मंगलवार, दिसंबर 04, 2012

जब से जागो तभी से सबेरा.....


















होता है कभी - कभी यूँ भी कि
इंसान बिना जाने - समझे
मान बैठता है दिल की बात,
पकड़ लेता है एक ऐसी राह जो
नहीं होती उसके लिए उपयुक्त
नहीं पहुँचती किसी मंजिल तक,
लेकिन चूंकि होता है एक जूनून
होते हैं ख्वाब जिनका पीछा करते
निकल जाता है बहुत दूर - बहुत आगे,
तब अचानक लगती है एक ठोकर,
बहुत तेज़ - बहुत ज़ोरदार कि
खुल जाती है जैसे उसकी आँख
हो जाता है अपनी गलती का एहसास,
लेकिन अब ?......क्या करे - क्या न करे
पीछे लौटे - आगे जाए - ठहर जाए
या फिर कोई नयी राह ली जाए......
अब टूट चुके होते हैं सारे ख्वाब
पूरी तरह से बुझ चुका होता है दिल
और हो चुका होता है एकदम निराश....
तभी एकाएक याद आती है उसे
बुजुर्गों से अक्सर ही सुनी हुई ये बात
कि जो होता है अच्छे के लिए होता है,
कुछ छूट जाने - कुछ खो जाने से
सब कुछ ख़त्म नहीं होता है.....
नहीं थी वो राह तुम्हारे लिए ठीक
अच्छा हुआ जो अभी लग गयी ठोकर
वर्ना आगे होती और ज्यादा तकलीफ,
उठो - खड़े होओ - और पकड़ो एक नयी राह,
अभी कुछ भी नहीं है बिगड़ा मत होओ निराश
क्योंकि जब से जागो तभी से सबेरा होता है......

- VISHAAL CHARCHCHIT

शुक्रवार, नवंबर 30, 2012

::::::::::।। ॐ रजनीकांताय नमः ।।::::::::::
















कोई भी हो प्रॉब्लम रजनीकांत - रजनीकांत
कैसी भी हो टेंशन रजनीकांत - रजनीकांत
याद करो हाजिर जो रजनीकांत - रजनीकांत
हर कला में माहिर जो रजनीकांत - रजनीकांत
भाई हो या डॉन हो रजनीकांत - रजनीकांत
धरती आसमान हो रजनीकांत - रजनीकांत
गन हो या बुलेट हो रजनीकांत - रजनीकांत
एफ 50 जेट हो रजनीकांत - रजनीकांत
एसपी हो डीएम हो रजनीकांत - रजनीकांत
सीएम हो पीएम हो रजनीकांत - रजनीकांत
ओबामा - ओसामा हो रजनीकांत - रजनीकांत
कोई भी गामा हो रजनीकांत - रजनीकांत
मेरा भी सपना है रजनीकांत - रजनीकांत
तुमको पूरा करना है रजनीकांत - रजनीकांत
देश में खुशहाली हो रजनीकांत - रजनीकांत
हर दिन दीवाली हो रजनीकांत - रजनीकांत
भ्रष्टाचार रोकना है रजनीकांत - रजनीकांत
दुश्मनों को ठोंकना है रजनीकांत - रजनीकांत
ना दुखी - ना गरीब रजनीकांत - रजनीकांत
सब के सब हों खुशनसीब रजनीकांत - रजनीकांत
पावर दो - पावर दो रजनीकांत - रजनीकांत
तुम तो सुपर पावर हो रजनीकांत - रजनीकांत
धगड़ - धगड़ - तगड - तगड रजनीकांत - रजनीकांत
यगण - मगण - जगण - तगण रजनीकांत - रजनीकांत
:::::::::::।। ॐ  रजनीकांताय नमः ।। :::::::::::::

- VISHAAL CHARCHCHIT

रविवार, नवंबर 25, 2012

हमेशा सोचते रहने की आदत.....

















