गुरुवार, दिसंबर 25, 2014

काल के कपाल पर भी लिख चुके हैं नाम आप....


काल के कपाल पर भी
लिख चुके हैं नाम आप,
इतिहास नहीं भूलेगा
कर चुके वो काम आप...
सत्ता में आते ही
विश्व को बता दिया था,
भारत महाशक्ति है इक
सबको ये जता दिया था...
आपने नकेल दी थी
पाक की भी नाक में,
लार जो टपका रहा था
कारगिल की ताक में...
परमाणु विस्फोट किया तो
अमरीका बौखला गया था,
उसका भी खूफिया तंत्र
इसमें गच्चा खा गया था...
ललकारा बड़े देशों से
लगाओ प्रतिबंध लगाओ,
कहा जीत पक्की है
देशवासियों जरूरत घटाओ...
विदेश हो - विपक्ष हो
आपके आगे नतमस्तक थे,
गजब का आत्मविश्वास था
सत्ता में आप जबतक थे...
मोदी जी का स्वागत है कि
एक बड़ा अच्छा काम किया,
सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न'
आज आपके नाम किया...
हम भी अपनी शुभकामनायें
आज आपके नाम करते हैं,
और आपको तथा आपकी सभी
उपलब्धियों को सलाम करते हैं...
ईश्वर सुख - शांति से भरा
आपको स्वस्थ सुदीर्घ जीवन दे,
और हर्षोल्लास मनाने के सदा
ऐसे ही नये - नये क्षण दे...

जन्मदिवस मंगलमय हो !!!


- विशाल चर्चित

मंगलवार, दिसंबर 02, 2014

'रामा रामा सीपों सीपों - कृष्णा कृष्णा सीपों सीपों'

पुराने जमाने में
संगीत के शिष्य ने
कोमल की जगह
तीव्र 'म' लगाया,
तो गुरू ने
छ्ड़ी से की धुलाई, और
नानी याद दिलाया..
इसतरह मार - मार के उसका
हर सुर होता था पक्का,
और इसीतरह हर शिष्य
लगाता था संगीत में छक्का...
आज का गुरू जब
बड़े बाप के बच्चों को सिखाता है,
तो दस हजार की फीस पर
दो हजार चाय पानी के पाता है,
इसलिये ज्यादा दिमाग नहीं लगाता है...
चेला हमेशा 'स रे' की जगह
'ग ध' का सुर लगाता है,
गुरू इसको आधुनिक संगीत में
एक अनूठा एवं नव प्रयोग बताता है...
अब बेटा जब गर्दभ स्वर में
'सीपों सीपों' गाता है,
सुन के अमीर मां - बाप का
सीना चौड़ा हो जाता है...
करके पच्चीस लाख खर्च
बनवाते हैं लाल के लिये
संगीत का महान एल्बम...
मीडिया भी पाता है जब
मुंहमांगा पैसा, तो -
प्रचार करता है कुछ ऐसा,
कि देखते ही देखते
पूरे देश में गूंज उठता है शोर -
'रामा रामा सीपों सीपों'
'कृष्णा कृष्णा सीपों सीपों'...
म्युजिक हो जाता है सुपरहिट
आज की पीढ़ी पर एकदम फिट,
पुराने जानकार पीटते हैं माथा
"हे भगवान - ओह शिट !!!"

- विशाल चर्चित

रविवार, नवंबर 30, 2014

सोचें तो वो कि जिन्हें है चाहत छूने की आसमान...


सोचें तो वो
कि जिन्हें है चाहत
छूने की आसमान,
कि जो पा लेना
चाहते हैं जिन्दगी में
कामयाबियों का जहान...
हमारा क्या है
आदमी हैं
फकीर मिजाज के,
अपना काम करेंगे
और दुनिया से
चुपचाप चलते बनेंगे...
वक्त की मिट्टी तले
अगर दफन भी हुए तो
वक्त को ही चिढ़ायेंगे
इस जहां पर मुस्कुरायेंगे,
कि अब तू सोच और
लगा हिसाब कि
खो दिया क्या और किसे...
हमें क्या गम?
हम क्यों हो दुखी?
हमारा माल हमारे पास
नहीं बिका तो नहीं बिका,
तमाम कोयलों में एक हीरा
किसी को पूरी दुनिया में
नहीं दिखा तो नहीं दिखा,
सिर्फ कामयाबी या
फायदे के लिये हमारा सिर
किसी के सामने
नहीं झुका तो नहीं झुका,
हम तो हैं बहुत खुश
इसी में ही कि
किसी को मस्का
लगाये बगैर भी
हमारा कोई काम
नहीं रुका तो नहीं रुका...

- विशाल चर्चित

शनिवार, नवंबर 22, 2014

आपके इस भैंसे को भी हंसायेंगे...


