मंगलवार, दिसंबर 22, 2020

असल कहानी को मर जाना पड़ता है...


#Theatre, #play, #role, #life, #philosophy, #poetry, #kavita,
#shayri, #muktak, #नाटक, #रंगमंच, #किरदार, #अभिनय, #जीवन
#जिन्दगी, #दर्शन, #फलसफा, #कविता, #शायरी, #मुक्तक

सोमवार, दिसंबर 21, 2020

बहुत सुकून मिला है तेरे फिर आने से...



बुझे चराग़ जले हैं जो इस बहाने से
बहुत सुकून मिला है तेरे फिर आने से

बहुत दिनों से अंधेरों में था सफ़र दिल का
इक आफ़ताब के बेवक़्त डूब जाने से

नया सा इश्क नयी सी है यूँ तेरी रौनक़
लगे कि जैसे हुआ दिल ज़रा ठिकाने से

चलो कि पा लें नई मंज़िलें मुहब्बत की
बढ़ा हुआ है बहुत जोश चोट खाने से

क़सम ख़ुदा की तेरे साथ हम हुए चर्चित
ज़रा सा खुल के मुहब्बत में मुस्कुराने से

- VISHAAL CHARCHCHIT

#ghazal, #poetry, #shayari, #love, #romantic,
#prem, #pyar, #ishq, #mohabbat, #गजल,
#कविता, #शायरी, #प्रेम, #प्यार, #इश्क,
#मोहब्बत

शनिवार, दिसंबर 19, 2020

रविवार, दिसंबर 06, 2020

गुरुवार, दिसंबर 03, 2020

शुक्रवार, नवंबर 27, 2020

सूखने लगते हैं रिश्ते भी...


#relations, #friendship, #life, #hindi, #poetry, #रिश्ता, #मित्रता, #दोस्ती, #जीवन, #जिन्दगी, #हिन्दी, कविता

बुधवार, अक्टूबर 28, 2020

कुछ दोहे आज के हालात पर...

छप्पन व्यंजन खाय के,भरा पेट कर्राय
तब टीवी की खबर पर, 'देश प्रेम' चर्राय

नेता उल्लू साधते, आपन गाल बजाय
जनता देखय फायदा, बातन में आ जाय

जोड़-तोड़ बनि जाय जो, दोबारा सरकार
लूट-पाट होने लगे, बढ़ता भ्रष्टाचार

महंगाई जस जस बढ़ै, व्यापारी मुस्कायँ,
जैसे आवय आपदा, फौरन दाम बढ़ायँ

पत्रकारिता बिक गयी, कलम करे व्यापार
समाचार के दाम भी, माँग रहे अखबार

कामकाज को टारि के, बाबू गाल बजायँ
देश तरक्की कर रहा, सोचि सोचि मुस्कायँ

अब शिक्षा के नाम पर, शोबाजी भरपूर
टीमटाम तो बहुत है, शिक्षा कोसों दूर

- विशाल चर्चित

#दोहा  #दोहे  #हिन्दी  #कविता  #Hindi  #doha  #dohe  #poetry

सोमवार, अक्टूबर 19, 2020

यदि हम समाप्त तो समझो प्रकृति समाप्त...

alt="FORESTLIFE"

ईश्वर ने अगाध प्रेम से
बनायी थी ये धरती,
बनाये थे पेड़-पौधे-पुष्प...

निर्मित किये थे सघन-वन
उसमें भाँति-भाँति के
पशु-पक्षी और कीट-पतंगे...

सब एक-दूसरे के साथ
एक - दूसरे पर निर्भर
सब अपनी सीमा में
सब अपनी मर्यादा में...

और फिर आया मनुष्य
सबसे अधिक चतुर
सबसे अधिक बुद्धिमान...

उसने तोड़े प्रकृति के नियम
उसने बनाये अपने नियम
उसने तय की मर्यादायें...

कि एक राजा होगा
उसका साम्राज्य होगा
गाँव होंगे - नगर होंगे...

उपयोगी पशु-पक्षी पालतू होंगे
अनुपयोगी वन में रहेंगे
वन गाँव - शहर से दूर होंगे...

चलो ये सब भी माना
लाखों वर्षों से मनमानियों
के बाद भी तुम्हें अपना माना...

नहीं किया कभी कोई भयानक विरोध
नहीं किया कभी सीमाओं का उल्लंघन
रह लिये कभी तुम्हारे पिंजरों में
तो कभी तुम्हारे बनाये घरों में...

करते रहे तुम्हारी सेवा
करते रहे तुम्हारी गुलामी
जिये तो तुम्हारे लिये
मरे तो तुम्हारे लिये...

पर अब....? ये क्या?
अब तो तुम उजाड़ने लग गये
हमारे घर ही - हमारे वन ही
लगाने लग गये उनमें आग?

तो अब हम क्या करें?
कहाँ रहें - कहाँ जायें?
कैसे जियें - क्या खायें?

अब तो आना ही पड़ेगा न
तुम्हारी बस्तियों में
तुम्हारे गावों - तुम्हारे शहरों में...

अब तो उजाड़ना ही पड़ेगा न
तुम्हारे खेतों को - बगीचों को
साफ करना ही पड़ेगा तुम्हारे खाद्यान्नों को...

लगाओ जितने बाड़ लगा सकते हो
बिठाओ जितने पहरे बिठा सकते हो
लाओ जितनी मशीनें ला सकते हो...

याद रहे 'चर्चित' तुम यदि हो
अरबों खरबों में तो
हम सब पशु-पक्षी और
कीट पतंगे हैं
शंखों नहीं महा-शंखों में...

यदि हम समाप्त तो
समझो प्रकृति समाप्त
और प्रकृति समाप्त तो
सृष्टि यानी सबकुछ समाप्त...

- विशाल चर्चित

#forest  #animal  #birds  #insects  #catle
#वन  #जंगल  #वन्य_जीव  #वन्य_प्राणी
#जंगली_जानवर  #पशु_पक्षी  #कीट-पतंगे

रविवार, अक्टूबर 04, 2020

कविता में स्त्री दुर्गा, पिता - पति - भाई मुर्गा...

alt="STREEDURGA"

आज हास्य-व्यंग्य के जरिये एक ऐसी बात कहने जा रहा, जो शायद ही कोई कहने की हिम्मत रखता हो, वजह है चाटुकारिता की बढ़ती प्रवृति, स्वार्थांधता की होती अति... विषय है तथाकथित शिक्षित महिला लेखिकाओं और कवयित्रियों (अधिकांश लेकिन सब नहीं) की नारी महिमा मंडन की अति और पुरुषों के प्रति आग उगलती कलम... जो कि परिवारिक कलह का अक्सर कारण बनती है... और इसमें आग में घी काम करती हैं तथाकथित महिला गुणी पुरुष मित्रों की अति सराहनायें... किसी का घर टूटता है तो टूटे पर अपनी मित्रता बची रहनी चाहिये बस्स... ध्यान रहे स्त्री और पुरुष दोनों इस सृष्टि का अभिन्न अंग हैं और दोनों की अपनी-अपनी महत्त्वपूर्ण  भूमिकायें हैं और इन्हीं भूमिकाओं के हिसाब से ही ईश्वर ने दोनों के अलग - अलग शारीरिक - मानसिक गुणों से युक्त व्यक्तित्व की रचना की है... न कोई किसी से कम है - न किसी का योगदान ही कम है - न कोई कम महत्त्वपूर्ण ही है...