 
किसी को बचपन से ही
    जब नहीं मिला हो
           आसानी से सब कुछ,
                जब करनी पडी हो
                     एक - एक चीज़ को
                            पाने के लिए मशक्कत....
 जब रखना पडा हो
     एक - एक कदम
           हमेशा फूंक - फूंक कर,
                   जब सोचना पडा हो
                          कई - कई बार किसी से
                                कुछ कहने से पहले,
                                    जब जिन्दगी दिखाती रहो
                                              एक पल को रोशनी
                                                 दूसरे पल गहरा अन्धकार....
जब चलना पड रहा हो
    हमेशा ऊबड़ - खाबड़ रास्तों से,
         और पता नहीं हो कि
              अभी और कितना चलने के बाद
                    मिलेगी मनचाही मंजिल,
                         तो हो ही जाती है अक्सर
                               कुछ न कुछ सोचते रहने की आदत....
क्योंकि ये सोच - ये विचार
      ये सपने - ये खयाली पुलाव ही तो हैं
            देते रहते है अक्सर आगे बढ़ते रहने
                    सतत चलते रहने का हौसला,
                         जो अक्सर बहलाते रहते है दिल,
                               और दिल ?
दिल ही तो है जो किसी इंजन की तरह
     खींचता रहता है ज़िंदगी की गाडी को,
            इसलिए बहुत जरूरी है दिल का
                  तमाम विचारों - तमाम सपनों के
                         पेट्रोल से लबालब भरा रहना .....

                              - VISHAAL CHARCHCHIT

बुधवार, नवंबर 14, 2012

सोनू - मोनू - पिंकू - गुड्डू आओ मनाएं बाल दिवस.....






















बाल दिवस है बाल दिवस
    हम सबका है बाल दिवस,
             सोनू - मोनू - पिंकू - गुड्डू
                    आओ मनाएं बाल दिवस....
कागज़ की एक नाव बनाएं
    तितली रानी को बैठाएं,
         नदी किनारे संग संग उसके
                आओ हम सब चलते जाएँ....
तितली उड़े आकाश में
   भगवान जी के पास में,
       भगवान जी से लाये मिठाई
           खा करके चलो करें पढ़ाई....
पढ़ना है जी जान से
    ताकि हिन्दुस्तान में,
          खूब बड़ा हो अपना नाम
               खूब अच्छा हो अपना काम....
काम से पापा मम्मी खुश
      काम से सारे टीचर खुश,
           सारे खुश हो खुशी मनाएं
                 बड़े भी सब बच्चे हो जाएँ.....
बच्चों का हो ये संसार
     बचपन की हो जय जयकार,
          ना चालाकी - ना मक्कारी
                  ना ही कोई दुनियादारी.......
दुनिया पूरी हो बच्चों की
    केवल हो सीधे - सच्चों की,
         सच्चे दिल की ये आवाज
              आओ धूम मचाएं आज.....

               - VISHAAL CHARCHCHIT

मंगलवार, नवंबर 13, 2012

बाबू जी की दीवाली........


    और सुनाएं बाबू जी
         दीवाली मना रहे हैं?!
                सबकुछ नया - नया और
                       हाई टेक बना रहे हैं?!.....
  देसी दीये पुराने लगते
       चाइनीज झालर लाये हैं,
             लक्ष्मी गणेश की मूर्ति भी
                    चाइना से ही मंगवाए हैं....
  देश हमारा बड़ा हो रहा
        पता आपसे चलता है,
              क्योंकि हर साल दीवाली पर
                      बजट आपका बढ़ता है.....
   पटाखे कई हजार के
       इस बार भी लाये हैं न?!
            पूरा मोहल्ला हिलाने का
                 इस बार भी कार्यक्रम बनाए हैं न ?!
  अच्छा, एक राज की बात
      क्या आप मुझे बताएँगे?
            कितना सोना - कितना रुपया
                  इस बार लक्ष्मी जी को चढ़ाएंगे?
  सच कहें तो आपको देख कर
       बाबू जी हम खुश हो लेते हैं,
           और आपकी दीवाली को ही हम
                अपनी दीवाली समझ लेते हैं....
  वर्ना हम गरीब क्या जानें
        कि दीवाली क्या होती है,
              रोटी - दाल - दीये के अलावा
                   खुशहाली क्या होती है....
  लक्ष्मी जी को प्रसन्न कर सकें
       अपनी इतनी औकात कहाँ,
            आपकी तरह सोना - रुपया
                 और महंगे प्रसाद कहाँ....
  महंगाई ने हिला दिया है
       रोम - रोम तक बाबू जी,
              जाने कब तक और बचेंगे
                    हम गरीब अब बाबू जी....