कल रात क्या बतायें
एक सपना ऐसा आया,
देखा कि हम हो गये
पूरे के पूरे 78 के और 
अंत समय अपना आया...
पड़ गये सोच में कि
दिखने में हैं हट्टे - कट्टे
न कोई रोग - न बीमारी,
ऐसे में भला कैसे 
हो जायेगी मौत हमारी...
यही सब उल - जुलूल
चल रहा था सोच विचार,
अचानक हुआ उजाला
छंट गया अंधकार
सामने हमारे यमराज जी
चुके थे पधार ...
डर तो लगा पर हास्य कवि हैं 
आदत से बाज कहां से आते,
कह दिया -
"अरे प्रभु आप ?!
इतना कष्ट उठाने 
की क्या जरूरत थी
हमारे लिये आपको
भैंसे से आने की क्या जरूरत थी?!
थोड़े दिन रुक जाते,
हम आपके लिये खरीद कर 
नई गाड़ी भिजवाते...!"
प्रभु बोले -
"अबे उल्लू किसको बनाता है?!
एक घर तक तो ले नहीं पाया
हमें गाड़ी का ख्वाब दिखाता है?!"
हमने हाथ जोड़कर कहा -
"क्षमा प्रभु क्षमा
हमारे सत्कर्मों पर
कुछ तो तरस खाइये,
साल - दो साल इस मामले को
आगे खिसकाने का 
कोई जुगाड़ हो तो बतलाइये...
हम दो - चार साल बाद
बड़े कवि बन जायेंगे
तो खुद ही चले आयेंगे,
यदि आप कहें तो अपने साथ
आठ - दस कवियों को ले आयेंगे,
रोज कवि सम्मेलन करायेंगे
एक से एक चुटकुले सुनायेंगे
आप ही नही आपके 
इस भैंसे को भी हंसायेंगे..."

- विशाल चर्चित

शुक्रवार, नवंबर 14, 2014

सोनू - मोनू - पिंकू - गुड्डू आओ मनाएं बाल दिवस.....


सोनू - मोनू - पिंकू - गुड्डू
आओ मनाएं बाल दिवस.....

बाल दिवस है बाल दिवस
हम सबका है बाल दिवस,
सोनू - मोनू - पिंकू - गुड्डू
आओ मनाएं बाल दिवस....

कागज़ की एक नाव बनाएं
तितली रानी को बैठाएं,
नदी किनारे संग संग उसके
आओ हम सब चलते जाएँ....

तितली उड़े आकाश में
भगवान जी के पास में,
भगवान जी से लाये मिठाई
खा करके चलो करें पढ़ाई....

पढ़ना है जी जान से
ताकि हिन्दुस्तान में,
खूब बड़ा हो अपना नाम
खूब अच्छा हो अपना काम....

काम से पापा मम्मी खुश
काम से सारे टीचर खुश,
सारे खुश हो खुशी मनाएं
बड़े भी सब बच्चे हो जाएँ.....

बच्चों का हो ये संसार
बचपन की हो जय जयकार,
ना चालाकी - ना मक्कारी
ना ही कोई दुनियादारी.....

दुनिया पूरी हो बच्चों की
केवल हो सीधे - सच्चों की,
सच्चे दिल की ये आवाज
आओ धूम मचाएं आज.....

- VISHAAL CHARCHCHIT

मंगलवार, नवंबर 11, 2014

सारे ही ऐंठे हुए हैं....

सारे ही ऐंठे हुए हैं
सारे ही सबक सिखाने को
तैयार बैठे हुए हैं,
पता नहीं क्या हो गया है
पहले तो कुछ नहीं कहते थे
हर गलती को बच्चा समझकर
माफ करते थे,
लेकिन अब...

बाल कहते हैं कि-
तुम खुद तो खाते - पीते हो
अपनी पसंद का
पर हमें हमारा 
खाना तक नहीं देते,
जरा सा तेल तक 
तुमसे नहीं दिया जाता,
रोओगे जब हम 
छोड़ जायेंगे साथ
पूरी तरह से...

दिमाग को शिकायत है कि-
सुबह से लेकर रात तक
बस 'ये याद कर - वो याद कर'
नींद में भी सुकून नहीं है तुम्हें
जैसे कि हम कोई मशीन हों
एक दिन तब पता चलेगा बेटा
जब हम नहीं याद रखेंगे
तुम्हारा अपना नाम - पता भी...

आंखों को तकलीफ है कि-
हमेशा कंप्यूटर - मोबाइल पर
लगातार देखते रहते हो
कभी भी हमारे बारे में नहीं सोचते
हमें दर्द भी हो तो भी परवाह नहीं करते
ठीक है लगे रहो पर सोच लो
एक दिन चश्मा भी काम नहीं आयेगा...

कान कहते हैं कि -
दिन - रात मोबाइल पर
बतियाते रहते हो
न जाने किस - किससे,

कभी दायें तो कभी बायें
जैसे सबकी और सबकुछ ही 
बहुत जरूरी हो सुनना,
बस एक हमारी ही 
सुनना जरूरी नहीं है,
लेकिन तुम्हें पता तब चलेगा
जब हम बंद कर देंगे सुनना
तब अपना सिर धुनना...

दांतों का कहना है कि-
एक तो हमारी पसंद का खाना नहीं
और जो कुछ खाते भी हो
तो वो एकदम मरियल सा
वो भी निगल जाते हो सीधा
जैसे कि हमारी जरूरत ही नहीं

अच्छी बात है हम भी करते हैं
यहां से कूच करने की तैयारी...

दिल का रोना है कि -
जब देखो तब टेंशन ही देते हो
खुशी तो कभी देते नहीं
फिर भी उम्मीद करते हो कि
हम ऐसे ही हमेशा साथ देते रहें,
क्यों भाई, ठेका लिया है क्या?
एकाध झटका लगेगा तो
आ जायेगी अक्ल ठिकाने पर...

पेट महाशय बोलते हैं कि -
जो भी दिल में आता है
उल्टा - सीधा ठूंसते जाते हो
कभी सोचा है कि तुम हमसे
कितनी मेहनत कराते हो ?!
करा लो - करा लो, पर याद रखो
बहुत जल्दी ही हम तुमसे मेहनत करायेंगे
घंटों टॉयलेट में बिठायेंगे
दिन में तारे दिखलायेंगे
तुमको नानी याद दिलायेंगे...

