वर - हे गणराया
ज़रा दिखाओ अपनी माया,
महंगाई और घोटालों से
जन - जन का अब दिल बौराया...
किसी को रोटी नहीं नसीब
किसी ने आधा देश पचाया,
हे विघ्नेश्वर - हे गणराया
ज़रा दिखाओ अपनी माया...
सिर पर चढ़कर स्वार्थ बोलता
रिश्ते रह गए केवल छाया,
आपको भी तो स्वार्थ के कारण
लोगों ने भारी माल चढ़ाया,
हे विघ्नेश्वर - हे गणराया
ज़रा दिखाओ अपनी माया...
अपने पास नहीं धन - दौलत
बस दया - धर्म लेकर आया,
यही प्रसाद चढ़ाता तुमको
बाकी तुम समझो गणराया,
हे विघ्नेश्वर - हे गणराया
ज़रा दिखाओ अपनी माया...

बुधवार, अगस्त 24, 2011

पढने की फुर्सत नहीं क्या करें भाई लोग....

पढने की फुर्सत नहीं क्या करें भाई लोग
और कुछ कवियों को लगा छापा-छापी रोग....
छापा छापी रोग लगा जिसको भाई
नहीं पचेगा भोजन जो ना करें छपाई.....
इसीलिये कुछ होशियार लोगों ने रस्ता ढूंढा
'Like' बटन दबाकर करते पढ़ने का नाटक झूठा....
यही नहीं पॉकेट में रखते कुछ शब्द हैं रेडीमेड
जैसे Nice - Wow -Lovely -और Very Good - Great .....
ऐसी तारीफें सुन कवि महोदय
सातवें आसमान पर चढ़ जाते हैं
थोड़ी देर के लिए स्वयं को 'टैगोर' से ऊपर पाते हैं....

रविवार, अगस्त 14, 2011

15 अगस्त.... इसी दिन हुए थे हम आजाद.....

15 अगस्त....
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
अपनी अक्ल लगाने के लिए
कुछ कर दिखाने के लिए....
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
अपनी जुगाड़ तकनीक का हुनर से
लाकर दूसरे का प्रोडक्ट उसपर
‘मेड इन इन्डिया’ लगाने के लिए...
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
20 किलो के बच्चे पर
20 किलो किताबें लादकर
‘ऑल इन वन’ बनाने के लिए,
स्कूल में खाली चैप्टर के नाम
बाकी ट्युशन - कोचिंग में पढ़ाने के लिए,
और ‘एक्जाम फिक्सिंग’ का फॉर्मूला निकाल
100 नंबर में 100 नंबर लाने के लिए.....
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
जोड़-तोड़, कुछ दे-ले कर
बाबू बन जाने के लिए,
और जनता को चक्कर लगवाकर
लाखों - करोड़ों बनाने के लिए...
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
अपनी मैनेजमेंट और
कम्युनिकेशन स्किल दिखाने के लिए,
मोबाइल - इंटरनेट के जरिए
एक नहीं 4 - 4 पटाने के लिए,
सबको शादी का देकर मां बनाने के लिए
बाद में मामला बिगड़ता देख
रफूचक्कर हो जाने के लिए....
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
चुनाव के समय अपने धर्म और
अपनी जाति का झंडा फहराने के लिए,
विद्वत्ता नहीं बल्कि धन - बल के हिसाब से
अपना नेता जितवाने के लिए,
और बाद में रिश्वत देकर
अपना काम कराने के लिए....
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
ईश्वर के सामने रटे - रटाये शलोक
और मंत्र हिनहिनाने के लिए,
भारी प्रसाद चढ़ाने का वादा कर
अपना काम बनाने के लिए...
इसी दिन हुए थे हम आजाद,
सभी नियम और कानूनों को
धता बताने के लिए,
भ्रष्टाचार को उन्नति का मार्ग समझ
इसे जीवन में अपनाने के लिए,
और सिर से पैर तक तिरंगा लगाकर
अपने को देश भक्त बताने के लिए,
15 अगस्त और 26 जनवरी को
छुट्टी का दिन समझ कर
पिकनिक मनाने के लिए....

शनिवार, अगस्त 13, 2011

ये राखी के धागे........