                       - VISHAAL CHARCHCHIT

बुधवार, अक्टूबर 24, 2012

















दोस्तों,

आज दशहरा है....रावण भाई साहब का आज अगले एक साल के लिए राम नाम सत्य होने वाला है......हर जगह भगवान राम की जय-जयकार हो रही है....आइये हम कलियुग में रामायण के उन पात्रों से भी सबक लें जो बहुत महत्वपूर्ण रहे पर उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया....

सूर्पणखा : भगवान ऐसी बहन किसी को न दे....इसके पंचवटी के जंगल में दिल बहलाने और नाक कटाने की वजह से ही भाई रावण का सत्यानाश हो गया....

मामा मारीच : भई साला हो तो ऐसा जिसने जीजा रावण के गैर कानूनी प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए जान दे दी....

कुम्भकरण : सिर्फ खाने - पीने और सोने में मस्त रहने वाले निकम्मे इंसान ने भाई के लिए जान देकर ये सन्देश दिया कि किसी को भी निकम्मा और निरर्थक मान लेने से पहले सौ बार सोचना चाहिए.....

मंदोदरी : रावण जैसे आतंकवादी पति का भी आख़िरी समय तक साथ दिया.....न तलाक लिया.....न फरार हुई.....न आत्महत्या की.....लंका में ही डटी रही......

मंथरा : इसके इधर का उधर करने की वजह से ही कैकेयी आंटी का दिमाग खराब हुआ था और राम - सीता - लक्ष्मण को जंगल जाना पडा....राजा दशरथ को जान गंवानी पड़ी.....ऐसे कान भरने वाले लोगों से सावधान रहना चाहिए...चाहे घर हो या दफ्तर....

बाली : इन भाई साहब से यह सबक मिलता है कि अपनी ताकत पर घमंड नहीं करना चाहिए वर्ना शेर को सवा शेर मिलता ही है....आखिर किसी न किसी तरह निपटा ही दिए गए न.......

मेघनाथ : एक बहुत लायक बेटा जिसने अपने दुर्बुद्धि बाप की हर आज्ञा का पालन किया.....आज के जमाने में तो तमाम बेटे (सब नहीं) तो ऐसे बाप को घर में ही निपटा दें......

भरत : भाई हो तो ऐसा.....राम के वन गमन के बाद सारा राजपाट मिल जाने के बाद भी स्वीकार नहीं किया.....जबकि आज के जमाने में तो जीवित भाई को मृत घोषित करा कर पूरी जायदाद हड़प जाने के किस्से अक्सर सुनने को मिलते हैं.....

कौशल्या : अपने बेटे को जंगल भिजवाने के बाद भी देवरानी कैकेयी को कुछ नहीं कहा.....वर्ना आज की जेठानी होती तो मारामारी पर उतर जाती....

.....और अब आप सभी को दशहरे की हार्दिक शुभकामना.....आशा करता हूँ कि रामायण की अच्छी चीज़ों से सीख लेंगे.....न कि ' हैप्पी दशहरा '........बोल के छुट्टी मनाएंगे......क्योंकि आजकल हर तीज - त्यौहार में ' लेट अस एंज्वाय ' का वायरल फीवर गुस गया है......

- VISHAAL CHARCHCHIT

शुक्रवार, अक्टूबर 05, 2012


















महात्मा गांधी
:::::::::::::::::::::::::::::
जो भी था तुम्हारे पास देश पर लुटा गए
हँसते-हँसते देश के लिए ही गोली खा गए,
यूं तो सभी जीते हैं अपने - अपने वास्ते
दूसरों के वास्ते तुम जीना सिखा गए....