पैरों को दुख है कि -
कदम - कदम पर चाहिये तुम्हें
मोटरसाइकिल, रिक्शा या कार,
घर और ऑफिस में भी 
हमेशा पसरे ही रहते हो,
न ज्यादा खड़े होते हो
न ज्यादा पैदल ही चलते हो,
इसतरह तुम हमें आलसी बना रहे
अच्छा, तो ऐसा है कि अब हम
पूरी तरह से सो जा रहे...

- विशाल चर्चित

गुरुवार, नवंबर 06, 2014

खुश हो लेते हैं रौशनी की कल्पना से ही...

अंधेरा है अब भी 
पर खुश हो लेते हैं
रौशनी की कल्पना से ही...

दुःख हैं बहुत से
पर दबा देते हैं
तमाम सुखों के 
काल्पनिक 
एहसासों से...

मुश्किलें हैं अनगिनत
पर हल कर लेते हैं
उन्हें खयालों में ही
हकीकत में हल होने तक...

खुशियां आती हैं जिन्दगी में
बहुत कम और कभी - कभी
पर मिला लेते हैं हमेशा इसमें
दूसरों की खुशियां और
 

बना डालते हैं अपने आसपास
एक खुशियों का सुन्दर सा जहां...

व्यस्त इतने रहते हैं
अपनों का हाल पूछने में कि
वक्त ही नहीं मिलता 
अपने हाल पर रोने का...

कमाई बहुत ज्यादा नहीं है पर
लोगों की दुआयें इतनी हैं कि
ख्वाबों में ही सही
बहुत मजे में कट रही है जिन्दगी...

- विशाल चर्चित

मंगलवार, अक्टूबर 28, 2014

वर्ना.... आप दोनों से कट्टी !!!


पापा,
यहां गांव में 
नानी के यहां,
न अच्छा है पानी
न अच्छा है खाना
और न अच्छी है 
हमारी तबियत...
यहां डराते हैं हमें
घूमते हुए सांप
जहरीले डंकवाले बिच्छू
आप बोल दो 
हनुमान जी से कि
हमें न काटें,
हमारा तो झगड़ा हुआ है
वो नहीं मानते 
हमारा कहना पर 
आपकी तो वो सुनते हैं न,
इसलिये आप बोल देना 
जरूर से - ध्यान से,
वर्ना..... वर्ना 'आपका सर'
और हनुमान जी का भी 'सर'
आप दोनों से कट्टी,
कट्टी - कट्टी - कट्टी !!!

- विशाल चर्चित

गुरुवार, अक्टूबर 23, 2014

बोलो जय हो चर्चित राज की....


कल छोटी दीपावली पर अपने एक मित्र का फेसबुक पर लेख पढ़ा कि 'मिडिया और पर्यावरण के रखवालो को पर्यावरण बचाने की याद सभी हिन्दू त्यौहारो पर ही आती है....जम के पटाखे छुड़ाइये, दिवाली है, बाकि के 364 दिन है पर्यावरण के लिए....' और बस इसी पर शुरू हो गया अपने भी दिमाग का चलना....और बन गया अच्छा - खासा एक व्यंग्य..... :D

भाई देखिये, आज अपनी दीवाली है... सबसे बड़ा त्योहार... दिमाग की ऐसी - तैसी मत कीजिये... हमारा जो मन करेगा करेंगे... आप अपना ये 'पर्यावरण का प्रवचन' अपने पास रखिये.... समझ गये न ?! हम कमाते हैं तो अपने लिये... गरीबों को देने के लिये थोड़े ही?! कोई गरीब है तो उसका नसीब... इसमें हमारी क्या गलती ?! एक तो महंगाई इतनी बढ़ गई है कि जेब का दीवाला निकल जाता है ऊपर से लोगों के भाषण कि 'ये मत करो - वो मत करो'... पिद्दी से पटाखे भी 40-50 रुपये के आते हैं.... मतलब कि कम से कम द हजार के पटाखे तो लेने ही पड़ते हैं... वर्ना पड़ोसियों में नाक कट जाती है... कहते हैं 'भिखमंगा कहीं का'.... कुछ लोग आकर समझाने लगते हैं कि 'बम यहां नहीं, कहीं और छुड़ाओ, फलां को ब्लड प्रेशर की बीमारी है'... अरे भाई जिसको बीमारी है वो कहीं और जाये हम क्यों जायें... हम तो यहीं बम भी दगायेंगे और यहीं रॉकेट भी... हमारा रॉकेट किसी के घर में जाता है तो इसमें हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है, क्योंकि हम थोड़े न बोल के भेजते हैं कि 'जा बेटा फलां के घर में...'?!... अब रही बात प्रदूषण की तो तमाम गाड़ियों और फैक्टरियों से दिन - रात प्रदूषण होता है तब तो नहीं बोलते...पहले उनको बन्द कराओ जाकर.... अगर हम अपने मन का कर न सकें तो काहे की आजादी?! ....इसका मतलब है कि हम अभी भी गुलाम हैं.... इसलिये आओ भाइयों हम सब एकजुट होकर इस गुलामी के खिलाफ मुहिम छेड़ते हैं... अगर हम कामयाब हो गये तो... एक ऐसा राज्य स्थापित करेंगे जहां..... 'कोई भी नियम कानून नहीं होगा'.... 'कोई भी कुछ भी कर सकेगा'... 'कोई भी किसी के भी सिर पर बम फोड़ सकेगा'.... 'कोई भी अपना रॉकेट लिये दिये किसी के भी घर में घुस सकेगा'... 'मिट जायेगा दोपायों और चौपायों के बीच का फर्क'... 'कोई भी गरीब नहीं होगा, सारे अमीर ही होंगे... क्योंकि सबकुछ सबका होगा'... 'न पुलिस होगी न कानून होगा'... 'न रिश्वत होगी न भ्रष्टाचार होगा'...'जिसको जो मिले ले के निकल लो'... है न जबर्दस्त आइडिया ?? तो इसी बात पर प्रेम से बोलो... 'जय हो चर्चित राज की'.... शुभ दीवाली !!!

