बुधवार, दिसंबर 11, 2013

लद रहा हिन्दुस्तान....


गाय भैंस बकरी और लिये साइकिल
लद रहा हिन्दुस्तान यहां वहां आये दिन

रेल अपने बाप की पटरी उखाड़ लेव
काहे की है मुश्किल घर मा बिछाय देव

सब जगह भीड़ है का करे जनता
जल्दी बनाय लेव काम जैसे बनता

हम मनमानी करें गाली खायँ नेता
गाली नहीं खायेगा तो वोट काहे लेता

देश वेश बाद में काम मेरा पहले
तभी वोट दूंगा वर्ना निकल ले

लेन देन सीख लेव आगे बढ़ि जाओ
नाही घरे बैठि के खाली पछताओ

ज्यादा पढ़े लिखेगा तो नौकरी पायेगा
तीन - पांच आयेगा तो देश चलायेगा

कुछ नहीं आता तो बाबा बन जा रे
राम के नाम पर ऐश कर प्यारे

लगा घोर कलियुग कह रहे चर्चित
जितना हो धन बल उतने ही परिचित

- विशाल चर्चित

रविवार, नवंबर 17, 2013

बहुत सुकून मिला है तेरे फिर आने से.....



//// एक तरही गजल ////

बुझे चराग जले हैं जो इस बहाने से
बहुत सुकून मिला है तेरे फिर आने से

बहुत दिनों से अंधेरों में था सफर दिल का
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से

नया सा इश्क नयी सी है यूं तेरी रौनक
लगे कि जैसे हुआ दिल जरा ठिकाने से

चलो कि पा लें नई मंजिलें मुहब्बत की
बढ़ा हुआ है बहुत जोश चोट खाने से

कसम खुदा की तेरे साथ हम हुए चर्चित
जरा सा खुल के मुहब्बत में मुस्कुराने से


- विशाल चर्चित

गुरुवार, नवंबर 07, 2013

दीवाली पर एक नवगीत



क्यों रे दीपक
क्यों जलता है,
क्या तुझमें
सपना पलता है...?!

हम भी तो
जलते हैं नित-नित
हम भी तो
गलते हैं नित-नित,
पर तू क्यों रोशन रहता है...?!

हममें भी
श्वासों की बाती
प्राणों को
पीती है जाती,
क्या तुझमें जीवन रहता है...?!

तू जलता
तो उत्सव होता
हम जलते
तो मातम होता,
इतना अंतर क्यों रहता है...?!

तेरे दम
से दीवाली हो
तेरे दम
से खुशहाली हो,
फिर भी तू चुप - चुप रहता है...?!

चल हम भी
तुझसे हो जायें
हम भी जग
रोशन कर जायें,
मन कुछ ऐसा ही करता है...!!

- विशाल चर्चित

दीयों, कितने अच्छे लगते हो......



दीयों !!!
कितने अच्छे लगते हो
तुम जलते हुए
इस तरह से
जगमग - जगमग करते हुए...!

अच्छा बताओ तो
कहां से लाते हो भला
इतने सुन्दर सी रोशनी?!
कहां से लाते हो
इतनी प्यारी सी मुस्कुराहट....!

मेरे लिये वहीं से
एक प्यारी सी
गुड़िया ला दो न
कुछ प्यारे से खिलौनों से
मेरा दिल बहला दो न....!

पढ़ना - लिखना तो
चलता रहता है पूरे साल,
घर का माहौल भी
एक सा रहता है पूरे साल,
तुम नई - नई सौगातों के जरिये
इस उत्सब को खास बना दो न....!

पापा - मम्मी के कई सपने
सब के सब हैं पूरे करने
तुम मेरी खातिर उनकी पसंद की
ढेर सारी खुशियां ला दो न.. !

- विशाल चर्चित

शुक्रवार, अक्टूबर 25, 2013

रह गया मैं एक निरा भावुक इंसान...



होता अगर मैं
एक धुरंधर नेता
तो सोचता कि
वाह क्या दृश्य है
गरीबी यहां भुखमरी यहां
इसलिये अपनी
सियासत यहां...