लाल बहादुर शास्त्री 
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
तख़्त-ओ-ताज पाके भी आम आदमी रहे
कोशिश की हर जगह सिर्फ सादगी रहे,
करके दिखा दिया कि मुल्क साथ आएगा
शर्त मगर एक कि ईमान लाजमी रहे.....

- VISHAAL CHARCHCHIT

सोमवार, सितंबर 10, 2012

तब ध्यान करो प्रकृति की तरफ.....


    चहुँ ओर दिखे अंधियारा जब

         सूझे न कहीं गलियारा जब,
                जब दुखों से घिर जाओ तुम
                        जब चैन कहीं ना पाओ तुम...

        मन व्याकुल सा - तन व्याकुल सा
               जीवन ही लगे शोकाकुल सा,
                         कोई मीत न हो - कोई प्रीत न हो
                                  लगता जैसे कोई ईश न हो....

              तब ध्यान करो प्रकृति की तरफ
                        ईश्वर की परम सुकृति की तरफ,
                               देखो तो भला सागर की लहर
                                      उठती - गिरती जाती है ठहर...

                        अनुभव तो करो शीतलता का
                                पुरवाई की कोमलता का,
                                       तुम नयन रंगो हरियाली से
                                               पुष्पों की सुगन्धित लाली से....

                                तुम गान सुनो तो कोयल का
                                       बहती सरिता की कलकल का,
                                               पंछी करते क्या बात सुनो
                                                        कहता है क्या आकाश सुनो....

                                       निकालोगे निराशा के तम से
                                             निकलो तो भला अपने तन से,
                                                     है आस प्रकाश भरा जग में
                                                            रंग लो हर क्षण इसके रंग में....

                                              जो बीत गया सो बीत गया
                                                      तम से निकला वो जीत गया,
                                                               उस जीत का तुम अनुभव तो करो
                                                                      अनुभव तो करो - अनुभव तो करो...

                                                                             - VISHAAL CHARCHCHIT

बुधवार, सितंबर 05, 2012

शिक्षक दिवस पर.....


     बहुत दुःख होता है जब
          सुनने को मिलता है आज के
                 विद्यार्थियों - लाडलों के मुख से
                       टकला - गंजा - मोटा - पेटू
                            कानिया - बटला - टिंगू
                                 अपने शिक्षक के लिए
                                        अपने गुरु के लिए....
      और लगा दिया जाता है बाद में 
          एक पुछल्ला सा "सर" का, 
               ताकि पता चले कि 
                     हाँ बात हो रही है उन्हीं की 
                            कि जिन्हें कभी पूजा जाता था 
                                 यह मानकर कि वो हैं बड़े और 
                                      महान ईश्वर से भी क्योंकि 
                                            वो दिखाते हैं मार्ग हमें 
                                                   ईश्वर तक पहुँचने का,
                                                         जीवन से जुड़े अनेकों 
                                                               गूढ़ तथ्यों को समझने का....
        शायद बदल गया है अब
            लोगों के जीवन का उद्देश्य
                  लोगों की प्राथमिकता,
                       अब नहीं चाहता है कोई
                             ईश्वर को पाना या उस तक पहुंचना
                                    नहीं चाहता है कोई जीवन या
                                         उससे जुड़े सत्य को समझना...
         अब पद - प्रतिष्ठा एवं धन - ऐश्वर्य
              येन - केन - प्रकारेण अर्जित सफलता
                     एवं सफल व्यक्तित्व करते हैं मार्गदर्शन
                              उन्हीं को मान लिया जाता है गुरु
                                    उन्हीं को आदर्श - उन्हीं को शिक्षक.....
       और प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस पर
               बड़ी शान से कह दिया जाता है 
                       अपने उसी शिक्षक से ही
                               कि "हैपी टीचर्स डे सर"......