क्या अजीब खेल हैं ज़िंदगी के
कि एक ही कोख से जन्म लेते हैं
वर्षों एक छत के नीचे साथ रहते हैं
लड़ते हैं - झगड़ते हैं - रूठते हैं - मनाते हैं
समझते हैं - समझाते हैं...
ढेर सारी चीजों पर -
ढेर सारी बातें करते हैं
हर सुख में - हर दुःख में
एक दूसरे का सहारा बनते हैं,
देखते ही देखते पता ही नहीं चलता
और आता है एक दिन ऐसा भी कि
न चाहते हुए भी बिछड़ जाते हैं हम...
बस रोते - बिलखते लाचार से
हाथ हिलाते रह जाते हैं हम...
अब तो सिर्फ आवाज सुनाई देती है
या वर्षों बाद मिलना हो पाता है...
इस बीच अकेले में हमें जोड़े रखता है
हमारा प्यार - हमारे बचपन की यादें
कुछ परम्पराएं - कुछ संस्कार
और इनकी खुशबू से भीगे धागे,
ये राखी के धागे........

सोमवार, अगस्त 08, 2011

महंगाई पर...

महंगाई से क्या फर्क है दसवां वेतन आयोग आएगा
तब हर बाबू हजारों में नहीं लाखों में वेतन पायेगा,
और दो लोगों के लिए रोज़ 5 - 5 किलो सेब ले जायेगा
कुछ खायेगा - कुछ लगाएगा और बाकी नाले में बहायेगा
वही बहाया हुआ सेब नाले से छानकर गरीब अपने घर ले जाएगा
और धो - धाकर सब्जी बनाकर खुद और बच्चों को खिलायेगा
इसतरह अमीर - गरीब दोनों का स्वार्थ सिद्ध हो जाएगा
और धीरे धीरे इस देश में स्वर्गलोकतंत्र तब आएगा....

रविवार, अगस्त 07, 2011

फ्रेंड दिवस तक आ पहुंची है अपनी रेलगाड़ी...

फ्रेंड दिवस तक आ पहुंची है अपनी रेलगाड़ी
चलो दोस्तों तैयार हो जाओ बना-वना कर दाढी
बना-वना कर दाढी कुल्ला - उल्ला कर लो
खखार - वखार कर गला - वला अच्छी तरह साफ़ कर लो
क्योंकि अब तो सारा दिन दोनों गाल बजाना है
और दोस्ती से जुड़े अच्छे - अच्छे शब्द
dictionary से ढूंढ - ढ़ाढ कर लाना है...
चलो जल्दी - जल्दी wish करो नहीं तो
ये गाडी छूट जायेगी,
और फिर दोस्ती का जश्न मनाने की
लास्ट डेट निकल जाएगी....
रिश्तों में भी लास्ट डेट घुस गया बड़ा अच्छा है
अब तो Manufacturing और expiry date लिए
पैदा होता बच्छा है......

शुक्रवार, जुलाई 29, 2011

तब मुशर्रफ अब रब्बानी...

तब मुशर्रफ अब रब्बानी
वो जनाना - ये ज़नानी,
देखो यारों सम्हल के रहना
कहीं निकल न जाए नानी...
कई लोग टपकाते दिखते
अपने - अपने मुंह से पानी,
पर हो सकती मीठी छूरी
मत भूलो है पाकिस्तानी,
प्यार-प्यार से काट जाएगी
जीभ और गर्दन दोनों जानी...

बुधवार, जुलाई 20, 2011

पिछड़ते जा रहे भैया जी लोग...

अभी-अभी खबर मिली कि सीए के घोषित परिणामों में ऊपर के तीन स्थानों पर लडकियां बाज़ी मार ले गयी हैं. इससे पहले गर्मियों में दसवीं - बारहवीं के रिजल्ट्स में भी कुछ ऐसा ही हाल था. ये हमारे शूरमाओं को क्या होता जा रहा है. सोचा इस पर कुछ लिखूं क्या पता मेरे लिखने से इनकी खोयी हुई मर्दाना ताकत वापस आ जाये...

