सोमवार, अप्रैल 16, 2012

नशा सुखद पड़ाव है मंजिल नहीं.....

होता है कभी - कभी कि
जिस तरफ जाना हमारे लिए
होता है नुकसानदायक
होता है कई बार गलत भी
दिल जाता है बार - बार 
अक्सर उधर ही - उसी तरफ....
जैसे कि मना किया जाए अगर
नहीं करना ये काम तुम्हें
ये गलत है - ये पाप है
तो मान लेता है हमारा दिमाग
लेकिन कहाँ मानने वाला है दिल
वो बार - बार जाएगा उसी चीज़ पर....
जानते हैं सभी कि नशा कोई भी हो
होता है बहुत बुरा - बहुत घातक,
जानता है ये बात वो नशेडी भी
जो हो चुका है इसका आदी,
लेकिन जब लगती है तलब
जब करना शुरू करता है दिल जिद
नहीं याद रहता कुछ भी उसे, और -
बढ़ जाते हैं कदम खुद - ब - खुद
उस तरफ....उस नशे की तरफ.....
क्योंकि ये देता है उसके दिल को
एक सुकून - एक राहत और शायद
कुछ पल के लिए एक नयी ज़िन्दगी भी....
कितना अच्छा होता कि अगर
अच्छा होता उसके लिए ये नशा,
कितना अच्छा होता कि हमेशा रहता
ज़िन्दगी में ऐसा ही सुकून और 
हमेशा रहती ऐसी ही राहत,
कुछ ऐसे ही ख्वाहिशें कर रहा होता है 
उस नशेडी का एक बच्चे जैसा दिल,
लेकिन सच्चाई तो फिर सच्चाई है
कि बुरी चीज़ बुरी थी - बुरी है और
हमेशा बुरी ही रहेगी उसके लिए....
इससे जितनी ज़ल्दी उबर जाए उतना अच्छा
क्योंकि ये नशा - ये ख़ुशी - ये सुकून
हो सकता है एक सुखद पड़ाव 
लेकिन ज़िन्दगी के लिए एक मंजिल
कभी नहीं - कभी नहीं - कभी नहीं !!!!

- VISHAAL CHARCHCHIT

शुक्रवार, अप्रैल 13, 2012

हाय दइया फिर से गर्मी.....

 लीजिये मित्रों प्रस्तुत है एक अवधी रचना.....




बुधवार, अप्रैल 11, 2012

रिश्ता.....

रिश्ता चाहे कोई भी हो
तब तक रहता है अधूरा
जब तक नहीं मिलते दिल से दिल,
जज्बातों से जज़्बात, विचारों से विचार
तरंगों से तरंगें और चाहत से चाहत....
नहीं चल सकता कोई भी रिश्ता
बहुत देर तक एकतरफा
ठीक उसी तरह जिसतरह से
नहीं बज सकती हैं कभी भी
सिर्फ एक हाथ से ताली और
नहीं चल सकती हैं बहुत दूर तक 
सिर्फ एक पहिये पर कोई भी गाडी....
उसने हाथ दिया तो 
तुम्हें भी हाथ बढ़ाना पड़ेगा,
किसी का साथ चाहिए 
तो साथ निभाना पड़ेगा....
किसी से हक़ चाहिए तो
पड़ता है हक़ देना भी,
कभी - कभी पड़ता है सुनाना और
कभी - कभी पड़ता है सुनना भी,
रूठना - मनाना और झगड़ना भी.....
इसके अलावा ज़रूरी है रिश्ते के प्रति 
वफादारी और ज़िम्मेदारी भी,
अब इन्हें निभा सकते हो तो निभाओ
वर्ना अकेले रह जाओ
बस खुद के लिए जीते जाओ....
जहां नहीं होगा कोई रोकनेवाला
नहीं होगा कोई टोकनेवाला
न होगा कोई रूठनेवाला - न मनानेवाला
न अकड़नेवाला - न झगड़नेवाला,
चलाओ अपनी मनमानी और 
जब तक चाहो जियो अपने तरीके से....
लेकिन कब तक ?
कभी तो सताएगा अकेलापन?
कभी तो कमजोर होगी ताकत?
कभी तो लड़खडायेंगे तुम्हारे कदम?
याद रखो जश्न मनाओ तो 
साथ देने वाले बहुत मिल जाते हैं,
पेट भरा हो तो खिलानेवाले बहुत मिल जाते हैं
सुख में साथ निभानेवाले बहुत मिल जाते हैं
लेकिन दुःख की घडी में - ज़रुरत हो तो
याद आता है कोई अपना ही और
काम भी आता है कोई अपना ही.....
ये बात एक पत्थर की लकीर है
जब चाहो आजमाना, ताकि -
कभी - किसी मोड़ पर तुम्हें 
न पड़े हाथ मलना - न पड़े पछताना....

- VISHAAL CHARCHCHIT

ये पल - ये लम्हे - ये घड़ियाँ....