रविवार, अक्टूबर 19, 2014

रमोना, तुम ठीक तो हो ना.... ?!



रमोना, 
तुम ठीक तो हो ना
नहीं, 
बता रहे हैं तुम्हारे शुष्क होंठ
कि
नहीं हो तुम ठीक,
बता रही हैं तुम्हारी
बुझी - बुझी सी आंखें
कि कत्तई ठीक
नहीं हो तुम...
पता है कुछ तुम्हें?
न तुम ठीक हो और
न वो जल प्रपात नियाग्रा का
मिलते थे हम जिसके किनारे,
न ही ठीक है 'सूमी'
तुम्हारी प्यारी डॉलफिन
जिसे खिलाती थी तुम
चने - मूंगफलियां
और न जाने क्या - क्या...
अब वैसी नहीं लहलहाती
आल्पस की पहाड़ी वादियां भी
जैसे कि तुम्हारे स्वागत में
पहले लहलहाती थी...
भीलों का बच्चा 'कारू'
अब नहीं लाता किसी के लिये
जंगल से मीठी - मीठी बेर
मेरे लिये भी नहीं...
अब वैसे
नहीं मुस्कुराते
सिकोया के वृक्ष
जैसे कि पहले मुस्कुराते थे
तुम्हें देखकर हमेशा,
उनमें अब मधुमक्खियां भी
नहीं लगाती शहद के छत्ते...
सच में, एक तुम्हारे रूठ जाने से
पूरी कायनात लगती है जैसे
सहारा रेगिस्तान,
यहां तक कि खुद तुम भी...
गुस्सा छोड़ो और मेरे साथ चलो
हम फिर से मुस्कुरायेंगे
उन सबको जगायेंगे
उन सबके साथ झूमेंगे गुनगुनायेंगे
सुबह सूरज को चिढ़ायेंगे
रात में चांद को जलायेंगे
चलो, उठो... मान भी जाओ अब...
- विशाल चर्चित

बुधवार, अक्टूबर 15, 2014

राजनीति के चश्मे से लोगों के चार प्रकार...


वैसे तो अपन राजनीति पर बहुत कम बोलते हैं... पर जब बोलते हैं तो हमेशा अलग सुर में ही बोलते हैं... काहे से कि न तो हम कमल वाले हैं, न पंजा वाले, न झाड़ू वाले, न घड़ी वाले, न साइकिल वाले, न हाथी वाले, न रेल इंजन वाले, न हंसिया वाले और न लालटेन वाले... इसीलिये राजनीति से नहाये धोये लोगों को लगता है कि 'क्या बोल रहा है बे, पढ़ाई- लिखाई नहीं किया का'... इसीलिये कुछ बोलने में थोड़ा घबराहट फील होता है... लेकिन पिछले काफी दिनों से महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार की वजह से कानों में कुलबुलाहट और आज लोगों में चुनावी जोश देखकर बोलने से अपने आप को रोक नहीं पाया... 

हमारे हिसाब से कुल 4 तरह के लोग हैं हमारे देश में... 

1) एक वो जो पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हैं... जिनके लिये मोदी जी विष्णु के ग्यारहवें अवतार के रूप में धरती पर आये है...सोनिया जी - राहुल जी -  प्रियंका जी ही देश के असली तारनहार... केजरीवाल जी संसार के समस्त देवी देवताओं के मिक्स अवतार लगते है... कहने का मतलब ये है कि इनको अपना नेता साक्षात भगवान का अवतार लगता है तो दूसरी पार्टी वाला 'कुत्ता या कुतिया' (ये बात तमाम नेताओं के मुंह से सुनने के बाद कह रहा).... 

2) अब दूसरे प्रकार के लोगों की बात... ये वो लोग हैं जो किसी पार्टी या नेता के परम भक्त होते हैं... ये अपना सब काम छोड़ के दिन-रात अपने नेता के भजन में व्यस्त रहते हैं... अगर इनके नेता को छींक भी आये तो तुरंत कीर्तन शुरू 'वाह - वाह क्या छींके हैं भइया, आप से पहले न तो किसी ने ऐसा छींका होगा और न आपके बाद कोई ऐसा छींक पायेगा'... ये लोग अपने इस कार्य को देश की सेवा बताते हैं... भले ही अपने माता - पिता - भाई - बहनों - रिश्तेदारों - मित्रों - कर्मचारियों और पड़ोसियों की सेवा में कमी रह जाये पर देश की सेवा में कमी नहीं होनी चाहिये... सच कहें तो ऐसे लोगों के बल पर ही सभी पार्टियों की पूरी खिचड़ी पकती है और सत्ता में आने के बाद इन्हीं लोगों में मलाई भी बंटती है... मलाई यानी कि पद, प्रमोशन, ठेका, कौड़ियों के भाव में सरकारी जमीन, कमीशनखोरी, डरा - धमका के हफ्तावसूली आदि - आदि... 