इनका ध्यान लड़कियों पर
लड़कियों का ध्यान किताबों में,
ये रहते चौबीसों घंटे
खोये हसीन ख़्वाबों में...
माँ-बाप को उल्लू बनाएं
टीचर को लगायें मस्का,
जब आता है रिजल्ट हाथों में
हालत होती खस्ता....
घरवाले कम दोषी नहीं
इन्हें बिठाएं सिर पर,
लड़की कितनी भी हो सयानी
उसे कहें 'तू चुप कर.'
अगर इसीतरह भैया जी लोग
होते रहे नाकारा,
तो भूल जाइये कि बुढापे में
ये देंगे सहारा...
ये तो खुद रोटी की तलाश में
जा बसेंगे ससुराल,
लड़की ससुराल से आएगी तब
रखने आपका ख्याल...
चर्चित ये नहीं कह रहे कि
सारे के सारे हैं ऐसे,
बीमारी बढ़ती जाती है
समय बढ़ता है जैसे....

इसी तरह राजनीति में भी महिलाओं के बढ़ते दबदबे पर अब ज़रा आते हैं, क्योंकि इनपर बात किये बगैर मामला अधूरा रह जायेगा -

सोनिया गांधी - ये रहती खामोश मगर हर काँग्रेसी थर्राता है
                         बड़े से बड़ा मंत्री भी इनके आगे दुम हिलाता है....
मायावती - पूरा इण्डिया हिलता है जब हथिनी सी ये चिग्घाड़ती हैं
                  दुश्मन कोई राह में आये सीधा कुचल डालती हैं,
                  विपक्षी पार्टियां मंदिर - मस्जिद का मुद्दा जब भी उछालती हैं
                  ये पहुँच वहाँ अपनी ही मूर्ति बेख़ौफ़ लगा डालती हैं...
ममता बनर्जी - सीधी -सादी दिखती हैं पर हैं बड़ी विकराल
                        धोती और चप्पल के बल पर जीत लिया बंगाल,
                        छेड़ो अगर तो शेरनी सी नोच - खसोट डालेंगी
                        कुछ न मिला तो चप्पल से ही धुनाई कर डालेंगी...
जयललिता - तमिलनाडु की मुख्यमंत्री हैं पर
                     केन्द्रीय मंत्री भी इनके यहाँ चक्कर लगाते हैं,
                     अम्मा - अम्मा कहते हुए इनके पैरों में लोट जाते हैं....
सुषमा स्वराज - बोलना भी जानती हैं, दहाड़ना भी जानती हैं
                         नाचना भी जानती हैं, नचाना भी जानती हैं,
                         तेजतर्रार हैं मगर, सीधी - सादी बन जाना भी जानती हैं...
                         अगले इलेक्शन में बीजेपी यदि सत्ता में आये
                         हो सकता है ये प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नज़र आयें....

सोमवार, जुलाई 18, 2011

चर्चितदास रचित सरकारचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास जी के रामचरितमानस की चौपाइयों से प्रेरणा लेते हुए प्रस्तुत है आज की सरकार पर आधारित सरकारचरितमानस। आशा है आप सबको पसंद आएगी -
महँगाई काण्ड :
महंगाई चली जाय अकाशा, मनमोहन बस देहिं दिलासा
मानुष देखहिं रोके सांसा, घर-गृहस्थी सत्यानासा

२ जी काण्ड :
लक्ष कोटि एक काण्ड निराला, धूल धूसरित देश दिवाला

राजा नाम मंत्री काला, नीरा सह मिलि किहेस घोटाला

रामदेव काण्ड :
देखि देश मा भ्रष्टाचारा, चढ़ा योग गुरु कै पारा

पहुंचे दिल्ली झंडा गाड़ा, पढ़य लाग सरकार पहाड़ा
पठयेस कपिल-प्रणव एक साथा, दुइनव प्रबल वकीली माथा

प्रथम विनय फिरि शक्ती झाडेन, पुलिस लाय सब काम बिगाड़ेन


लोकपाल काण्ड :
देखि भ्रष्ट मंत्री अरु तंत्रा, अन्ना लेहेन विकट एक मंत्रा
लोकपाल बिल नाम अपारा, एहिमा लावो सब सरकारा
लगी घुमावय जंतर-मंतर,
अन्ना पर कौनव नहिं अंतर

मुंबई बम काण्ड :
फूटे बम मुम्बई त्रस्त, नेतागण बयान महं मस्त
मनमोहन कहैं मृत्यु अटल,
राहुल कहैं नहीं कोई हल

शुक्रवार, जुलाई 15, 2011

बच्चों को मस्का लगाते रहें वर्ना...