होता अगर मैं
मीडिया का खिलाड़ी
सनसनीखेज खबर बनाता
दिनरात दिखाता
विज्ञापनों की बरसात करवाता....

होता अगर मैं
एक गिद्धदृष्टि फोटोग्राफर
अलग-अलग कोणों से
ऐसी तस्वीरें लेता
कि दुनिया के तमाम पुरस्कार
अपनी झोली में बटोर लेता....

होता अगर मैं
एक निर्माता निर्देशक
इस विषय पर एक
अच्छी सी फिल्म बनाता
ऑस्कर अपने घर ले आता...

होता अगर मैं
एक होशियार समाज सेवक
इन गरीबों के नाम पर
करोड़ों का अनुदान लाता
थोड़ा बहुत इनको खिलाता
बाकी सब माल अंदर हो जाता...

होता अगर मैं
एक परम बुद्धिजीवी
इस विषय पर खूब
गहन अध्ययन करता
विवादास्पद आंकड़े जड़ता
एक दमदार किताब लिखता
फिर तो नोबल पुरस्कार से
आखिर कम क्या मिलता...

होता अगर मैं
एक पाखंडी पंडित - मुल्ला
ये दृश्य देख कर सोचता
'छि - छि -छि -छि
जाने कहां से इतनी
गंदगी फैला रखी है,
इन जाहिल गँवारों ने ही
ये दुनिया नर्क बना रखी है....

लेकिन रह गया मैं एक
निरा भावुक इंसान
कुछ भी नहीं कर पाया
ये दृश्य देखकर ह्रुदय भर आया
और एक सवाल ये आया कि
'हाय रे ईश्वर तूने ये जहां
इतना विचित्र क्यों बनाया....?!'

- विशाल चर्चित

रविवार, अक्टूबर 20, 2013

उड़ते हुए पल - छिन





















किताब के पन्नों
के मानिंद उड़ते हुए
जिन्दगी के पल छिन
दे जाते हैं हमारे लिये
कुछ यादो की खुशबुएं
कुछ खुशियों की रोशनी
और कुछ खास
सपनों की झिलमिलाहट
जिन्हें महसूस करके
तमाम मुश्किलों भरे
अंधेरों में भी अक्सर
दिल मुस्कुराता है
इठलाता है
झूम जाता है
कुछ कदम और
आगे बढ़ जाता है....
है न ?!!
- विशाल चर्चित

रविवार, अक्टूबर 06, 2013

बचपना वचपना मस्तियां वस्तियां

















/////// एक गजल ///////

बचपना वचपना मस्तियां वस्तियां
भूल बैठे हैं हम तख्तियां वख्तियां

अब वो गेंदों से बचपन का रिश्ता नहीं
घूमते थे कभी बस्तियां बस्तियां

टीवी नेट की लतें लग गयीं इस कदर
अब लुभाती नहीं कश्तियां वश्तियां

खुदकुशी तक की नौबत पढ़ाई में है
क्या करेंगे मटरगश्तियां वश्तियां

ऐब बच्चों में तो चाहिये ही नहीं
बस बड़े ही करें गल्तियां वल्तियां

- विशाल चर्चित

सोमवार, सितंबर 02, 2013

माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

अब तक नहीं आयी 
कहां तू लुकाई
भूख ने पेट में 
हलचल मचाई
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

गयी जिस ओर 
निगाह उस ओर
घर में तो जैसे 
सन्नाटे का शोर
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

ये हरे भरे पत्ते 
बैरी हैं लगते
कहते हैं मां गई 
तेरी कलकत्ते
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

जल्दी से आओ 
दाना ले आओ
इन सबके मुंह पे 
ताला लगाओ
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

अब हम न मानेंगे
उड़ना भी जानेंगे
तेरे पीछे-पीछे हम
आसमान छानेंगे
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

- विशाल चर्चित


रविवार, सितंबर 01, 2013

बच्चा नहीं चच्चा !!!!