3) अब बारी है तीसरे प्रकार के हम जैसे राजनीतिक अछूत लोगों कि... जो पहले दो महा - प्रकारों की नस - नस से वाकिफ होते हैं इसलिये इनकी न तो बातों में आते हैं और न ही इनके सुर में सुर मिलाते हैं... ये वहीं बोलते हैं जो निस्पक्ष और निःस्वार्थ होता है.... इन्हे न तो किसी मलाई की चाह होती है और न ही किसी हराम के पद की... अपनी मेहनत से जो - जितना मिल जाये उसमें संतुष्ट.... अपनी क्षमता अनुसार बिना देश प्रेम का शोर मचाये लोगों की सेवा में मस्त रहने वाले... 

4) और अब बात करते हैं चौथे प्रकार के लोगों की... तो ये वो लोग हैं जिन्हें वास्तव में जनता जनार्दन और आम आदमी कहा जाता है... जिन्हें कुछ पता नहीं होता है... इन्हें वही सही लगता है जो बार - बार और ऊंची आवाज में सुनाई पड़े... जो टीवी और अखबार पार बार - बार दिखाई पड़े... जो बहुत जल्दी भूल जाते हैं पुरानी बातें - पुराने घाव - पुराने धोखे - पुराने घोटाले... इनके भोलेपन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 'घर भरता है नेता का, खुश होते हैं ये'... 'बीमार पड़ता है नेता, तो दुखी होते हैं ये'... 'शादी पड़ती है नेता के यहां, तो नाचने लगते हैं ये'... नेता का फरमान आता है कि 'चलो दिल्ली' तो चल दिये...'जाति - धर्म के लिये लड़ना है' तो लड़ पड़े... कहने का मतलब है कि इन्हें बड़ी आसानी से बहला - फुसला कर के अपना उल्लू सीधा किया जाता है... हम ये नहीं कहते कि सब ऐसे ही हैं पर ज्यादातर तो हमने ऐसा ही पाया है....खैर, इस तरह खत्म हुई 'राजनीतिक कथा'... अब बारी है आप सबकी टिप्पणियों की... और पहले दो प्रकार के लोगों की 'मन ही मन गालियों की'.... :D

गुरुवार, अक्टूबर 02, 2014

महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती पर


आज के दिन दो महापुरुषों महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती है.... दोनों को नमन करते हुए.... एक बार फिर से प्रस्तुत है मेरा इनके लिये लिखा गया मुक्तक....

महात्मा गांधी
:::::::::::::::::::::::::::::
जो भी था तुम्हारे पास देश पर लुटा गए
हँसते-हँसते देश के लिए ही गोली खा गए,
यूं तो सभी जीते हैं अपने - अपने वास्ते
दूसरों के वास्ते तुम जीना सिखा गए....

लाल बहादुर शास्त्री 
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
तख़्त-ओ-ताज पा के भी आम आदमी रहे
कोशिश की हर जगह सिर्फ सादगी रहे,
करके दिखा दिया कि मुल्क साथ आएगा
शर्त मगर एक कि ईमान लाजमी रहे.....

- VISHAAL CHARCHCHIT

रविवार, सितंबर 14, 2014

कमजोर पड़ता दिख रहा अब 'देसी' च्यवनप्रास...

कर्म करके फल पायें 
ये आम बात है,
कर्म कोई और करे 
लेकिन फल पायें हम
ये खास बात है...
अध्यापक पढ़ाये और 
हम मेहनत से पढ़ाई करें
परीक्षा में प्रश्नपत्र हल करें
और तब पास हों
ये आम बात है,
हम करें घुमाई अध्यापक पढ़ाये
वही हल करे प्रश्नपत्र परीक्षा में और 
हम अच्छे अंकों से पास हो जायें
तो ये खास बात है...
बच्चे विद्यालय जायें
शिक्षक मन लगाकर पढ़ायें
अधिकांश बच्चे पास हो जायें
ये आम बात है,
बच्चे विद्यालय जायें
शिक्षक चुटकुले सुनायें
पढ़ने के लिये कोचिंग बुलायें
जो जाये कोचिंग सिर्फ वही हो पास
तो ये खास बात है...
महीने भर मेहनत से काम करें
और तब पायें तन्ख्वाह
ये आम बात है,
घर में बैठ कर भी लगे हाजिरी
और पायें मोटी तन्ख्वाह
तो ये खास बात है...
नौ महीने तक तमाम तकलीफें सहें
तब कहीं जाकर मातृत्व सुख मिले
ये आम बात है,
कोई और तकलीफें सहे
हमारी सेहत और सुन्दरता 
ज्यों की त्यों बनी रहे
और मातृत्व सुख भी पा जायें
तो ये खास बात है...
हम करें अपराध
पुलिस आये पकड़्कर ले जाये
ये आम बात है,
हम करें अपराध और
हम ही पुलिस बुलायें
अपनी जगह किसी और को पकड़वायें
तो ये खास बात है...
हम पड़ें बीमार
डॉक्टर वसूले भारी फीस
और तब हो हमारा इलाज
ये आम बात है,
हम पड़ें बीमार
कोई और बिल चुकाये
हमारी एक किडनी 
डॉक्टर चुपके से उसे थमाये
तो ये खास बात है...
अदालत में चले मुकदमा
सारे सबूत गवाह जुटायें
केस जीत जायें
ये आम बात है,
न गवाह न सबूत लायें
सीधे जज को पटायें
केस जीत जायें
तो ये खास बात है....
हमेशा करें अच्छे काम
हमेशा तारीफ पायें
चर्चित हो जायें
ये आम बात है,
हमेशा करें उल्टे सीधे काम
हमेशा खिंचाई करायें और 
खूब चर्चा में आयें
तो ये खास बात है....
अब आप करें फैसला
बनना है आम या खास,
पर इतना जान लीजिये कि
कमजोर पड़ता दिख रहा
अब 'देसी' च्यवनप्रास...