हाँ, ये अलग बात है कि कलियुग में हो रही हर चीज में मिलावट की तरह अब व्यक्तित्वों में भी मिलावट दिख रही... स्त्रियों में पुरुषत्व और पुरुषों में स्त्रीत्व दिखना आम होता जा रहा, कहीं शारीरिक रूप से तो कहीं मानसिक..... बाकी रही बात अन्याय - अत्याचारों की तो वो सतयुग - त्रेता - द्वापर सभी युगों में रहा है... रावण हो या कंस, ओसामा हो या बगदादी इन सबने अत्याचार या अन्याय करते वक्त स्त्री - पुरुष नहीं देखा... जो बुरा है वो सबके लिये है.... जो अच्छा है वो सबके लिये है... एक बात और कि सभी स्थान - धर्म - जाति - वर्ग में अच्छे लोग भी हैं तो बुरे लोग भी... लेकिन एक झटके में ये कह देना कि सब ऐसे ही हैं...  इनका नाश हो जाये... शस्त्र उठा लो... युद्ध छेड़ दो आदि जैसी बातें... जबकि आपको भी पता है आप अपने लेख - अपनी कविता के जरिये भड़ास निकाल रहे बस... वैसे तो आपके इस लेख या कविता से कुछ बदलने वाला नहीं है... हाँ कुछ लोगों को भड़काने के लिये... वाह - वाह पाने के लिये ठीक है पर इसे सराहनीय नहीं कहा जा सकता... क्योंकि एक एक अच्छा लेख - एक अच्छी कविता तभी कही जायेगी जब वो समाज को जोड़ने की, नव-विकास की प्रेरणा दे न कि तोड़ने की या सर्वनाश की प्रेरणा दे... बहरहाल अब मैं ३ व्यंग्यात्मक दृश्य प्रस्तुत कर रहा जिससे वस्तु-स्थिति पूर्णतया साफ हो जायेगी...

दृश्य एक :
पति से अक्सर झगड़ा होता है, बात - बात पर हाथ उठाते हैं, सीधे मुँह बात नहीं करते, किसी और महिला से चक्कर चल रहा, बाहर पैसे उड़ाते हैं, घर में पैसे नहीं देते, खुद पसरे रहते हैं, पत्नी को ऑर्डर देते रहते हैं ये लाओ - वो बनाओ, मेरा ये नहीं मिल रहा - मेरा वो नहीं मिल रहा.... सास हमेशा रोब झाड़ती है, ताने मारती है, कभी हाथ भी उठाया होगा... ननद भी अपना घर छोड़ के आ जाती है यहाँ अपनी होशियारी दिखाने - हमारे मामले में टाँग अड़ाने... और ये भी उन्हीं लोगों का साथ देते हैं... अरे सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं... मेरे तो भाग्य ही फूट गये जो इस घर में व्याह हुआ... मर्द सब एक जैसे ही होते हैं... स्वार्थी कहीं के... ये सभी बातें घुमड़ती रहती हैं चौबीसों घंटे और होता है इनका मंथन तब निकलती हैं रचनायें...

'नारी तू उठ, शस्त्र सँभाल'... 'नारी तू अंबा है - तू जगदंबा है'... 'हे स्त्रियों अब न सहो तुम पुरुषों का ये दमन'.... 'तोड़ दो सारे बंधन - तोड़ दो सब जंजीरें'... 'अबला नहीं तू सबला है'.... 'तेरे चरणों की धूल भी नहीं पुरुष'.... 'मर्द हैं सारे एक जाति के'... 'भोग-विलास की वस्तु नहीं तू, तोड़ दे उन सब हाथों को'... 'जब - जब नारी ने सीमा लाँघी तब - तब सर्वनाश तुम समझो'... आदि - आदि। निकाल गयी सब भड़ास... मन को अत्यंत सुकून मिला... सबको सुना दी खरी - खोटी... किसी को भी नहीं बख्शा... देखा मेरा टैलेंट... मेरी एक ही रचना से सब हिल गये... चहुँ ओर प्रशंसा हो रही है बस इस घर में ही कद्र नहीं है... अनपढ़ जाहिल कहीं के...

खैर, तो अब कुछ सवाल... जैसा कि आपने अपनी रचना में कहा है... तो क्या अब आप अपने पति से अलग हो जायेंगी? क्या समस्त परिवार का त्याग कर सकेंगी? क्या समस्त पुरुष जाति के खिलाफ तलवार उठा सकेंगी? आपका अपने पिताजी - बाऊ जी - पापा के बारे में क्या खयाल है, जिनको कि बचपन से ही आपने आदर्श माना और उनके लिये आप 'लाड़ली बिटिया रानी'? और अपने भाई के लिये क्या कहेंगी जिसे आप संसार का सबसे सीधा प्राणी मानती हैं? ये सब भी तो शायद पुरुष जाति के ही हैं न? और जिस सास और ननद से आपकी घोर दुश्मनी रही है, जिन्होंने ही आपके पति का दिमाग खराब किया... या वो कलमुही ऑफिस वाली जिसने आपके इनको अपने जाल में फँसाया, उसके बारे में क्या खयाल है आपका... वो भी तो शायद स्त्री जाति की ही है... वो भी तो शायद अम्बा - जगदंबा ही है वो भी रानी लक्ष्मीबाई का ही अवतार है न?

हा हा हा हा... अरे? इत्ता सब तो सोचा ही नहीं... बस जो दिल में आया लिख दिया... तुम 'चर्चित' दिमाग बहुत लगाते हो... और तुम न हमारी रचनाओं को मिल रही प्रशंसा से जलते भी हो... आज पता चला... हा हा हा हा...

