एक चिड़िया कह रही थी
ओ मनुज तू भी न उड़,
हमको उड़ती देखकर
तू तो न जल - तू तो न कुढ़...
तू रहे महलों में
सोये तू बढ़िया पलंग पर,
तो हमने कभी कुछ कहा क्या?
तेरी पकवानों की थाली पर
ध्यान हमारा रहा क्या?
देख तू भी स्वार्थ में
अंधा न हो - ऐसे न मुड़...
तू कहाँ सत्तर किलो का
और हम सत्तर ग्राम के,
तू कहाँ इतना है भारी
हम तो केवल नाम के,
हमको पुरवाई है काफी
तुझको आंधी भी है कम,
इसलिए बेकार में
क्यों करे है फुर्र - फुर्र...
ना तो तू कोई बाज-गिद्ध
ना कोई तू सांप है,
जिसने तुझको अक्ल दी
वो ऊपर बैठा बाप है,
अहं तज - शुभ कर्म कर
हमसे न जुड़- उससे तो जुड़...
- विशाल चर्चित
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बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंप्रणाम एवं आभार सर🙏🙏🙏
हटाएंबहुत सुंदर
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