- विशाल चर्चित

शनिवार, अगस्त 30, 2014

अच्छे दिन जब आयेंगे महंगा मोदक लायेंगे....


अभी यही प्रभु सस्ता मोदक
महंगाई मुंह बाये जब तक
अच्छे दिन जब आयेंगे
महंगा मोदक लायेंगे
करो कृपा कुछ तुम्हीं गजानन
विघ्न दूर हो आनन फानन
लाखों के कुछ काम बनें तो
थोड़ा हम भी नाम करें तो
दरियादिल हम दिखला देंगे
भारी मोदक भी ला देंगे
नेताओं से झूठे वादे
नहीं हमें हैं करने आते
सीधा सुनना - सीधा कहना
हर हालत में सीधे रहना
फिर भी कछुआ चाल जिन्दगी
ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी
तुम चाहो तो क्या मुश्किल है
चलकर आती खुद मंजिल है
'चर्चित' की चर्चा करवा दो
धन की भी वर्षा करवा दो
अच्छाई की जीत सदा है
ये सच फिर साबित करवा दो

- विशाल चर्चित

मंगलवार, अगस्त 26, 2014

बनो ऐसे कि....


बनो ऐसे कि 
मंजिल को हो इन्तजार
तुम्हारे पहुंचने का,
और अगर ऐसा न हो तो
रह जाए एक मलाल उसे
तुम्हारे न पहुंचने का...

बनो ऐसे कि
हर महफिल में छाए रौनक
एक तुम्हारे आने से,
छा जाये हर तरफ मातम
एक तुम्हारे जाने से...

बनो ऐसे कि
बहुत बड़ी हो जाएं
तुम्हारे आस पास की 
छोटी - छोटी खुशियां भी,
सिमट कर न के बराबर 
रह जाये अपनी ही नहीं
दूसरों के गमों की दुनिया भी...

बनो ऐसे कि
हर रिश्ता तुमसे
जगमगाता सा नजर आये,
दिलो जान से निभाने पर भी
अगर कोई जाए तो पछताये कि
यार बहुत बड़ी गलती कर आये...

बनो ऐसे कि
हर हुनर - हर फन में
एक मिसाल हो जाओ,
तो देर किस बात की है
जो बीता सो बीता
अब तो होश में 'विशाल' हो जाओ...

- विशाल चर्चित

शुक्रवार, अगस्त 15, 2014

सोचें कि कहीं अति तो नही हो रही स्वतंत्र की....


हमारा स्वतंत्रता दिवस
आयु के अरसठवें पड़ाव पर,
पूर्णतया प्रौढ़ और परिपक्व...
आरंभ में सीखा कि
कैसे जियें - कैसे रहें
स्वतंत्रता के साथ
क्योंकि तब थी
गरीबी - अशिक्षा 
और बेरोजगारी की लाचारी,
अधिकांश आवश्यकताओं के लिये
विकसित देशों के आगे हाथ बांधे
उनकी हां में हां मिलाते
उनसे अपना मजाक उड़वाते खड़े
कुछ ऐसा था हमारा बचपन...
फिर आया वो समय भी जब
हमने थोड़ा विकास किया
थोड़ी सुख - सुविधायें देखी
अपने पैर पर खड़े होकर
स्वतंत्रता के यौवन को अनुभव किया...
और अब प्रौढ़ावस्था में,
गरीबी से अमीरी के 
दरवाजे पर दस्तक देते हुए,
विश्व के प्रमुख प्रतिष्ठित देशों 
की सूची में पहुंच कर 
गर्वान्वित
 अनुभव करते हुए,
एक बड़ा बाजार बनकर
सभी प्रमुख देशों की
आवश्यकता बनते हुए,
सभी संसाधनों से लैस
संचार माध्यमों के जरिये
चहुं ओर व्याप्त होते हुए...
आइये सोचें कि कहीं अब
अति स्वतंत्र तो नहीं होने लगे?!
कुछ भी कह देने के लिये स्वतंत्र?!
कुछ भी कर देने के लिये स्वतंत्र?!
नियम - कानूनों में अपनी सुविधानुसार
फेर बदल कर देने के लिये स्वतंत्र?!
येन-केन-प्रकारेण धन एवं सम्मान के लिये स्वतंत्र?!
कोई तर्क देकर भ्रष्टाचार को सही बता रहा
कोई तर्क देकर बलात्कार को सही बता रहा
कोई तर्क देकर अन्याय को सही बता रहा
कहीं ये अति शिक्षा तो नहीं ?!
पता है कि अधिकांश लोगों के पास
समय नहीं है इन विषयों पर सोचने का
यहां तक कि पढ़ने का भी
फिर भी एक आशा - एक विश्वास कि
कुछ लोग है जो इन पर 
सोचते भी हैं- समझते भी हैं और
एक ठोस विचार भी रखते हैं...
बाकी अन्य लोगों के लिये
इन सब फालतू कार्यों के लिये
समय नहीं है
बधाई दो - बधाई लो 
जय हिन्द - वंदे मातरम बोलो
और आगे बढ़ो....