कुछ पल, होते हैं बहुत मधुर
होते हैं बहुत यादगार,
समा जाते हैं जाते हैं अक्सर
दिल के किसी कोने में
एक मीठी सी याद बनकर...
कुछ लम्हे, होते हैं बड़े कठिन
लेते हैं हमारा इम्तहान और 
गुजर जाते हैं यूँ ही अक्सर
दिल को खरोच कर.....
कुछ घड़ियाँ, आती हैं और लाती हैं 
ढेर सारे सपने - ढेर सारे अरमान
आने वाले एक सुनहरे कल के
जगा जाती हैं आँखों में अक्सर....
ये पल - ये लम्हे - ये घड़ियाँ
वाकई हैं बहुत ज़रूरी ताकि
इनसे मिली खुशियों पर हम
दिल खोल कर मुस्कुरा सकें,
इनसे मिलें तमाम कटु अनुभवों से
आगे का रास्ता निष्कंटक बना सकें
और इनके द्वारा जगाये हुए 
सपनों का पीछा करते हुए
कुछ ख़ास कामयाबियों को
अपने क़दमों के नीचे ला सकें....
इसलिए इन्हीं यूँ ही न बिता दो
इन्हें यूँ ही बेकार में न गंवा दो
इसलिए उठो - सोचो - कुछ करो
और इनके सहारे ज़िन्दगी को
बेहद खूबसूरत बना दो !!!

- VISHAAL CHARCHCHIT

यूँ तो हमने....

यूँ तो हमने कोशिशें समझाने की बहुत की
उसको ही दूर जल्दी मगर जाने की बहुत थी

हमने कहा बहुत कुछ उसने सुना बहुत कुछ
उसको बुरी एक आदत भूल जाने की बहुत थी

हम कभी न बदले थे न बदले हैं न बदलेंगे
उसको ही मगर जल्दी बदल जाने की बहुत थी

अरमान थे कि उसको अपना जहां बनाएं
उसकी जहां में चाहत छा जाने की बहुत थी

कोशिश रही वफ़ा पर उंगली उठे न चर्चित
उसकी तमन्ना चर्चा में यूँ आने की बहुत थी


- VISHAAL CHARCHCHIT

जब से जागो तभी से सवेरा.....

होता है कभी - कभी यूँ भी कि
इंसान बिना जाने - समझे
मान बैठता है दिल की बात,
पकड़ लेता है एक ऐसी राह जो 
नहीं होती उसके लिए उपयुक्त
नहीं पहुँचती किसी मंजिल तक,
लेकिन चूंकि होता है एक जूनून
होते हैं ख्वाब जिनका पीछा करते
निकल जाता है बहुत दूर - बहुत आगे,
तब अचानक लगती है एक ठोकर,
बहुत तेज़ - बहुत ज़ोरदार कि
खुल जाती है जैसे उसकी आँख
हो जाता है अपनी गलती का एहसास,
लेकिन अब ?......क्या करे - क्या न करे
पीछे लौटे - आगे जाए - ठहर जाए
या फिर कोई नयी राह ली जाए......
अब टूट चुके होते हैं सारे ख्वाब
पूरी तरह से बुझ चुका होता है दिल
और हो चुका होता है एकदम निराश....
तभी एकाएक याद आती है उसे
बुजुर्गों से अक्सर ही सुनी हुई ये बात
कि जो होता है अच्छे के लिए होता है,
कुछ छूट जाने - कुछ खो जाने से
सब कुछ ख़त्म नहीं होता है.....
नहीं थी वो राह तुम्हारे लिए ठीक
अच्छा हुआ जो अभी लग गयी ठोकर
वर्ना आगे होती और ज्यादा तकलीफ,
उठो - खड़े होओ - और पकड़ो एक नयी राह,
अभी कुछ भी नहीं है बिगड़ा मत होओ निराश
क्योंकि जब से जागो तभी से सबेरा होता है......

- VISHAAL CHARCHCHIT

कुछ टूटे दिलों की दास्तान......

किसी का यूं अचानक 
ज़िन्दगी की राह में मिल जाना
कुछ बातें - मुलाकातें और
एक नशे की तरह 
दिलोदिमाग पर छा जाना....
और यूं लगने लगना कि
जैसे वो नहीं तो कुछ नहीं,
न सुबह - न दिन - न रात
सब कुछ उसी से शुरू और
उसी पर ख़त्म हो जाना......
फिर अचानक एक दिन
हालात का करवट बदलना,
साथ ही दो दिलों में 
तमाम जज़्बात का बदलना....
और एकाएक बहुत से
रहस्यों पर से परदे का उठना,
अपने पैरों के नीचे से 
जैसे जमीन का खिसकना....
पता ये चलना कि
वहाँ उस दिल में
नहीं रहते हो सिर्फ तुम ही,
वहाँ उन आँखों में नहीं
बसा करते हो सिर्फ तुम ही.....
बल्कि रहा करता है 
पूरा एक शहर - पूरा एक जहान,
अब होता है शुरू अपने ही
दिल में विचारों का घमासान,
हो जाती हैं अपने आप दूरियां
न चाहते हुए भी मजबूरिया.....
और हो जाती हैं दो राहें जुदा
दूर हो जाते हैं दो दिल
अलग हो जाती हैं दो जिंदगियां,
कौन सही - कौन गलत
नहीं समझ आती ये बारीकियां....
क्योंकि सबकुछ होता है अपनेआप
घटती हैं घटनाएं अपनेआप
और रह जाते हैं नाचते मंच पर
किसी कठपुतली की तरह दोनों
अलग - अलग - दूर - दूर.....
होता है कुछ ऐसा ही तमाम
उन धड़कते दिलों के साथ,
जो हुआ करते थे कभी साथ - साथ
और दिखते हैं खिंचे - खिंचे से आज....