दृश्य दो :
वाह बहन आपने क्या रचना लिखी... हृदय गदगद हो गया... सच में... 'यदि स्त्री न होती तो ये सृष्टि न होती'.... 'नारी कल भी भारी थी आज भी भारी है, पुरुष कल भी आभारी था आज भी आभारी है'... 'नारी तुम ही गीता हो नारी तुम ही रामायण'... वाह मैडम वाह... आज से पहले मैंने ऐसी रचना कभी नहीं पढ़ी... आप ही ऐसी बात कहने का साहस कर सकती हैं... आपके साहस के नाम मेरी ये रचना... 'उठो द्रौपदी शस्त्र उठाओ अब कोई कृष्ण न आयेंगे' आदि - आदि।

अब मेरा इन महानुभावों से प्रश्न है कि... सबसे पहले तो आप बतायें कि आप स्त्री हैं या पुरुष? फिर क्या आपको पता है कि द्रौपदी के चीरहरण के समय बचाने आये कृष्ण पुरुष ही थे, वहाँ मौन बैठे भीष्म-द्रोण जैसे महारथी भी पुरुष ही थे? क्या पुरुषों का दायित्व महिलाओं की रक्षा की जगह अब उनका महिमामंडन और उनसे अस्त्र उठवाना ही रह गया है? क्या आप जैसे शूरवीरों का काम चाटुकारिता, तुष्टिकरण, और महिलाओं के पीछे भागना और छिपना ही रह गया है? क्या आप घर में अपने पुरुष दायित्वों का पूर्ण निर्वाह कर रहे? क्या आपकी झूठी प्रशंसा और आपके झोठे प्रोत्साहन से यदि कोई महिला बेघर होती है तो क्या आप उसे सहारा देंगे? नहीं न?! तो फिर ऐसा ढोंग क्यों... ऐसी झूठी कविता क्यों... झूठा प्रोत्साहन क्यों... अच्छे-खासे परिवार को तोड़ना क्यों?

दृश्य तीन :
सुनो जी, कहाँ हो? जल्दी आओ.... किचन में एक छिपकली का बच्चा घूम रहा है... मैं चाय कैसे बनाऊँ?... अरे भाड़ में जाये तुम्हारा ऑफिस... हमें कुछ नहीं पता... जल्दी आओ बस...!!!... हेलो, अजी कहाँ हो आप? अभी-अभी मैंने टीवी पर न्यूज देखी, अर्मेनिया-अजरबैजान कहीं है वहाँ लड़ाई छिड़ी हुई है बम - मिसाइलें चल रही... मेरा तो दिल बहुत घबरा रहा है... आप जल्दी आओ... नहीं मैं कुछ नहीं जानती... बाबा जी ने भी बताया था कि ये २०२० का साल बहुत भारी है... कोरोना अलग फैला हुआ है... लड़ाई अलग छिड़ी हुई है... ऐसा लगता है कि दुनिया खत्म होने वाली है...!!!... अरे आप भी न क्या वो कविता की बात को लेकर बैठ गये... वो तो मैंने ऐसे ही लिख दिया था... बाकी मैं आपको छोड़कर कहाँ जानेवाली हूँ... मेरी तो ख्वाहिश ही यही है कि दुनिया छोड़ूँ तो आपकी बाँहों में.... !!!

.... तो फिर वो रानी लक्ष्मीबाई..... अम्बा - दुर्गा - चंडी... जो लिखा वो सब?.... अरे आप भी न? वो तो कभी - कभी गुस्सा आता है तो लिख देती हूँ... बाकी कोई अपना घर - परिवार बर्बाद करता है क्या?!!

उपसंहार :
हा हा हा हा... तो देखा? ये है भारतीय नारी (हालांकि सब ऐसी नहीं हैं)... लड़ना - झगड़ना एकतरफ... अपना घर - परिवार और पति - परमेश्वर एक तरफ...!!! ये सबक है उन नारद मुनियों के लिये जिनका बस चले तो हर घर में झगड़ा करा दें अपनी रोटी सेंकने के लिये... लेकिन क्या करें इनकी चलती ही नहीं है न?! खैर, इससे सीख लेनी चाहिये कि हे स्त्रियों, आप कुँवारी हों या विवाहित... कुछ भी लिखने से पहले... तलवार चलाने से पहले ये सोच लें कि इससे घायल आपके पिता - भाई - पति - बेटा सभी हो सकते हैं, ये सभी पुरुष हैं और इन सबके बिना शायद ही आप रह सकें... तो फिर झूठी बातें - झूठे दावे या झूठा आक्रोश दिखाती हुई कविता या लेख क्यों लिखना... लिखना ही है तो बुराई के खिलाफ लिखिये... बुराई के लिये जिम्मेदार लोगों के खिलाफ लिखिये... आपको सतानेवाली आप पर अन्याय करनेवाली सास - ननद के खिलाफ लिखिये भले ही वो भी नारी ही हैं।

इसीतरह हे कोमल हृदय पुरुषों, आप बजाय दूसरों की स्त्रियों को भड़काने के पहले ये देखें कि कहीं जाने -अनजाने आप अपनी माँ - पत्नी या बहन पर अन्याय - अत्याचार तो नहीं कर रहे... ध्यान रखिये कि लेट कर टीवी देखते हुए... फेसबुक - व्हाट्सप चलाते हुए जब आप बात - बात पर ऑर्डर चलाते हैं, अपने चाय का कप तक नहीं उठाते, अपना बिस्तर तक नहीं उठाते... हर चीज - हर काम के लिये पत्नी या बहन को कहते हैं... यदि आप इनसे सीधे मुँह बात नहीं करते... या बहुत कम बात करते हैं... कुछ पूछने पर जवाब नहीं देते... अपने परिवार को समय नहीं देते तो आपकी महान बातें - महान दावे सब खोखले हैं - झूठे हैं... आपके लेख - आपकी कविता पर क्षणिक वाह-वाही तो मिल सकती है पर ऐसी रचनायें कालजयी नहीं हो सकतीं... क्योंकि ये विश्वास उत्पन्न नहीं करतीं... हृदय में - मानस पटल पर अंकित नहीं होतीं... सूर - तुलसी - कबीर - मीरा - रहीम आदि की कृतियाँ ऐसे ही अमर नहीं हुईं... उन्होंने अपनी रचनाओं में सिर्फ कोरी लच्छेदार लोकलुभावन बातें ही नहीं कीं बल्कि उन्होंने वैसा ही जीवन जिया है... अपनी कृतियों को जिया है...

खैर, लिख तो दिया है अब देखते हैं कितनों को समझ में आती है...

- विशाल चर्चित

#women,  #ladies, #female, #स्त्री, #नारी, #महिला, #दुर्गा, #अम्बा, #लक्ष्मीबाई

शुक्रवार, अक्टूबर 02, 2020

गांधी जी एवं शास्त्री जी को समर्पित ये दो मुक्तक...