इसलिये -

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई
जय हिन्द - वंदे मातरम !!!

- विशाल चर्चित

रविवार, अगस्त 10, 2014

इसीलिये मां लाती है हमारे लिये बहन....


मां हमसे बच्चों की तरह
लड़ - झगड़ नहीं सकती न,
गुस्सा होने पर हमारे
बाल नहीं नोच सकती न,
मस्तियां और शरारतें भी
नहीं कर सकती न,
उल्टे - पुल्टे सपने और
ऊल जुलूल बातें भी
नहीं कर सकती न,
इसी लिये लाती है
हमारे लिये बहन,
जो होती तो है
स्नेह और ममता में
मां का ही प्रतिरूप,
पर उसका बचपना
उसकी शरारते - उसकी मस्तियां
उसका लड़ना - झगडना
उसका रूठना - उसका गुस्सा
उसकी बेसिर - पैर की बातें
बनाती हैं उसे खास,
और यही चीज देती है
भाई - बहन के रिश्ते को
एक खास एहसास,
और इस एहसास को ही
तरोताजा करने के लिये
आता है रक्षाबंधन,
जो लाता है ये संदेश कि -
रिश्ते बदलें - मौसम बदले
या बदले संसार
पर एक चीज कभी ना बदले
भाई - बहन का प्यार....

रक्षाबंधन की स्नेहिल बधाई सहित...


बुधवार, जून 11, 2014

दरिया रहा कश्ती रही लेकिन सफर तन्हा रहा....

















दरिया रहा कश्ती रही लेकिन सफर तन्हा रहा
हम भी वहीं तुम भी वहीं झगड़ा मगर चलता रहा

साहिल मिला मंजिल मिली खुशियां मनीं लेकिन अलग
खामोश हम खामोश तुम फिर भी बड़ा जलसा रहा

सोचा तो था हमने, न आयेंगे फरेबे इश्क में
बेइश्क दिल जब तक रहा इस अक्ल पर परदा रहा

शिकवे हुए दिल भी दुखा दूरी हुई दोनों में पर
हर बात में हो जिक्र उसका ये बड़ा चस्का रहा

छाया नशा जब इश्क का 'चर्चित' हुए कु्छ इस कदर
गर ख्वाब में उनसे मिले तो शहर भर चर्चा रहा

- विशाल चर्चित

शनिवार, मई 17, 2014

भोंपू भाइयों को नमन !!!


कामकाज छोड़ के
दिनोरात लगे रहे,
पंजा हो या झाड़ू
गला सबका कसे रहे..
हर गली - कूचे में
बम - बम किये रहे,
पप्पू और जीजा की
नाक में दम किये रहे...
हाथी को पिन मारा
साइकिल पंक्चर,
लालटेन बुझ गई
फूंके ऐसा मन्तर...
टीवी हो या पेपर
सबको पछाड़ दिया,
कोई खबर आयी नहीं
मोदी सा दहाड़ दिया...
जनता के घाव पर
मरहम लगाया किये,
उल्टा सीधा बोल के भी
जोश बढ़ाया किये...
मोदी खुद सोच में
कि कैसे चमत्कार हुआ,
इतना बड़ा सपना
कैसे साकार हुआ...
जय हो प्यारे भोंपुओं
तुमको नमन है,
तुमपे एक चालीसा
लिखने का मन है....

- विशाल चर्चित

मंगलवार, मई 06, 2014

/// कुछ क्षणिकाएँ.....आज के राजनैतिक परिदृश्य पर ///


गुमनामी से बौराये
एक बूढ़े नेता ने किया
विवाहित नवयौवना
के हाथ से
प्रेममय अमृतपान,
किया अपनी इस
तथाकथित विजय का ऐलान
जनता और मीडिया,
ने हाय तौबा मचाई
समस्त विश्व में
जमकर कु-ख्याति पाई
हुए अजर भी, और
शायद अमर भी...

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एक 'आम आदमी'
'खास आदमी' की तरह
झाड़ू से नाप रहा है दूरी
दिल्ली से वाराणसी की
देश मोह में या
सत्ता मोह में
ये तो पता नहीं, पर
गाली - थप्पड़ खाते हुए
और मुस्कुराते हुए...

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देश की करोड़ों
जनता का हाथ
रहा है करीब
सरसठ सालों से साथ,
अब इनका है हाथ
जनता के साथ,
जनता के मेहनत से
कमाये लाखों करोड़
खा जाने के लिए
पचा जाने के लिये...

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कह तो रहे हैं कि
लायेंगे राम राज्य,
और ये खिलायेंगे
खुशियों के कमल, पर-
चुनाव मे खर्च हुए
कई हजार करोड़,
वसूली के लिये कहीं
ये भी न दें
जनता को निचोड़...

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क्या हुआ जो हम हैं
एक क्षेत्रीय दल,
सरकार हो किसी की
अपना है समर्थन,
क्योंकि संसद में
अपने भी हैं
पच्चीस-तीस जन,
हम लूटेंगे - खायेंगे
या सरकार गिरायेंगे,
देश हित में
देश प्रेम के साथ...

- विशाल चर्चित

सोमवार, अप्रैल 28, 2014

बढ़ते विकल्प....भ्रमित जीवन...!!!