                              - VISHAAL CHARCHCHIT

शनिवार, सितंबर 01, 2012

आ प्रिये कि प्रेम का हो एक नया श्रृंगार अब.....


    आ प्रिये कि हो नयी 
         कुछ कल्पना - कुछ सर्जना,
              आ प्रिये कि प्रेम का हो 
                    एक नया श्रृंगार अब.....

      तू रहे ना तू कि मैं ना 
           मैं रहूँ अब यूं अलग
                 हो विलय अब तन से तन का 
                       मन से मन का - प्राणों का,
                             आ कि एक - एक स्वप्न मन का
                                   हो सभी साकार अब....

          अधर से अधरों का मिलना
                 साँसों से हो सांस का,
                         हो सभी दुखों का मिटना
                               और सभी अवसाद का,
                                       आ करें हम ऊर्जा का
                                             एक नया संचार अब.....

        चल मिलें मिलकर छुएं
             हम प्रेम का चरमोत्कर्ष,
                   चल करें अनुभव सभी
                         आनंद एवं सारे हर्ष,
                               आ चलें हम साथ मिलकर
                                     प्रेम के उस पार अब....

         ध्यान की ऐसी समाधि
             आ लगायें साथ मिल,
                   प्रेम की इस साधना से
                         ईश्वर भी जाए हिल,
                              आ करें ऐसा अलौकिक
                                   प्रेम का विस्तार अब....

                                 - VISHAAL CHARCHCHIT


सोमवार, अगस्त 27, 2012

तमाम बेरोजगार आशिकों के दिल की आवाज़....


     कड़ी आजमाइश - कडा इम्तहान
     फंसी है बड़ी अपनी आफत में जान...

                                  वहाँ हर घडी ऐंठी रहती माशूका 
                                  यहाँ घर में अब्बा मरोड़े हैं कान...

     मुहब्बत में कडकी के जलवे बड़े 
    जब देखो तब जेब लहूलुहान...

                                 एक तो बड़ा घाव है बेरोज़गारी
                                 जिसपे छिड़कता नमक खानदान...

    डिग्रियां देखकर मुंह बनाते हैं वो यूँ
    जैसे तजुर्बा लिए पैदा होता जहान...

                               इधर चोंच हमसे लड़ाती है वो
                               उधर दिल में रहता है सलमान खान...

    'चर्चित' निकम्मे थे तुम भी कभी
   नहीं चलती थी जब तुम्हारी दूकान...

                                                    - VISHAAL CHARCHCHIT

गुरुवार, अगस्त 02, 2012

ये राखी के धागे........

क्या अजीब खेल हैं ज़िंदगी के
      कि एक ही कोख से जन्म लेते हैं
            वर्षों एक छत के नीचे साथ रहते हैं
                     लड़ते हैं - झगड़ते हैं - रूठते हैं - मनाते हैं 
                               समझते हैं - समझाते हैं...
       ढेर सारी चीजों पर -
              ढेर सारी बातें करते हैं
                    हर सुख में - हर दुःख में
                           एक दूसरे का सहारा बनते हैं......

              देखते ही देखते पता ही नहीं चलता 

                      और आता है एक दिन ऐसा भी कि 
                               न चाहते हुए भी बिछड़ जाते हैं हम...
                                       बस रोते - बिलखते लाचार से 
                                                हाथ हिलाते रह जाते हैं हम...

                       अब तो सिर्फ आवाज सुनाई देती है

                               या वर्षों बाद मिलना हो पाता है...
                                       इस बीच अकेले में हमें जोड़े रखता है
                                              हमारा प्यार - हमारे बचपन की यादें
                                                       कुछ परम्पराएं - कुछ संस्कार
                                                                 और इनकी खुशबू से भीगे धागे,
                                                                          ये राखी के धागे........

                                                                           - VISHAAL CHARCHCHIT

सोमवार, जुलाई 23, 2012

अलग - अलग मुहब्बत, अलग अलग तरीके....