- VISHAAL CHARCHCHIT

बुधवार, अप्रैल 04, 2012

माँ, जहां ख़त्म हो जाता है अल्फाजों का हर दायरा....


    माँ, जहां ख़त्म हो जाता है
        अल्फाजों का हर दायरा,
           नहीं हो पाते बयाँ
               वो सारे जज़्बात जो
               महसूस करता है हमारा दिल,
                 और आती हैं जेहन में
                     एक साथ वो तमाम बातें....

                         छाँव कितनी भी घनी हो
                               नहीं हो सकती सुहानी
                                  माँ के आँचल से ज्यादा....

                                     रिश्ता कितना भी गहरा हो
                                         नहीं हो सकता है कभी
                                           एक माँ के रिश्ते से गहरा...

                                              क्योंकि रिश्ते तो क्या
                                                  इस जहां से ही हमारा 
                                                    परिचय कराती है एक माँ ही,
                                                       हर एहसास - हर अलफ़ाज़ का 
                                                          मतलब भी बताती है एक माँ ही...

                                                               इसलिए माँ तुम्हारे बारे में
                                                                 क्या कह सकते हैं हम
                                                                    कुछ नहीं - कुछ नहीं - कुछ नहीं !!!
                                                                     
                                                                                     - VISHAAL CHARCHCHIT

सोमवार, अप्रैल 02, 2012

ख्वाब में ही सही रोज़ आया करो....


ख्वाब में ही सही रोज़ आया करो
मेरी रातों को रौशन बनाया करो

ये मुहब्बत यूँ ही रोज़ बढती रहे
इस कदर धडकनें तुम बढ़ाया करो

मैं यहाँ तुम वहाँ दूरियां हैं बहुत
अपनी बातों से इनको मिटाया करो

मुझको प्यारा तुम्हारा है गुस्सा बहुत
इसलिए तुम कभी रूठ जाया करो

मुझे घेरें कभी मायूसियां जो अगर
बच्चों सी दिल को तुम गुदगुदाया करो

तुमको मालूम है लोग जल जाते हैं
नाम मेरा लबों पे न लाया करो

जुड़ गयी ज़िन्दगी इसलिए तुम भी अब
नाम के आगे चर्चित लगाया करो

- VISHAAL CHARCHCHIT

रविवार, अप्रैल 01, 2012

समस्त मूर्खाधिपतियों की जय !!!!!

समस्त मूर्खाधिपतियों को नमन............क्योंकि आज आपका दिन यानी 1 अप्रैल अर्थात "फूल्स डे" है........यही एक त्यौहार है पूरे साल में जो आपके लिए रखा गया है........और पूरी दुनिया में धूमधाम से न सिर्फ मनाया जाता है बल्कि बिरादरी का विस्तार भी किया जाता है......ताकि आपकी ढेंचू - ढेंचू प्रजाति फलती - फूलती रहे........आपके कर्णप्रिय गर्दभ स्वर चहुँओर गूंजते रहे.......खैर आज के इस सुनहरे मौके पर सोचा मैं भी कुछ योगदान कर दूं.......मतलब कुछ लोगों को आपके समाज का रास्ता दिखा दूं.........लेकिन आश्चर्य कोई भी ऐसा नहीं मिला जिसे मूर्ख बनाया जा सके........जिसे देखो वही चौकन्ना है........सारे होशियार - सारे चालाक........सारे बनाने पर तुले.........हाय रे कलियुग......तूने सबको अपने रंग में रंग दिया.......कि अब नहीं है कोई सीधा - नहीं है कोई भोला - नहीं है कोई अंध भक्त कि जिसे मूर्ख बनाया जा सके.......इसके बावजूद धन्य हैं हमारे नेतागण.........बेचारे कितना पापड बेलते हैं - नाको चने चबाते है लेकिन 150 करोड़ लोगों को बेवकूफ बना ही ले जाते हैं......देखते ही देखते हजारों - लाखों करोड़ हमारी आँख के नीचे से खिसका ले जाते हैं........और हम सारे होशियार लोग गाल बजाते रह जाते हैं.......तो इसतरह ये आज का त्यौहार नेताओं और हम जनता - जनार्दन दोनों का त्यौहार है..........क्योंकि वे मूर्ख बनाते हैं और हम बनते हैं.........लेकिन हम नेताओं कि जय क्यों बोलें......हम तो अपने महापुरुषों कि जय बोलेंगे.........तो बोलो एक बार प्रेम से.....सभी मूर्खाधिपतियों की जय !!!!!