बढ़ते विकल्प
    सबकुछ की लालसा
           और भ्रमित जीवन...
                विषयों की भीड़
                       प्रसाद सी शिक्षा
                            ढेर सारा अपूर्ण ज्ञान...
उत्सवों की भरमार
    बढती चमक दमक
          घटता आनंद...
                 व्यंजनों की कतारें
                       खाया बहुत कुछ
                              फिर भी असंतुष्टि...
सैकड़ों चैनल
    दिन-रात कार्यक्रम
          पर मनोरंजन शून्य...
                 रिश्ते ही रिश्ते
                      बढ़ती औपचारिकता
                             और घटता अपनापन...
अनगिनत नियम कानून
    बढ़ते दाँव - पेच
          और बढ़ता भ्रष्टाचार...
                फलती-फूलती बौद्धिकता
                      सूखते-सिकुड़ते हृदय
                              और दूभर होती श्वास...
अनेकों सूचना माध्यम
     सुगम होती पहुँच
            फिर भी घटता संपर्क...
                   फैलती तकनीक
                         बढ़्ती सुविधायें
                               घटती सुख-शान्ति...
हजारों से जुड़ाव
     सैकड़ों से बातचीत
           फिर भी अकेले हम...

                    - विशाल चर्चित

रविवार, मार्च 23, 2014

इस देश को तो बस आम औरत चलायेगी.....



सुनो जी,
सुना है तुमने
चुनाव चिन्ह
हमारा झाड़ू चुना है?
हम भी
चुनाव चिन्ह
अपना बेलन चुने क्या?
सड़क पर सरेआम
तुम्हारे सिर पर
धुनें क्या?
गंदगी करो तुम
और सफाई करे हम?
झाड़ू ले के भर रहे
आम आदमी का दम?
घर तो संभलता नहीं
देश क्या सँभालोगे,
दो बच्चे तो पलते नहीं
करोड़ों तुम क्या पालोगे?
इस देश को तो बस
आम औरत चलायेगी,
संसद में ढंग से
अब चूल्हा जलायेगी...
नेता निकम्मों पे
अब चिमटा चलेगा,
मक्कारों के सिर पे
अब बेलन बजेगा...
सरकारी कचरे पे
झाड़ू लगा देंगे,
जहां दाग-धब्बे हों
पोछा लगा देंगे...
रिश्वत जमाखोरी
कालाबाजारी,
निपटेगी इनसे
अब सैन्डल हमारी...
हरामखोरी बंद अब
काम सब करेंगे,
अमीरों का कुछ हिस्सा
गरीबों के नाम करेंगे...
बातें भी खूब होंगी
काम भी खूब होगा,
देश के मेकअप का
तामझाम भी खूब होगा...
मंदिर और मस्जिद
के लफड़े जो होंगे,
जानलेवा नहीं
मुंह के झगड़े ही होंगे...
तू-तू-मैं-मैं करके
मुंह हम फुला लेंगे,
कभी खुश हुए तो
हम ही बुला लेंगे...
मोलभाव का जौहर हम
पूरी दुनिया में दिखायेंगे,
अपना सामान महँगा और
दूसरे का सस्ता हम करायेंगे...
भैया, बेटा, मुन्ना
और बाबू कर करके,
दिखा देंगे दुनिया पर
राज भी हम करके...
चर्चित तुम्हे इस मुहिम में
हमारे साथ रहना है,
कविताबाजी छोड़ो तुम्हें
कान्हा जैसा बनना है...

- विशाल चर्चित

मंगलवार, मार्च 18, 2014

चर्चित की मानो नशा मत ही छानो......



होली का रंग है
मिली इसमे भंग है
बुरा मानना मत
निश्छ्ल उमंग है

पीकर के पौवा
बना शेर कौवा
नशे मे खड़ा कर
दिया एक हौवा

किसी का दुपट्टा
जो लै भागा पट्ठा
दिया खींच करके
है गोरी ने चट्ठा

फिर भी न हारा
कीचड्‍ दे मारा
कहा प्राणप्यारी
मैं प्रियतम तुम्हारा

वो बोली जाओ
हमें ना फंसाओ
उल्लू हो उल्लू
मुंह धो के आओ

बड़ा ढीठ बंदा
पकड़ करके कंधा
पहलवान माइन्ड
दिया एक रंदा

गर्दन अकड़ गई
चंडी सी चढ़ गई
बाला तो हाय कर
वहीं सीधी पड़ गई

जनता इकट्ठी
लिये हाथ लट्ठी
मजनूं की गीली
हुई अब तो चड्ढी

बड़ी मार खाई
पड़ा चारपाई
मुहब्बत ने हड्डी
की भूसी बनाई

सबक ये मिला है
कि जो मनचला है

उसी का मुसीबत
में हरदम गला है


चर्चित की मानो
नशा मत ही छानो
नहीं तो फंसोगे
बुरे खूब जानो...

/// होली मुबारक ///

- विशाल चर्चित

सोमवार, जनवरी 20, 2014

तमाम तन्हा लोगों के नाम एक क्षणिका....



सर्द मौसम है,
गर्मागर्म पकौड़ों
अदरक वाली चाय
का ये वक्त है,
पर नदारद हैं
खनकती चूडियों
वाले वे हाथ,
शाम नहीं ये
जहर की पुड़िया है,
मौत यूं आहिस्ता-आहिस्ता
क्या कहें,
बहुत बढ़िया है...

- विशाल चर्चित