   हर कोई मुहब्बत का अलग तरीका अपनाता है
   जिसका जितना दिमाग है उतना लगाता है,
                                     पहलवान की खोपड़ी पर जब मुहब्बत चर्राती है
                                     प्रेमिका की अक्सर कोई नस उखड जाती है....
  प्रेम में डूबा अध्यापक पूरी पीएचडी डालता है
  छींके भी प्रेमिका तो व्याख्या कर डालता है....
                                     मुहब्बत में अक्सर डॉक्टर मरीज़ हो जाता है
                                     बात-बात पर खुद को दिन भर आला लगता है....
  ज्योतिषी का दिल प्रेम में जब कुलांचे मारता है
  प्रेमिका को जुकाम भी हो तो पंचांग निकालता है....
                                    आशिक मिजाज नाई सफाई पे ध्यान लगाता है
                                    ग्राहक पे कम खुद पे ज्यादा उस्तरा फिराता है....
  नेता की प्रेमिका का जीवन नर्क हो जाता है
  बात हो मौसम की वो लोकतंत्र समझाता है....
                                   अच्छा तो इसतरह इस अध्ययन का 
                                   अध्याय यहीं पर समाप्त हो जाता है,
  अच्छा लगा हो तो 'चर्चित' का हौसला 
  बढ़ाना आप सभी का फ़र्ज़ हो जाता है....
                                           
                                   - विशाल चर्चित

सोमवार, जुलाई 16, 2012

आ हा हा हा क्या बात क्या बात - क्या बात....


बाहर ठंडी - ठंडी पवन
ऊपर से रिमझिम बरसात,
सामने हो एक भरी प्लेट
गरम पकोड़े चटनी साथ
आ हा हा हा क्या बात
क्या बात - क्या बात....
बगल में बैठी जाने जानां
अपने हाथ से हमें खिलायें
वो भी बड़ी अदा के साथ,
आ हा हा हा क्या बात
क्या बात - क्या बात.... 
ख़तम पकौड़े चाय गरम
लौंग इलायची अदरक वाली
एक ही कप हम दोनों साथ,
आ हा हा हा क्या बात
क्या बात - क्या बात....
दौर शुरू हो अब प्यार का
दोनों के दिल में बहार का 
थोड़ी चुहलबाजी के साथ,
आ हा हा हा क्या बात
क्या बात - क्या बात....
इसी बीच जो नींद आ जाए
सुन्दर सपनों में खो जाएँ
जिन्हें सच करेंगे हम साथ,
आ हा हा हा क्या बात
क्या बात - क्या बात.... 
कुछ ऐसा ही हर कोई चाहे 
ये थी सबके दिल की बात
अगर भा गयी सच में सबको 
मेरी ये रिमझिम सौगात,
आ हा हा हा क्या बात
क्या बात - क्या बात.... 

- VISHAAL CHARCHCHIT

रविवार, जुलाई 15, 2012

अच्छा लगता है जब.....

अच्छा लगता है जब कहीं से 
लौटने पर पता चलता है कि
कुछ लोग हैं जो आपके बिना
उदास थे - परेशान थे - बेहाल थे,
ठीक उसीतरह जिस तरह कि आप
मजबूर थे - लाचार थे - असहाय थे....
अच्छा लगता है जब कुछ लोग
हो जाते हैं बहुत खुश आपको पाकर
ठीक उसीतरह जिसतरह कि आप,
मानो मिल गया हो कोई खजाना
खुशियों का - मुस्कुराहटों का.....
अच्छा लगता है जब कुछ लोग
दिखते हैं एकदम अलग और ख़ास
दिखावटी रिश्तों की भीड़ से
दिखावटी अपनेपन के संसार से
और, ये होते हैं आपके अपने
सच, अपने - बहुत अपने......

- VISHAAL CHARCHCHIT

शनिवार, जून 09, 2012

जब सालों बाद लौटेगी ज़िन्दगी....



   छुएगी मेरे जिस्म को कई सालों बाद
       गाँव की ताज़ा और खुशबू भरी हवा,
            उतरेगा मेरे हलक से कई सालों बाद
                गाँव के कुएं का कुदरती साफ़ पानी...