बच्चों को मस्का लगाते रहें वर्ना
उनका वोट उधर चला जाएगा,
आप आ जायेंगे अल्पमत में
उनकी मम्मी का पलड़ा भारी हो जायेगा....
हँस - हँसके किससे बात करते हैं
सब पोल खोल देंगे,
स्कूलवाली टीचर का नंबर माँगा था
सीधा मम्मी को बोल देंगे...
आपकी पॉकेट का पैसा
श्रीमती जी की पर्स में पहुँच जायेगा,
पूछने पर सब जानते हुए भी
टिंकू साफ़ मुकर जाएगा.....
अपने ही घर में इज्ज़त
नीलाम न हो जाए,
और आप पक्ष से सीधे
विपक्ष में न आ जाएँ...
इसलिए भाईसाहब
भलाई इसी में है कि
टिंकूजी का ख़ास
ध्यान रखा जाए...

आजकल के बच्चे...

बच्चे नहीं ये बाप हैं
हमारे गले की नाप हैं,
क्या हुआ जो बस्ता है भारी
दुनिया उठाने की है तैयारी
टीवी-इन्टरनेट छानते हैं
अंदर की बात भी सब जानते हैं...

सरकार की आपबीती...

धमाका हुआ मुंबई मैं
दिल्ली में हिली सरकार,
बाबा - अन्ना शांत हो गए
अब इसका क्या उपचार...
अब इसका क्या उपचार...
मीडिया फिर से जागा
सरकार निकम्मी है का
फिर से राग अलापा,
एक मुसीबत टली नहीं
कि दूसरी आ जाती है,
जैसे - तैसे सम्हले पर
कुर्सी हिल जाती है...
क्या करें कैसे खाएं
लोग खाने नहीं देते हैं
बड़ी मुश्किल से मिली है सत्ता
मज़ा उठाने नहीं देते हैं...
कान पकड़ते हैं कि अब
सत्ता में नहीं रहेंगे,
बैठ विपक्षी दल में
मलाई काटा करेंगे...

शिक्षा का क्रमिक कुविकास

गुरुपूर्णिमा के अवसर पर बहुत से लोगों को श्लोक एवं कविता पाठ करते देख कर मेरा मन भी कुलबुलाया कि भला मैं पीछे कैसे. मैंने भी कंप्यूटर खटखटाना शुरू किया तो निकल कर आई भारतवर्ष में शिक्षा तथा इससे जुड़े पहलुओं के क्रमिक कुविकास की श्रृंखला, जो कि मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ -
गुरु : ब्रह्मा-विष्णु-महेश > गुरुदेव > आचार्य > अध्यापक > सर > टकला सर - गैंडा सर -
        कानिया.........
शिष्य : वत्स > शिष्य > छात्र > स्टुडेंट > फलाने जी.....
विद्यालय : आश्रम > गुरुकुल > पाठशाला > विद्यालय > स्कूल > कोंलेज > यूनिवर्सिटी >
                 याहू चैट > ब्लॉग > ऑरकुट > फेसबुक > ट्विटर....
शिक्षा : ध्यान - चिंतन - मनन - साधना > पठन-पाठन > शिक्षा > अध्यापन > ट्यूशन >
            कोचिंग > एजुकेशन इंडस्ट्री.....
पुस्तक : गुरुवाणी > पाण्डुलिपि > ग्रन्थ > पुस्तक > किताब > कैसेट > सीडी > इन्टरनेट....
पुस्तकालय : गुरु > पाण्डुलिपि संग्रह > ग्रंथालय > पुस्तकालय > लाइब्रेरी > गूगल ..............

गुरुवार, जुलाई 14, 2011

आतंकवादी बम धमाकों पर...

न जाने कौन से वो दिल हैं जो
दिलों के चीथड़े उड़ाया करते हैं,
इधर उज़ड़ती हैं जिंदगियां
उधर ठहाके लगाया करते हैं....

वो आंखें हैं कि शीशा हैं
कि उनमें मर चुका पानी,
इधर होता है अँधेरा
उधर वो जश्न मनाया करते हैं...

न जाने क्या वो खाते हैं
न जाने क्या वो पाते हैं
न जाने कौन सी दुनिया से
वो आया - जाया करते हैं...

मिले जो ईश्वर तो उससे
होगा ये सवाल अपना
कि पैदा होते ही ये दरिन्दे
क्यों नहीं मर जाया करते हैं...

बुधवार, जुलाई 13, 2011

आज का युवा बहुत व्यस्त...