आज दो महापुरुषों का जन्मदिन है... महात्मा गांधी जी और
लालबहादुर शास्त्री जी का... प्रस्तुत है दोनों को नमन् करता ये मुक्तक...alt="GANDHISHASTRI"

#gandhi_jayanti#shastri_jayanti#गांधी_जयंती#शास्त्री_जयंती


शुक्रवार, सितंबर 25, 2020

माय कपल्स

alt="COUPLECHALLENGE"
शुरू करो कपल चैलेंज लेकर हरि का नाम
समय बिताने के लिये ये सबसे अच्छा काम

कपल कि जैसे जोड़ा - जोड़ी
कपल कि जैसे घोड़ा - घोड़ी
कपल कि जैसे कुत्ता - कुत्ती
कपल कि जैसे जुत्ता - जुत्ती

इन सबके ३६ गुण मिलते
पर ऐसे कपल है कितने मिलते
इसीलिये अब नियम में ढील
चलो बताओ बट विद फील

कपल कि जैसे लहंगा - चुन्नी
कपल कि जैसे मुन्ना - मुन्नी
कपल कि जैसे कलम - दवात
कपल कि जैसे दाल और भात
कपल कि जैसे जामुन - गुलाब
कपल कि जैसे चखना - शराब

चलो भई चर्चित पुट फुल स्टॉप
चखना-शराब, द कपल ऑन टॉप
कम ऑन स्पीक ओनली इंग्लिश
ऐन्ड डान्स माय डियर नॉन स्टॉप...

- विशाल चर्चित

#couple_challenge #funny_poem  #कपल_चैलेन्ज   #हास्य_कविता

सोमवार, सितंबर 21, 2020

बढ़ते विकल्प - भ्रमित जीवन...

alt="CONFUSEDLIFE"
बढ़ते विकल्प
सबकुछ की लालसा
और भ्रमित जीवन...

विषयों की भीड़
प्रसाद सी शिक्षा
ढेर सारा अपूर्ण ज्ञान...

उत्सवों की भरमार
बढती चमक दमक
घटता आनंद...

व्यंजनों की कतारें
खाया बहुत कुछ
फिर भी असंतुष्टि...

सैकड़ों चैनल
दिन-रात कार्यक्रम
पर मनोरंजन शून्य...

रिश्ते ही रिश्ते
बढ़ती औपचारिकता
और घटता अपनापन...

अनगिनत नियम कानून
बढ़ते दाँव - पेच
और बढ़ता भ्रष्टाचार...

फलती-फूलती बौद्धिकता
सूखते-सिकुड़ते हृदय
और दूभर होती श्वास...

अनेकों सूचना माध्यम
सुगम होती पहुँच
फिर भी घटता संपर्क...

फैलती तकनीक
बढ़्ती सुविधायें
घटती सुख-शान्ति...

हजारों से जुड़ाव
सैकड़ों से बातचीत
फिर भी अकेले हम...

- विशाल चर्चित 

#confused_life, #options_in_life, 
#life_poetry, #जीवन, #जिन्दगी, #भ्रम
#विकल्प, #कविता, #काव्य, #शायरी

सोमवार, सितंबर 14, 2020

जय हिन्द - जय हिन्दी

alt="HINDIDIWAS2020"

भारत माता की वाणी
हिंदी से जुडा पावन अवसर,
आओ करें संकल्प करेंगे
इसका प्रयोग हर स्तर पर...

हम रहें कहीं भी नहीं भूलते
जैसे अपनी माँ को,
याद रखेंगे वैसे ही हम
हिंदी की गरिमा को...

इन्टरनेट पर जहाँ कहीं भी
अंग्रेजी हो मजबूरी,
वहाँ छोड़कर हो प्रयास कि
हिंदी से हो कम दूरी....

जाएँ विदेशों में भी तो
हम उन्हें सिखाकर आयें,
यही नहीं कि "हिन्दी दिवस" पर
खाली दें शुभकामनायें....

|| जय हिंद - जय हिन्दी ||

- विशाल चर्चित

#hindi_diwas  #हिन्दी_दिवस  #राष्ट्रभाषा

रविवार, सितंबर 06, 2020

सुनो जी, अजी सुनते हो - न जाने कहाँ खोये रहते हो?

alt="WIFEMOBILE"
सुनो जी, अजी सुनते हो
न जाने कहाँ खोये रहते हो
जब देखो तब
टीवी न्यूज में घुसे रहते हो...

मैं वैसे सब समझती हूँ
फिर भी चुप रहती हूँ
खबर पे कम खबरवालियों पे
तुम्हारा ध्यान रहता है,
और ये भी क्या कम हैं
खबर सुनाने में कम
इतराने-इठलाने में
ज्यादा ध्यान रहता है....

जिस दिन भी मेरा भेजा
उल्टा हुआ,
पाओगे उसी दिन
ये टीवी फूटा हुआ...

ये क्या सड़ा चाइनीज
मोबाइल लाकर दिया,
बोला डार्लिंग सबसे
खास वाला तुम्हें दिया...

छि: इसने आजतक
एक भी मेरी ढंग की
तस्वीर नहीं निकाली,
जब भी निकाली
आड़ी - टेढ़ी ही निकाली...

देखो वो अपनी पड़ोसन
मोटल्ली का मोबाइल
कैसी सुन्दर तस्वीरें निकालता है,
काली-कलूटी भैंस को
पता नहीं कैसे
कभी करीना तो कभी
कैटरीना बना डालता है...

ये मोबाइल अभी बेचो
वही वाला ले आओ,
उसमें अच्छा फोटो,
घर में मेकअप,
सिलाई-कढ़ाई-बुनाई,
कपड़े चमकाने
दाग-धब्बे हटाने के
सभी ऐप डलवाओ...

और साथ में
अलग-अलग रंगों के
चार-पांच कवर भी लाना,
कपड़ों के साथ
मैंच भी तो हो
अगर कभी पड़े
बाहर आना - जाना...

अरे हाँ सुनो,
उसे साफ करने का
कोई पाऊडर हो तो
वो भी लेते आना,
कुछ भजनें-आरतियाँ
कुछ गाने-वाने भी
उसमें भराते आना...

जो हुक्म आपका देवी
अभी बाजार जाता हूँ
आपकी पसंद का
जादुई मोबाइल लाता हूँ,
जो कहा वो सब और
उसमें आटा-चावल-दाल
कुछ सब्जियाँ भी
भरा लाता हूँ,
वैसे मिलता तो नहीं है
पर फिर भी पूछूँगा
अगर मिले तो इसमें
थोड़ा भेजा भी
डलवा लाता हूँ...