जच्चा के पेट का जब
हुआ अल्ट्रासाउन्ड,
नर्स हिल गयी
अस्पताल हिल गया
देखा जब पेट के
अन्दर का बैकग्राउन्ड...
मां खुद देख रही थी
स्क्रीन पर आंखें फाड़,
जिसको समझी थी तिल
वो तो दिख रहा ताड़...
बच्चा नहीं ये चच्चा
दुनिया में आने से पहले ही
फेसबुक से यारी कर रहा,
अपने आने की खबर वाली
पोस्ट वाल पर जारी कर रहा...
सोचो और समझो बालक
क्या संकेत दे रहा है,
एक नये युग का सूत्रपात
किये दे रहा है...
मां बाप इस उम्र तक
जितना भी सीख पाये हैं,
लाल पेट में ही
वहां से आगे कदम बढ़ाये है...
सुनी होगी आप सबने
अभिमन्यु वाली कहानी,
मां की पेट में ही सीखा
चक्रव्यूह तोड़ डालना
अपने बाप की जुबानी...
ये किस्सा बहुत पुराना है
अब आया नया जमाना है
बच्चों के जरिये मां बाप को
अब अपना ज्ञान बढ़ाना है...
बच्चे स्कूल जाते हैं
न जाने क्या - क्या
सीख के आते हैं
और होम वर्क के जरिये
अपने मां बाप को सिखाते हैं,
लेकिन बात यहीं तक होती
तो कोई बात नहीं थी,
पर बात - बात पे अक्सर
अब तो उल्लू भी बनाते हैं...
इसलिये आंख खोल कर
होशो हवास में रहिये,
मां बाप बने रहना है तो
नया - नया सीखते रहिये,
वर्ना तो कल को केवल
पछताना रह जायेगा,
देखते ही देखते आपका बच्चा
आपका मां बाप बन जायेगा...

- विशान चर्चित
 

शनिवार, जून 22, 2013

सवाल है ईश्वर से.....

















और एक बार फिर से
दिखा कुदरत का कहर
एक बार फिर से दिखी
हल्की सी एक झलक
प्रलय की - कयामत की....
एक बार फिर से
असहाय सा हुआ मनुष्य
धरी रह गयी सारी गणित
सारा विज्ञान - सारी तकनीक...
हजारों मरे - इतने ही लापता
लाखों को बेघर
न जाने कितने गावों
न जाने कितनी बस्तियों का
एक झटके में सफाया....
लेकिन बहुत कम लोगों पर असर
ज्यादातर मस्त और व्यस्त
(सभी की बात नहीं कर रहा)....
नेता व्यस्त ज्यादा से ज्यादा
मीडिया पर दिखने में
हवाई सर्वेक्षणों मे
अपनी पार्टी की प्रशंसा में
दूसरे की कमियां गिनाने में
राहत के लिये जारी धन में से
कुछ अपनी ओर खिसकाने में...
मीडिया व्यस्त खबर के पोस्टमार्टम में
उसको पूरी तरह से भुनाने में
अपने को सबसे आगे और
सबसे तेज बताने में....
बाबू लोग व्यस्त बला टालने में
काम कम लेकिन स्वयं को
परेशान ज्यादा दिखाने में...
व्यापारी इस बहाने जितना हो सके
तमाम चीजों के दाम बढाने में,
बुद्धिजीवी लोग टीवी देखने और
हर खबर पर अपना गाल बजाने में...
बोलबाला है हर तरफ सिर्फ
दिखावे का - मक्कारी का
बेइमानी का - चालाकी का
दिल तो है सिर्फ कहने के लिये
चलता है सिर्फ दिमाग हमेशा
ताकि निकल जायें सब से आगे
जमा सकें दूसरे पर अधिकार
ताकि बने रहें हमेशा शासकों में
शासितों में नहीं.....
काश....इन सब लोगों पर गिरती गाज
काश...ये लोग आते चपेट में
सुलझ जाती बहुत सी समस्यायें
बदल जाता दुनिया का नक्शा
और महौल हो जाता स्वर्ग जैसा...
लेकिन ऐसा होता नहीं है
महंगाई में पिसता है आम आदमी
हर आपदा में मरता है आम आदमी
यहां तक कि पैदा होने के बाद से ही
रोज किसी न किसी वजह से
तिल - तिल करके मरता है आम आदमी
क्यों........आखिर क्यों ???
ये सवाल है ईश्वर से
ये सवाल है प्रकृति से
ये सवाल है कुदरत से
ये सवाल है कायनात से
क्यों........आखिर क्यों ???