आज का युवा बहुत व्यस्त, अपने में मस्त
जब देखो एक साथ दो-चार काम निपटा रहा होता है,
सुबह-सुबह टॉयलेट में, मुंह में टूथ ब्रश
हाथों में लैपटॉप, कान में मोबाइल फोन
मतलब यहाँ भी ऑफिस जैसा माहौल
नज़र आ रहा होता है....
हर समय दो - दो सिम कार्ड वाले
दो मोबाइल रखता है अपने साथ,
मतलब एक ही समय में मॉम - डैड
बॉस-फ्रेंड-गर्ल फ्रेंड सबसे बतिया रहा होता है....
ऑफिस में कंप्यूटर पर काम, इन्टरनेट पर
फेसबूक-ट्विट्टर-याहू-जीमेल सब ऑन,
ऊपर से घनघनाता फ़ोन, चिल्लाता बॉस
फिर भी बेचारा मुस्कुरा रहा होता है...
शाम को घर में खाने के समय भी
एक हाथ में चम्मच, एक में टीवी का रिमोट
सामने टीवी पर एक न्यूज़ - एक फिल्म
एक कॉमेडी - एक म्यूजिक शो, एक साथ
इन सबका लुत्फ़ उठा रहा होता है...
रात को सपने में भी कुछ घंटे गर्ल फ्रेंड
कुछ फ्रेंड, थोड़ी देर देश में - थोड़ी देर विदेश में
और कभी कभार दूसरी दुनिया के लोगों से भी
अपनी जान - पहचान बढ़ा रहा होता है...
और 'चर्चित' एक तुम हो कि
रह गए वहीँ के वहीँ, ढीले-ढाले
एक समय में एक काम करने वाले,
अरे उठो - जागो, कुछ सोचो कि
जब तुम कविताबाजी कर रहे होते हो
कल का लड़का करोड़ों कमा रहा होता है...

मंगलवार, जुलाई 12, 2011

इन शहरी बिल्डरों से तो अच्छा था वीरप्पन...

इन शहरी बिल्डरों से तो अच्छा था वीरप्पन
चन्दन की तस्करी करता था, पर हरा भरा था जंगल,
हरा भरा था जंगल, जंगल में था मंगल
यहाँ शहर में मची हुई है देखो बुल्डोज़री दंगल...
रोज़ कट रहे पेड़, लद रही बिल्डिंगों पे बिल्डिंगें
बढ़ रही गर्मी और आग, जहाँ देखो वहां दमकल...
सिकुड़ती सर्दियाँ, फैलते गर्मी के मौसम
ज़रूरी हो गए अब पाखानों में भी एसी या कूलर..
एसी या कूलर, इनसे गड़बड़ाता वातावरण
पिघलती बर्फ पहाड़ों पर, बढ़ता सागरी जलस्तर...
बढ़ता सागरी जलस्तर, सपनों में भी आता सुनामी
चलों 'चर्चित' बेटा बना लें अभी से एवरेस्ट पर घर....

सोमवार, जुलाई 11, 2011

हर किसी का अपना तरीका है ज़िन्दगी का ...

हर किसी का अपना
    तरीका है ज़िन्दगी का
        हर किसी का अपना
             अंदाज़ अलग है...
फिर क्या गलत
      और क्या सही
            ये बात अलग है...
लोग अक्सर समझते हैं कि 
     मदहोश करती है शराब,
          फिर कोई पी के होश में आये
                        ये बात अलग है...
नालियों को अक्सर
     जोड़ा जाता है गन्दगी से,
          कोई समझे उसी को बिस्तर
                    ये बात अलग है...
कहते हैं धुम्रपान से
    ख़राब होते हैं फेफड़े,
         किसी का खुलता है दिमाग इसी से
                        ये बात अलग है...
कोई उल्टी-सीधी हरकतें करे
   तो कहती है दुनिया पागल,
         अब वो दुनिया को पागल समझे
                        ये बात अलग है...
लोग सुनते तो हैं सबकी
     पर करते हैं अपने मन की
             हम फिर भी समझाए जाते हैं
                        ये बात अलग है....

रविवार, जुलाई 10, 2011

रोओ खूब रोओ...