जब कभी भी तुमपे
चंडी सवार होगी,
घर में - परिवार में
जब हाहाकार होगी, तब-
ये मोबाइल काम आयेगा
हिरोइनों के विडियो दिखायेगा
उनकी तरह से शांत रहना
सभ्यता से बात करना सिखायेगा...

दोस्तों, ये चर्चित का
आयडिया जो चल गया,
समझो तमाम पति-पत्नियों का
महा-गृहयुद्ध टल गया,
रोज होगा 'ऐक्शन'
रोज डांस ड्रामा,
रोज होंगे लव-सीन
रोज मस्त हंगामा...

मम्मी खुश - बच्चे भी खुश
बोलेंगे वॉव मॉम
सबकुछ फिल्मी तो नाम भी
फिल्मी रख लो ना मॉम,
'विमला देवी' से 'वेमलीना'
बन जाओ ना तुम मॉम,
और साथ में सेम मोबाइल
हमें भी दिला दो मॉम,
ताकि हम भी 'टीकू-मीकू'
बन जायें 'क्रूज टॉम'... !!!

- विशाल चर्चित

#wife_jokes, #wife_poetry,
#mobile_jokes, #mobile_poetry
#पत्नी_जोक्स, #पत्नी_कविता
#मोबाइल_जोक्स, #मोबाइल_कविता

बुधवार, सितंबर 02, 2020

शुक्रवार, अगस्त 28, 2020

गुलजार साहब को जन्मदिन की शुभकामना एक नज्म से....


गुलजार साहब को जन्मदिन की शुभकामना उन्हीं के अंदाज में लिखी एक नज्म से....

नज्म और गीत
एह्सास ही नहीं होने देते
कि कलम ही नहीं
जिन्दगी भी चलती है
साथ-साथ
आहिस्ता-आहिस्ता...

आ जाती है कभी-कभार
इसको हौले से हंसी भी
अपने ही तमाम ख्वाबों
तमाम खयालों पर
जब देखती है पलट कर...

लगाती है हिसाब-किताब
क्या पाया - क्या रह गया
क्या और होता तो अच्छा था
और बढ़ जाती है चमक
कागज पर उतरती
उस खास रौशनाई की,
मिल जाता है एक नया चश्मा
दुनिया को एक नये
नजरिये से देखने के लिये...

काफी पुराना है ये सिलसिला
काफी दिलकश और हसीन भी
ख्वाहिश है हमारी कि जारी रहे
ये सब कु्छ बस यूं ही
हमेशा - हमेशा....

गुलजार साहब
आपको - आपकी कलम को
सलाम करते हुए

//// जन्मदिन मुबारक ////

- विशाल चर्चित

#gulzaar, #poetry, #गुलजार, #नज्म

शनिवार, अगस्त 15, 2020

फिर भी भारत माता की जय...

alt="15AUG2020POETRY"
काहे की आजादी का दिन
घर में कैद हुए बैठे हैं,
टीवी पर उत्सव की खबरें
पर हम भरे हुए बैठे हैं...

अंग्रेजों का बाप कोरोना
कैद में दुनिया कर डाला,
मर्द भी मुँह ढक करके निकलें
मजबूर इतना कर डाला...

इस सत्यानाशी वायरस से
पीछा जाने कब छूटेगा,
अगर मिले हर भारतवासी
इसको खलबट्टे में कूटेगा...

चाइना के पँचफुटिया खुद को
विश्व-विजेता समझ रहे हैं,
एक तरफ बीमारी बाँटी
अब दुनिया से उलझ रहे हैं...

लेकिन इनको पता नहीं कि
जब चींटी की मौत आती है,
नये-नये हैं पर लग जाते
जिनपर उड़ती - इतराती है...

अपने पीएम हैं मोदी जी 
कुछ भी मुमकिन कर सकते हैं,
चाईना के इर्द - गिर्द
पूरा विश्व इकट्ठा कर सकते हैं...

कहते हैं उम्मीद पे दुनिया
शुरू से अब तक टिकी हुई है,
कभी खबर तो अच्छी होगी
आँखें टीवी पर टिकी हुई हैं...

काम-काज सब ठप्प पड़ा है
फिर भी भारत माता की जय,
सबकुछ जल्दी ही ठीक होगा
बोलो भारतमाता की जय...

'चर्चित' को विश्वास है यारों
यहाँ से सबकुछ बदलेगा,
यहाँ से भारत विश्व-गुरू बन
सबको नई दिशा देगा...


इसी आशा और विश्वास के साथ
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई

- विशाल चर्चित

#15_aug, #freedom_day, #स्वतंत्रता_दिवस. #आजादी, #कोरोना, #corona

बुधवार, अगस्त 12, 2020

फरिश्तों सी अगर फितरत तो किस्मत साथ चलती है...

फरिश्तों सी अगर फितरत तो किस्मत साथ चलती है
बलायें - आफतें उनसे हमेशा दूर रहती हैं
मुसीबत आ गयी भी तो उसे टलना ही टलना है
दुआयें चाहनेवालों की असर चुपचाप करती हैं

- विशाल चर्चित

तुम्हें अवतरित फिर से होना पड़ेगा...

alt="JANMASHTMI2020"

सोमवार, अगस्त 03, 2020

इसी लिये लाती है माँ हमारे लिये बहन...

मां हमसे बच्चों की तरह
लड़ - झगड़ नहीं सकती न,
गुस्सा होने पर हमारे
बाल नहीं नोच सकती न,
मस्तियां और शरारतें भी
नहीं कर सकती न,
उल्टे - पुल्टे सपने और
ऊल जुलूल बातें भी
नहीं कर सकती न,
इसी लिये लाती है
हमारे लिये बहन,
जो होती तो है
स्नेह और ममता में
मां का ही प्रतिरूप,
पर उसका बचपना
उसकी शरारते - उसकी मस्तियां
उसका लड़ना - झगडना
उसका रूठना - उसका गुस्सा
उसकी बेसिर - पैर की बातें
बनाती हैं उसे खास,
और यही चीज देती है
भाई - बहन के रिश्ते को
एक खास एहसास,
और इस एहसास को ही
तरोताजा करने के लिये
आता है रक्षाबंधन,
जो लाता है ये संदेश कि -
रिश्ते बदलें - मौसम बदले
या बदले संसार
पर एक चीज कभी ना बदले
भाई - बहन का प्यार....

