माँ, जहां ख़त्म हो जाता है
अल्फाजों का हर दायरा,
नहीं हो पाते बयाँ
वो सारे जज़्बात जो
महसूस करता है हमारा दिल,
और आती हैं जेहन में
एक साथ वो तमाम बातें....
छाँव कितनी भी घनी हो
नहीं हो सकती सुहानी
माँ के आँचल से ज्यादा....
रिश्ता कितना भी गहरा हो
नहीं हो सकता है कभी
एक माँ के रिश्ते से गहरा...
क्योंकि रिश्ते तो क्या
इस जहां से ही हमारा
परिचय कराती है एक माँ ही,
हर एहसास - हर अलफ़ाज़ का
मतलब भी बताती है एक माँ ही...
इसलिए माँ तुम्हारे बारे में
क्या कह सकते हैं हम
कुछ नहीं - कुछ नहीं - कुछ नहीं !!!
- VISHAAL CHARCHCHIT

सच कहा है ... माँ के आगे हर शब्द छोटा है ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
इक अति छोटे शब्द पर, बड़े बड़े विद्वान ।
जवाब देंहटाएंयुगों युगों से कर रहे, टीका व व्याख्यान ।
टीका व व्याख्यान, सृष्टि को देती जीवन ।
न्योछावर मन प्राण, सँवारे जिसका बचपन ।
हो जाता वो दूर, सभी सिक्के हों खोटे ।
कितनी वो मजबूर, कलेजा टोटे टोटे ।।
यह उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंचर्चा-मंच भी है |
आइये कुछ अन्य लिंकों पर भी नजर डालिए |
अग्रिम आभार |
FRIDAY
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