बुधवार, मई 29, 2013

क्या वजह क्या वजह कहर बरपा रहे......

क्या वजह क्या वजह कहर बरपा रहे
मेहरबां - मेहरबां से नजर आ रहे

ये दुपट्टा कभी यूं सरकता न था
आज हो क्या गया यूं ही सरका रहे

चूडियां यूं तो बरसों से खामोश थी
बात क्या है हुजूर आज खनका रहे

यूं तो चेहरे पे दिखती थीं वीरानियां
औ अचानक बिना बात मुस्का रहे

दिल ये 'चर्चित' का यूं ही बडा शोख है
देख लो आप ही इसको भडका रहे

- विशाल चर्चित

बुधवार, मार्च 27, 2013

होली की शुभकामना के साथ........



चिमटा चला के मारा, बेलन घुमा के मारा
फिर भी बचे रहे तो, भूखा सुला के मारा

बरसों से चल रहा है, दहशत का सिलसिला ये
बीवी ने जिंदगी को, दोजख बना के मारा

कैसे बतायें कितनी मनहूस वो घडी थी
इक शेर को है जिसने शौहर बना के मारा

वैसे तो कम नहीं हैं हम भी यूं दिल्लगी में
उसपे निगाह अक्सर उससे बचा के मारा

चर्चित को यूं तो दिक्कत, चर्चा से थी नहीं पर
बीवी ने आशिकी को मुद्दा बना के मारा

- विशाल चर्चित

शुक्रवार, फ़रवरी 22, 2013

आतंकवादी बम धमाकों पर...


न जाने कौन से हैं दिल जो
दिलों के चीथड़े उड़ाते हैं,
इधर उज़ड़ती हैं जिंदगियां
और उधर ठहाके लगाते हैं....

वो आंखें हैं कि शीशा हैं
कि उनमें मर चुका पानी,
इधर होता है अँधेरा
उधर वो जश्न मनाते हैं.....

न जाने क्या वो खाते हैं
न जाने क्या वो पाते हैं
न जाने कौन सी दुनिया
जहां से वे आते जाते हैं....

मिले जो ईश्वर उससे
यही होगा सवाल अपना,
कि सारे पैदा होते ही दरिन्दे
मर क्यों नहीं जाते हैं....

- VISHAAL CHARCHCHIT

बुधवार, जनवरी 16, 2013

चर्चित दाना - चर्चित दाना.....



















चर्चित दाना - चर्चित दाना

छोड़ दो अब तुम खाना खाना...

महंगाई है चरम पे अपने 
शुरू करो अब चुगना दाना
बहुत खा चुके थाली भर भर
बहुत गा चुके गाना वाना....

आने वाला दिन ऐसा है 
खाना कम बस गोली खाना
ऐश की सारी चीज़ें होंगी
सेहत लेकिन ना ना ना ना....

आज नहीं एक दिन सोचोगे
अच्छा है पंछी बन जाना,
मानव जीवन बडा कठिन है
नींद में भी बस पाना - पाना....

चर्चित दाना - चर्चित दाना
छोड़ दो अब तुम खाना खाना....

- VISHAAL CHARCHCHIT

वक्त की लय पर चलो एक राग सुन लें...

















वक्त की लय पर चलो

एक राग सुन लें

है बसंती रुत सुहानी
है बडी चंचल पवन
है हृदय में भाव जागा
ख्वाब से भीगे नयन

आओ मन के मीत सा
एक साज चुन लें

तुम कहां खोये हुए हो
कौन धुन में हो मगन,
कौन सा ऐसा विषय है
कर रहे चिंतन-मनन

आओ हम तुम साथ मिल
एक आज बुन लें....

- VISHAAL CHARCHCHIT