स्नेहिल बधाई सहित
रक्षाबंधन मंगलमय हो

- विशाल चर्चित

रविवार, अगस्त 02, 2020

गर दोस्तों का साथ रहे, जिन्दगी जिन्दाबाद रहे...

alt="FRIENDSHIP"

एकाएक हो जाती हैं
हमारी कई आंखें
हमारे कई हाथ,
बढ़ जाती है ताकत
बढ़ जाता है कई गुना
हमारा हौसला...

हो जाती है एकाएक
बहुत दूर तक हमारी
हमारी पहुंच,
इसतरह आसान हो जाते हैं
हमारे तमाम काम
और बहुत आसान सी
हो जाती है जिन्दगी हमारी,
जब हो जाते हैं
कुछ अच्छे दोस्त हमारे साथ...

हम न होकर भी हो जाते हैं
डॉक्टर-इंजीनियर-मैनेजर
वकील-पुलिस ऑफीसर
या फिर राजनीतिज्ञ,
क्योंकि हमारे दोस्त हैं न ये सब?!

कोई भी दिक्कत हो
कोई भी अड़चन हो,
बस दोस्त को फोन घुमाना है
कोई भी - कैसी भी समस्या हो
समाधान फटाफट हो जाना है...

गर दोस्तों का साथ रहे
जिन्दगी जिन्दाबाद रहे...

|| दोस्ती जिन्दाबाद ||

|| HAPPY FRIENDSHIP DAY ||


- विशाल चर्चित

शुक्रवार, जुलाई 31, 2020

दरिया रहा कश्ती रही लेकिन सफर तन्हा रहा...

alt="DARIYA KASHTI"

दरिया रहा कश्ती रही लेकिन सफर तन्हा रहा
हम भी वहीं तुम भी वहीं झगड़ा मगर चलता रहा

साहिल मिला मंजिल मिली खुशियां मनीं लेकिन अलग
खामोश हम खामोश तुम फिर भी बड़ा जलसा रहा

सोचा तो था हमने, न आयेंगे फरेबे इश्क में
बेइश्क दिल जब तक रहा इस अक्ल पर परदा रहा

शिकवे हुए दिल भी दुखा दूरी हुई दोनों में पर
हर बात में हो जिक्र उसका ये बड़ा चस्का रहा

छाया नशा जब इश्क का 'चर्चित' हुए कु्छ इस कदर
गर ख्वाब में उनसे मिले तो शहर भर चर्चा रहा

- विशाल चर्चित 

शुक्रवार, मई 29, 2020

कोरोना की चकल्लस, कोरोना की भड़ास...

alt='CORONASATIRE'
यार,
मुँह दिखाने लायक भी
नहीं छोड़ा इस कोरोना ने,
बताओ भला
भटक गयीं रास्ते से
पटरी पकड़कर चलनेवाली
तमाम रेलगाड़ियाँ भी...

ताली पीटी-थाली पीटी
दिया जलाया मोमबत्ती जलायी
कोरोना तो भागा नहीं
टिड्डियाँ और आ गयीं हैं
जान खाने के लिये,
अब सिर बचा है
बोलो तो वो भी पीट लें...

दे दिया है
बीस लाख करोड़ का पैकेज
हिसाब-किताब लगाते रहो,
जब तक कोरोना का कहर है
बच गये तो ले लेना कर्ज
लगा लेना धंधा-पानी पर
उम्मीद मत छोड़ना,
अच्छे दिन जरूर आयेंगे
अभी नहीं तो २०२४ के बाद
पक्का, हम आयेंगे - हम लायेंगे...

तब तक
मन की बात करते रहिये
मन की बात सुनते रहिये
भूख-प्यास हैं मामूली चीजें
हमारा नाम दुनिया के
किस-किस कोने में हो रहा ये
सुन - सुन के खुश होते रहिये...

खैर, छोड़ो सब
चलो टीवी न्यूज देखें,
क्या गजब की बहस
क्या गजब का गला-फाड़
क्या अजब-गजब तर्क
कोरोना के लिये चमगादड़ दोषी
इसे पकाने, नहीं खानेवाले दोषी,
चीन दोषी - पाकिस्तान दोषी
हिन्दु दोषी - मुसलमान दोषी
तू दोषी - ये दोषी - वो दोषी
चौं - चौं - कौं - कौं - भौं - भौं
गुर्र - गुर्र - गुर्र - हट्ट, ब्रेकिंग न्यूज
और इसतरह हम हैं सबसे तेज...

अच्छा, चलो विडियो बनायें
'भइया आप कहाँ जा रहे?'
'जहन्नुम में, चलना है?'
'भइया यहाँ से क्यों जा रहे?'
'ऐसे ही घूमने - फिरने, क्यों?'
'भइया आपको कैसा लग रहा पैदल'
'जैसे कोई सामने हो अक्ल से पैदल'
'भइया, आप मजाक कर रहे'
'तो भइया आप भी तो वही कर रहे'
'भइया, हमारी बसों में गाँव जाइये'
'भेजा मत खाइये, आप यहाँ से जाइये'...

तो ये रही
चर्चित की चकल्लस
ये रही चर्चित के
दिल की भड़ास,
किसी को लगेगी अपनी
तो किसी को लगेगी
छिः-आक-थू यानी सड़ास...

- विशाल चर्चित

#corona_poetry   #corona_satire   #कोरोना_कविता   #कोरोना_व्यंग्य

सोमवार, मई 25, 2020

कोरोना तो सिर्फ एक झांकी है...

alt='CORONAPOETRY'
गुब्बारे,
जो होते हैं सिर्फ फूले हुए
जिनमें भरी होती है
सिर्फ और सिर्फ हवा,
कोरोना, बनकर आया है
एक ऐसी सुई जो
निकाल दे रहा है उनकी हवा...

दर्द,
कई हैं इसके इलाज
दबा दो इसे दवा से,
या पैदा कर दो
कहीं और दूसरा दर्द
या ख्वाब दिखाओ कि
ये दर्द सह जाओ
आगे खूब हरियाली है
आगे सिर्फ खुशहाली है...

अमीर,
सक्षम है खुद के लिये भी
और दूसरों के लिये भी
यदि मदद करना चाहे तो,
मध्यम वर्ग,
सक्षम है खुद की जुरूरतों में
खुद की जिम्मेदारियाँ उठाने में...

पर गरीब वर्ग?
न आज का पता है न कल का
जो - जैसा बताये सुन लेते हैं
जो - जैसा समझाये समझ लेते हैं
जो ख्वाब दिखाओ देख लेते हैं
जितना भी दुख-दर्द मिले सह लेते हैं
कुछ जोर नहीं चलता तो रो लेते हैं,
असहाय देखते हुए तमाम अपनों को
भूख-प्यास या बीमारी से खो देते हैं...