       क्या गज़ब महसूस करेगा मेरा दिल
           जब होंगे मेरे सामने मेरे सबसे अपने,
                क्या खूब होगा वो - वक्त वो लम्हा जब
                      पास होगी माँ - उसका ममतामयी आँचल....

            सुनता रहूँगा चुपचाप ध्यान से हर बात
                 धर्म की - ईश्वर की - समाज की - देश की
                      जो समझायेंगे पिताजी - मेरे पहले गुरु,
                            निकालेगी कई सालों का गुबार दिल से
                                 प्यार से शिकायती लहजे में मेरी बहना....

                      देखने - सुनने - महसूस करने को मिलेंगे
                            गाँव के लोग - उनकी बातें - रीति रिवाज़,
                                 छत पर खुले आसमान के नीचे सोना
                                        बरसात की रिमझिम फुहार का नज़ारा.....
                         
                            ये सारी की सारी अमृतमयी चीज़ें होंगी
                                 मेरे आस पास - मेरे बहुत करीब,
                                       जिन्हें दूर - बहुत दूर कर दिया मुझसे
                                             ज़िन्दगी की तमाम ज़रूरतों ने
                                                   मेरी आसमान छूने की चाहत ने.....

                                 सच कहूं तो अब लगता है कि
                                      किस काम की ऐसी ज़िन्दगी
                                             किस काम के ऐसे सपने जो
                                                     दूर कर दें अपनों से - अपनी मिटटी से.....

                                                                          - VISHAAL CHARCHCHIT

रविवार, मई 13, 2012

माँ...........


माँ..........
नहीं समझ आई ये दुनिया मुझे
    नहीं समझ आये ये रिश्ते मुझे
         नहीं समझ आई ये ज़िन्दगी की
                कभी धूप और कभी छाँव,
                        समझ आई तो सिर्फ एक तू
                              तेरा प्यार - तेरी ममता और 
                                   तेरे आँचल की सुहानी छाँव......
समझ आया तो तेरे हाथों का
    वो प्यारा स्पर्श - वो सहलाना,
         मुझे हर अच्छा - बुरा समझाना
                गुस्से में बस यूँ ही मुझे
                       न जाने किन किन नामों से बुलाना.....
आज हूँ बहुत दूर तुझसे फिर भी
    फोन पर तेरी एक आवाज़ ही 
         बढ़ा देती मेरा उत्साह - मेरी ताकत,
                इतनी मुश्किलों भरी है ज़िन्दगी
                      फिर भी जीने की एक चाहत......
सच कहूं, बहुत डर जाता हूँ मैं
    अगर देख लूं कोई ऐसा सपना कि
           तू नहीं है अब यहाँ मेरे साथ,
                   चली गयी है दूर - बहुत दूर मुझसे
                            शायद कहीं किसी दूसरी दुनिया में......
कांप जाता हूँ मैं सिर से पैर तक
     कांप जाता हूँ सिर्फ इस एक ख़याल भर से ही
            और नहीं हो पाता सामान्य तब तक
                    तब तक जब तक कि नहीं हो जाए तुमसे बात
                            नहीं हो जाए पक्का यकीन - पक्की तसल्ली कि
                                  तुम हो एकदम ठीक - स्वस्थ और खुश......
तो बस यूँ ही हमेशा खुश दिखना
    हमेशा खूब चुस्त - दुरुस्त तंदरुस्त दिखना,
         वर्ना मेरी ठन जायेगी ईश्वर से -उसकी सत्ता से
               क्योंकि मुझे नहीं मालूम कि 
                      ईश्वर क्या है - कौन है - कैसा है
                            जब से आँख खुली है तुझे ही देखा है
                                 तुझे ही जाना है - तुझे समझा है बस
                                      तू ही है मेरे लिए ईश्वर - उसका हर रूप
                                         मतलब तू नहीं तो ईश्वर भी नहीं.........

                                               - VISHAAL CHARCHCHIT