वक़्त वो मरहम है
जो हर घाव भर देता है,
बुझे से बुझे चेहरों में भी
मुस्कान भर देता है...
बस थोडा सा सब्र
थोड़ी उम्मीद होनी चाहिए
आंसुओं की जगह आँखों में
एक हसीं ख्वाब जगह ले लेता है...
ये दुनिया अजीब है
यहाँ किसी के आने - जाने से
फर्क नहीं पड़ता है,
कोई एक ग़म देता है तो
कोई हज़ार ख़ुशी दे देता है...
रोना दवा या मकसद नहीं
गुबार होना चाहिए,
जो जितनी ज़ल्दी निकल जाये
इंसान उतनी ज़ल्दी हल्का हो लेता है...
तो रोओ खूब रोओ
क्योंकि बहुत ज्यादा रोना
बाद में बहुत ज्यादा मज़ा देता है..

माँ की ममता...

कितने आये - कितने गए
कितनों ने क्या-क्या लिख डाला,
पर माँ की ममता को शब्दों से
कोई भी बाँध नहीं पाया...
जिस तरह ईश्वर के बारे में
लोग क्या - क्या उपमाएं देते हैं,
पर कहाँ आज तक कोई भी
उसकी नाप है ले पाया...

कोई साथ हो तो रास्ता हसीन हो जाता है...

कोई साथ हो तो रास्ता  
हसीन हो जाता है
मोड़ खुद-ब-खुद
हमारे साथ मुड जाता है,
बातों में पता नहीं चलता
कब आ गयी मंजिल
ज़िन्दगी का एक लम्बा सफ़र
यूँ आसान हो जाता है....


गुरुवार, जून 30, 2011

तेजी से बदलती दुनिया - तेजी से बदलती तस्वीरें...

तेजी से बदलती दुनिया
तेजी से बदलती तस्वीरें
काश बदल सकता इंसान
अपने हाथों की लकीरें...
हर सुबह बदल जाता है
मौसम का मिजाज़,
हर रात ओढ़ लेती है
नए काजल का लिबास,
कपडे बदलते हैं -
चेहरे बदलते हैं,
बदल जाता है अक्सर
लोगों का अंदाज़,
पर नहीं बदलती कभी भी
इंसानी फितरत, उसकी रूह
उसकी तासीरें...

मंगलवार, जून 28, 2011

बाबा रामदेव : पहले तो सपनों में भी दिखता था योग...

पहले तो सपनों में भी दिखता था योग
फिर हुआ उसमें जड़ी - बूटियों का संयोग,
आजकल बाबा की काले धन पर नज़र है
इससे ठीक करेंगे अब तमाम देशी रोग....
कुछ सरकारी नेतागण को लगता है
ये है बाबा का गोरखधंधा,
सरकार के गले में बेवजह का
एक आरएसएसाईं फंदा,
संत - समाजसेवी जब हाथ मिलाने लगें
सरकारी कामकाज में टांग अड़ाने लगें,
बताइये कि क्या कहा जाये इसे
देश हित के लिहाज़ से,
योग में संयोग या योग का दुरूपयोग ?!






बड़े शहरों की रातें अब नुमाइशी हो गयीं...

बड़े शहरों की रातें अब नुमाइशी हो गयी
तमाम खूबसूरत मछलियाँ अब फरमाइशी गयी
सडकों पे लोग रहते हैं चालाकियां बिछाए
हुनरमंदों कि एक फौज
पैदाइशी हो गयी...

इस फेसबुकी दुनिया में...

इस फेसबुकी दुनिया में
ये क्या अजीब तुक है,
कि दिल के कमरे खाली हैं
फेस पहले से ही बुक हैं...

शनिवार, जून 25, 2011

सरकार ने फिर चलाया महंगाई का डंडा....

मुद्दों से ध्यान हटाने का ये है अच्छा फंडा,
ब्रेकिंग न्यूज़ ब्रेक करने का ये है सरकारी हथकंडा,
बस चंद दिनों की बात है, ये कर लें जो करना है
फिर सारा नशा उतर जायेगा, जब पड़ेगा पब्लिक का डंडा!

सोमवार, जून 13, 2011

माननीय सी जी यानी अशोक चक्रधर जी
इस वीसी यानी विशाल चर्चित का नमस्कार,
हमारी ये डीसी यानी ढिंक चिका
शुभकामना है, आप करें स्वीकार...
आप एससी यानी साहित्य चक्र
इसी तरह चलाते रहे,
और अपने एचसी यानी हास्य छंदों से
हम सभी के मन को
गुदगुदाते रहें !!