और ईश्वर?
रख रहा है हिसाब
सबका - हर चीज का,
मासूमों का भी-चालाकों का भी
चालाकी भरे तर्कों का भी
चिकनी - चुपड़ी बातों का भी
पर-हित में लगे नेक-नीयतों का भी
अपनी दुनिया में मस्त स्वार्थियों का भी...

अज्ञानता,
मूर्खता, गरीबी, मासूमियत
ये सब पाप नहीं हैं,
जैसे प्रकृति-पशु-पक्षी के
कर्मों में पाप नहीं है,
पाप है वहाँ जहाँ ज्ञान है,
बुद्धि है, छल है यानी
जहाँ नीयत में खोट है,
दिखावा है - ढोंग है,
और ईश्वर बीच-बीच में
इसी पर करता चोट है...

कोरोना,
ये तो सिर्फ एक झांकी है
असली प्रलय तो बाकी है,
ईश्वर का ये है संकेत
चालाकों, मक्कारों, गिद्धों
अब भी समय है
हो जाओ सचेत...

- विशाल चर्चित

#corona  #coronapoetry #कोरोना  #कोरोना_कविता  #महामारी

रविवार, मई 17, 2020

गलतियाँ तो हुई हैं, सुधार लें तो बेहतर...

'CORONAINDIAFAILURE'

 गलतियाँ तो हुई हैं, सुधार लें तो बेहतर... वरना इतिहास कभी माफ नहीं करेगा....
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इतनी बड़ी प्राकृतिक आपदा... सबके लिये एक बुरा और कभी न भूलने वाला अनुभव लेकर आयी है... इतना बड़ा देश - इतनी बड़ी आबादी... सबकुछ सही - सटीक हो... बिना किसी गलती - बिना किसी चूक के ये तो संभव ही नहीं है... पर नीयत सही हो तो सब ठीक हो जाता है गलतियाँ भी सुधारी जा सकती हैं, सबकुछ पटरी पर लाया जा सकता है... वर्ना समय - इतिहास कभी माफ नहीं करता किसी को भी...

प्रधानमंत्री -
जिनके नेतृत्व की सराहना देश - विदेश में हुई है... पर नेतृत्व यानी क्या... और किसका? नेतृत्व यानी घंटी बजवाना - दीया जलवाना - घर में रहने का आह्वान? पर ये सब किसके लिये? वो जिनके पास घर ही नहीं है उनका क्या? २० लाख करोड़ का पैकेज बहुत अच्छा है पर भविष्य के लिये... जो बेघर हैं... लगातार पैदल चल रहे... भूखे मर रहे... उनका क्या? अच्छा होता कि सबसे पहले उनके बारे में एक स्पष्ट नीति घोषित करते... देश की करोड़ों गरीब जनता मौत के कगार पर है... उसको तुरंत राहत चाहिये, भविष्य के सुनहरे सपने नहीं... देश महाशक्ति जब बनेगा तब बनेगा... विदेशों में हो रही प्रशंसा उसके किस काम की...

राज्य सरकारें -
किसी भी पार्टी की सरकार हो... राज्य में कोई भी गरीब मजदूर अगर बेघर है - भूखा है, अपने घर वापसी को मजबूर हुआ है, तो इसपर पहली जवाबदेही आपकी है... ऐसी स्थिति क्यों आयी कि उसे घर वापसी के लिये पैदल ही निकलना पड़ा... और आपने उसे जाने दिया? ये तो पल्ला झाड़ने वाली बात हुई? याद रखिये ये वही गरीब मजदूर हैं जिनका खून - पसीना लगा है राज्य की अर्थव्यवस्था में... आपका एक ही लक्ष्य होना चाहिये था कि वे गरीब मजदूर जहाँ हैं वहीं रहें... उनको वहीं जरूरी सुविधायें मिलें... बाकी आपका उपलब्धियाँ गिनाना - ये बताना कि हमने ये किया - वो किया सब बेकार है...

मीडिया -
वैसे तो मीडिया की भूमिका बहुत ही सराहनीय रही है... ये मीडिया ही है जो पल - पल की जानकारी उपल्ब्ध कराता रहा है... सभी घटनायें जनता तक पहुँचती रही हैं चाहे वो अच्छी रही हों या बुरी। लेकिन कुछ गलतियाँ मीडिया से भी हुई हैं, जैसे कि राजनीतिज्ञों को बुलाकर अर्थहीन बहस, धर्म-जमात पर बेवजह की बहस, गरीब जनता की बदहाली और बेबसी का कुछ टीवी एंकर्स द्वारा मुक्तछंद कविता जैसा भावुक पाठ, क्या हासिल होता है इससे? बेहतर हो कि किसी भी मुद्दे पर किसी भी एक मंत्री - एक नेता - एक धर्मगुरू को घेरा जाये... उससे चुन-चुन कर सवाल पूछे जायें, उसे बताया जाये कि क्या होना चाहिये था और क्या आपने किया, क्या नहीं किया... वर्ना ये टीवी की ये अर्थहीन बहस - और डिबेट्स... मछली बाजार से ज्यादा कुछ नहीं...

विभिन्न विपक्षी राजनैतिक दल -
इस वैश्विक महामारी में अगर सवसे निकृष्ट भूमिका कीसी की रही है तो वे हैं तमाम राजनितिक दल। ऐसा लगता है कि जैसे उनका सिर्फ यही लक्ष्य है कि कुछ भी हो जाये, मोदी सफल नहीं होना चाहिये, केन्द्र की कोई भी योजना सफल न होने पाये... हम तो विपक्ष में हैं हमारा काम सिर्फ कमियाँ निकालना है, आरोप-प्रत्यारोप करना मात्र है... बाकी देश चलाना केंद्र सरकार का काम है... गरीब जनता मरती है तो मरे, हम क्या करें... हम सत्ता में होते तो ये तीर मारते - वो तीर मारते... जिस राज्य में हमारी सरकार है वहाँ हमने ये कर दिया है - वो कर दिया है... बाकी काम केंद्र सरकार का है... तो इतना जान लें कि जनता बेवकूफ नहीं है... सब जान लेती है... भले ही कहे कुछ भी ना...

जनता -
बहुत कम लोग हैं जिन्हें दूसरों का दुख-दर्द महसूस होता है... ज्यादातर लोग तो लॉकडाउन की छुट्टी मनाने में मस्त है... ईश्वर का दिया सबकुछ है उनके पास... और शायद सदैव रहेगा भी... शायद इसीलिये क्योंकि सोशल मीडिया पर तरह - तरह के पकवान पेश करते रहते हैं... कि देखो आज हमने ये पकाया - ये खाया... ये लोग भूल जाते हैं या इनको समझ नहीं आता कि इस वक्त तमाम लोग ऐसे भी हैं जो मुसीबत में हैं और भूखे हैं कई दिनों से... कोई कविता कर रहा है लगातार - तो कोई गाना गा रहा है... तो कोई प्रेम कविता - शेरो-शायरी में मशगूल है... तो कोई हंसने-हंसाने की चुटकुलेबाजी में व्यस्त है... इन्हें देखकर लगता ही नहीं कि मानवजाति पर कोई संकट भी है इस समय... इन्हीं में से कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका एक ही उद्देश्य है कि सुबह आँख खुलने से लेकर रात को आँख बंद होने तक टीवी पर खबरें देख-देख कर सत्ता पक्ष या किसी खास विपक्षी दल या किसी खास धर्म के खिलाफ जहर उगलना... ऐसा लगता है कि जैसे इनको इसी काम के लिये नौकरी पर रखा गया है... इन सब लोगों को देख कर लगता है कि स्वार्थांधता - भ्रष्टाचार - व्याभिचार - अनैतिकता के लिये राजनीतिज्ञों को ही हम अकेले कैसे दे सकते हैं... क्योंकि नेतागण आखिर इन्हीं उपरोक्त सद्गुणों का ही तो व्यापक और विस्तृत रूप होते हैं...

खैर, जो कुछ महसूस हुआ लिखा है, इस आशा के साथ कि इससे कुछ लोग सीख लेंगे... हालांकि बहुत से लोग इसमें से भी 'किंतु-परन्तु' या 'इसमें भी खामियां' ढूंढ ही लेंगे... जो भी हो, इस पोस्ट का उद्देश्य न प्रशंसा है - न आलोचना... लोग लाइक - कमेंट नहीं भी करेंगे तो चलेगा...

#coronaindia   #COVID_19   #lockdownindia  #कोरोना   #कोविड   #लॉकडाउन

रविवार, मई 10, 2020

माँ, जहां ख़त्म हो जाता है अल्फाजों का हर दायरा...

alt='MOTHER'
माँ,
जहां ख़त्म हो जाता है
अल्फाजों का हर दायरा,
नहीं हो पाते बयाँ
वो सारे जज़्बात जो
महसूस करता है हमारा दिल,
और आती हैं जेहन में
एक साथ वो तमाम बातें....
छाँव कितनी भी घनी हो
नहीं हो सकती सुहानी
माँ के आँचल से ज्यादा....
रिश्ता कितना भी गहरा हो
नहीं हो सकता है कभी
एक माँ के रिश्ते से गहरा...
क्योंकि रिश्ते तो क्या
इस जहां से ही हमारा
परिचय कराती है एक माँ ही,
हर एहसास - हर अलफ़ाज़ का
मतलब भी बताती है एक माँ ही...
इसलिए माँ तुम्हारे बारे में
क्या कह सकते हैं हम
कुछ नहीं - कुछ नहीं - कुछ नहीं !!!

- VISHAAL CHARCHCHIT

#mothers_day  #mother   #माँ 

शुक्रवार, अप्रैल 24, 2020

हममें तुममें फासले यूँ तो कभी थे ही नहीं...

alt='DISTANCES'
#coronavirus   #social_distancing  #isolation
#love   #loneliness loneliness  #कोरोना 
#सोशल_डिस्टेंसिंग   #अकेलापन  #प्रेम_कविता   #प्यार
#मुहब्बत_शायरी  #दूरियाँ   #फासले  #रोमांटिक_शायरी
 

मंगलवार, अप्रैल 21, 2020

खुफिया तंत्र फेल ? अफवाह तंत्र भारी?

alt='RUMOR'
लॉकडाउन के बावजूद दिल्ली के अनंदविहार बस अड्डे पर और मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर जमा हुई हजारों की भीड़... और अब पालघर में तीन साधुओं की हत्या... इन सबके पीछे एक ही चीज कॉमन है और वो है... देश में ताकतवर होता 'अफवाह तंत्र' और इसका प्रमुख हथियार है... ह्वाट्सप - फेसबुक - ट्विटर - यूट्यूब और टिकटॉक पर धड़ल्ले से बन रही फेक आईडी, पेज और ग्रुप्स...

सरकार यदि वाकई सीरियस है तो इसे रोकने के लिये कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे... केवल टीवी चैनलों द्वारा 'वायरल खबर सच या झूठ' से काम नहीं चलेगा... अभी नहीं चेते तो वो समय दूर नहीं जब देश में अराजकता फैलाना देश के दुश्मनों के लिये बांये हाथ का खेल हो जायेगा। डिस्ट्रक्टिव माइंड यानी कि आपराधिक और स्वार्थी लोगों के लिये ये एक तरह से व्यवसाय और लक्ष्य प्राप्ति का जरिया बनता जा रहा है। मेरे हिसाब से इसे दो कारगर तरीके हो सकते हैं...

१) सभी सोशल मीडिया आइडी, पेज और ग्रुप के लिये आईडी प्रूफ अनिवार्य हो। सभी सोशल मीडिया आइडी, पेज और ग्रुप के लिये उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी सार्वजनिक होनी अनिवार्य हो, जैसे कि वे किस देश, राज्य से हैं, किस पेशे से हैं। मेल हैं या फीमेल हैं आदि। इसके लिये इन सभी साइट के मालिकों पर दबाव बनाना पड़ेगा... क्योंकि वे शराफत से इसे मानेंगे नहीं।

- इससे सोशल मीडिया के जरिये अफवाह फैलाना या अपराध करना लगभग असंभव हो जायेगा।

२) देश में खुफिया तंत्र का विस्तार किया जाये। इसके लिये अलग-अलग स्तर पर भारी मात्रा में अधिकारी और कर्मी नियुक्त किये जायें जो सीबीआई जैसी एजेंसियों के अंतर्गत कार्य करें। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के लिये अलग, विभिन्न सोशल मीडिया साइटस की जांच के लिये अलग लोग नियुक्त किये जायँ। और इनके वेतन का प्रबंध अपराधियों द्वारा भारी-भरकम वसूली और सरकारी राजस्व द्वारा किया जाये।
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- इससे अपराध और अराजकता में जबर्दस्त गिरावट आयेगी।
- इससे हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा।
- देश के दुश्मनों के हौसले पस्त होंगे।
- सरकार का सिर दर्द कम होगा।
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- विशाल चर्चित

#Intelligence  #Corruption  #Rumor  #Social Media  #Fake_News
#खुफिया  #भ्रष्टाचार  #अफवाह  #अराजकता  #सोशल_मीडिया  #झूठी_खबर